रविवार, 16 फ़रवरी 2020

हाँडी में पकते छोटू के सपने..



उस  धुँए में कुछ पक रहा था
 शायद कुछ सपने..!
 कुछ रोटी के कुछ खीर के,
या शायद दाल मास के,

 गीली लकड़ियाँ भी सुलग रही थी
उस माटी के हाँडी के संग..!
वो हाँडी ही जाने,
क्या समाया था उसमें,

पर लकड़ी के पीढ़े पर बैठा छोटू
बुनने लगा था सपने हजार,
अम्मा की आँखों मे छलक आयेआँसू
कहा तेरे ही सपने है,
रुक परोसती हूँ,
                  अनीता लागुरी "अन्नु"☺️

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020

Valentine Day


❤ प्यार एक ख़ूबसूरत एहसास है इसे हर वो दिल महसूस करता है........ जो प्यार के एहसास से  गुज़रता है।  उसके लिए हर वह पल ख़ास  होता है जब वह अपने प्यार से मिलता है।  उसे उसकी बातें अच्छी लगती हैं...... उसकी मुस्कुराहट अच्छी लगती है़..... उसका हर अंदाज़-ए-बयां उसे अच्छा लगता है और वो उसकी चाहत में पूरी तरह से  डूब चुका होता है।  ......क्या वाक़ई  इतना ख़ास होता है प्यार ?..... हमें  शायद इतना ख़ास   महसूस होता होगा  प्यार। चलो अब बातें प्यार की कर ही रहे हैं तो कुछ अपनी भी बातें जोड़ दूँ  इसमें। 


पता है ?  

मुझे लगता है .....

जब तुम मुस्कुराते हो 

तब कहीं  झरने की  कल-कल  करती 

मधुर-सी आवाज 

यूँ  ही मेरे आसपास बिखर जाती है.....! 

कुछ ऐसा संगीत मेरे रोम-रोम में गूंजने लगता है....!!!   

जिसकी ध्वनि सिर्फ़ मुझे सुनाई पड़ती है 

और मेरा मन यूँँ ही मस्त-मगन 

हर गली हर चौराहे पर  नाचने लगता है ....।.

जानते हो क्यों....? 

क्योंकि शायद मैं प्यार के एहसास में 

सर से पांव तक डूबी हुई हूँ, 

यह प्यार ही तो है 

जो मुझे सजने-संवरने और यूँ  ही 

आईने के सामने खड़े होकर 

ख़ुद  को घंटो तक देखने की मेरी इच्छा को बढ़ाता है ......।

न  चाहते हुए भी 

माथे पर एक छोटी-सी बिंदी लगाने को मजबूर करता है ।   

हाथों में चूड़ियां और ,

छरहरी काया पर  मेरी एक सुंदर-सा 

अनारकली सूट बदल-बदलकर 

पहनने को मजबूर करता है..।

कैसे बताऊँ मन न जाने क्या-क्या सोचता है। 

शायद इसी को कहते हैं प्यार...

पर क्या इसी  प्यार के लिए 

हर एक दिल धड़कता है।

हर पल हर घंटे 

हर ल्मम्हे जीता है।

क्या इस प्यार के लिए सिर्फ एक सप्ताह काफी होता है ।
ना जाने किस पाश्चात्य प्रभाव भी आकर
 प्रेम दिवस के नामकरण करते चले गए

इसे हम किसी समय के परिधि में नहीं बांध सकते हैं .!

इस प्यार को तो यह भी नहीं पता 

कि  हम इंसानों ने 

इसके लिए भी सीमाएं तय कर दीं  हैं...। 

जबकि  प्यार तो अनंत है ।

असीमित है ।

जिसका कोई ओर-छोर नहीं ,

यह तो हर उस दिल में बसता है ।

जहां पर हम किसी के लिए कुछ ख़ास महसूस  करते हैं !          

उसके लिए हर वो बातें सोचते हैं 

जो  उसे अच्छी लगे 

उसकी ख़ुशी के  लिए हर जतन करते हैं..।. 

जब वो गुजरता है गली के कोने से,

तो छत के किसी कोने में खड़े होकर उसे देखते हैं ।

तब तक जब तक की वह नजरों से ओझल ना हो जाए। 

उसकी हर अच्छी-बुरी बातों को 

हम सही मानते हैं ।

और जब वह पास आता है ।

तो अपनी अंगुलियों में 

दुपट्टे का  छोर  घुमाए  बिना 

उसकी ओर देखने  

उसके धड़कनों को सुनने का प्रयास करते हैं ।

शायद यही प्यार है ।   

अनचाहा अनकहा अद्भुत प्यार ...

जो  तुम्हें मुझसे  है .... और  मुझे  तुमसे..... ।

मैं अपने प्यार को एक  सप्ताह में नहीं बांट सकती 

मेरे लिए तो हर वह पल ख़ास  है।

हर वो पल एक उत्सव की तरह है.।

जब तुम मेरे पास से गुजरते हो !  

मुझसे बातें करते हो ,

तुम्हारे होने न होने का एहसास ,

मुझे अंदर ही अंदर बेचैन करता है ।

और तुम्हें देखकर मेरी आंखें भर आती हैं ख़ुशी  से 

मेरे लिए तो ये सारे पल वैलेंटाइन-डे से भी से भी ज़्यादा ख़ास हैं 

क्योंकि प्यार की  सीमाओं की कोई परिधि नहीं होती......। 

# अनीता लागुरी (अनु)

युद्ध :विचारों का अतिक्रमण


                               चित्र गूगल से
                                  ..........
    युद्ध: विचारों का अतिक्रमण
🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂
 कभी सोचा है तुमने
 युद्ध क्या है..?
 युद्ध कहाँ है..?
 क्या है ?
 दो देशों के बीच नहीं,
 वहाँ युद्ध नहीं है..!
 वहाँ  अहंकार है!
अपने लोगों के बीच
राजा कहलाने की
अंधी मानसिकता होती है युद्ध!
उसका रुख़ ज़्यादातर,
अपने ही देश की ओर होता है,
जहाँ सीमाएँ नहीं होती,
 बंदूक और बम से लैस,
 सैनिक नहीं होते,
दो देशों के झंडे नहीं होते...
 वह रुग्ण मानसिकता, रुख़ करती है वहाँ का,
 जहाँ धर्म, ज़ात-पाँत, संप्रदाय,
 विचारों पर अंधा अतिक्रमण करते हैं..।
🍁🍂🍁🍂🍁🍂
अनीता लागुरी 'अनु'

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2020

व्याकुल समुद्र....


                                चित्र : गूगल से
                        🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁
                                       व्याकुल समुद्र
🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁
रेत में अंदर तक धँसे
मेरे पाँव को  छू रहीं थीं
समुद्री लहरें
शायद मीठे होने की चाहत में
हर बार हर लहर के साथ
पछाड़ आती थी नमक की एक टोकरी
किनारे पर

पर दुर्भाग्य उसका
उतनी ही नमकीन वह हर बार हो जाती
जितनी शिद्दत से लहरों को हर बार भगाती

देखकर उसकी  जिजीविषा
मन आतुर हो उठा भरने को उसे आगोश में
पर हर बार दब जाता था रुदन उसका
लहरों के संग तीव्र शोर में

हलक सूखता उसका भी
पर प्यासा ही रह जाता है
एक घूँट नीचे नहीं जाता
नमक के उस घोल में

क्या..उसके आँसुओं ने ही
समुद्र में इतना नमक भरा था?
आह! निकलती अंतर्मन से उसके
जब पानी भाप बनकर उड़ जाता था
और सतह के अंदर नीम गहराइयों में
हलचल मचाते जलचर
जीवन जी जाते थे!

पर उसका क्या उसकी इच्छा का क्या
मीठे पानी की खोज में
सतह पर उभर-उभरकर
चाँद को बुलाता है...पर चाँद
ज्वार-भाटे में उसे उलझाकर छिप जाता है.
🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁
अनीता लागुरी "अनु"

बुधवार, 5 फ़रवरी 2020

बसंत....!!


                                चित्र: गूगल से
                                        बसंत...!
                                    🍁🍂🍁
  परिवर्तन का दौर फिर आया है
प्रकृति में यौवन चढ़ आया है
लहलहाते  सरसों के पीले फूलों के बीच
देखो! बसंत फिर से खिलखिलाया है

बाग़ों में आम की डालियाँ झुक गयीं
मंजरियाँ लकदक शृंगार सजा गयीं
यों लगा ज्यों नवयौवना
पैरों में महावर लगाकर पिया मिलन को निकल गयी

चितेरा कागा सुनाये बेसुरा आलाप
कोयल पपीहा बुलबुल लगाये उसे डाँट
फूलों के गुच्छे में सहेजकर ख़त
पाहुन का संदेशा लेकर आये बसंत

जंगलों और खेतों में देख हरियाली
भंवरे गुंजन करते डाली- डाली
मधुमास के गीत सुनाती
कोयल भी कुहू-कुहू की  तान जगाती

छोड़कर पतझड़ का रूखापन
धरती ओढ़े नया शगुन
नाच रही है वसुंधरा
देखकर बसंत की हँसी-ठिठोली.

उन्मादी माहौल सजा-संवरा है
कलियों संग मिलने से डरता भँवरा है
नियति-चक्र चलता रहने वाला है
मानव के सोये विवेक को बसंत जगाने वाला है.

🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂

अनीता लागुरी"अनु"

शुक्रवार, 31 जनवरी 2020

बिट्टू


                                       बिट्टू
                                🍁🍂🍁🍁🍁
 बिट्टू!!!
 का  री नादान गुड़ियाँ,
 चल पास आ  मेरे
तेरी धमा चौकड़ी थमती नहीं
तेरे बालों में आ तेल लगा दूँ
 कसकर एक जुड़ा बना दूँ
बींधते है जो नज़र तुझे
 उन ऩजरों  से बचाकर
 माथे में एक काला टीका लगा दूँ
आहह....!!!
अम्माँ  दुखता है
 छोड़ मुझे,
यह कड़वापन मुझे नहीं भाता
इस सरसों से तू पूरी ही तल ले,
मैं चली खेलने बाहर
आज गुड़ियाँ की मेरी शादी है
आँगन में शहनाई बजेगा
 राधा का गुड्डा
 दूल्हा बनेगा
 तू भी आना अब्बा संग
हल्दी चंदन का लेप लगाकर
 देकर जाना कोई शगुन,
 सुनकर उसकी बातों को
 मन अधीर हो उठा..।
बिटिया एक दिन जाएगी तू भी ऐसे
राजा दूल्हा तेरा भी आयेगा
छोड़  ड़योढ़ी तक तुझको
अब्बा तेरा वापस आयेगा..।
 आँख नचाकर कहा उसने..
" ना री अम्मा ना ना ना"
मैं ना चाहूँ कोई दूल्हा
नाही चाहूँ बंगला, गाड़ी
 तेरा आंचल है सबसे प्यारा,
 ले लगा दे कड़वा तेल,
माथे में सजा दे काजल की टिकिया
अब ना करूंगी तुझको तंग
 तेरी ही बिटिया बनकर
 रहूँगी हरदम संग
🍁🍂🍁🍂🍁🍂
अनीता लागुरी"अनु"

गुरुवार, 30 जनवरी 2020

ऐ जिंदगी तेरे हर बात से डर लगता है..


                                      .......
दूर निकल आई हूँ, सब कुछ छोड़ कर
अब दुआएं बद्दुआऐं मेरा पीछा नहीं करती
लेकिन ना जाने फिर भी क्यूँ
ऐ ज़िंदगी तेरी हर बात से डर लगता है

तेरे दिए हर ज़ख्म
उन जख्मों से रिश्ते दर्द के लावे
और उन जख्मों से इतर खिलखिलाती मेरी हँसी
पल को भूल भी जाऊँ मगर फिर भी
ऐ ज़िदगी तेरी हर बात से डर लगता है

तू कब रुला दे
कब हँसा दे
ना जाने तू कब क्या कर दे
तेरे हर मजाक से डर लगता है

सवालों के घेरे बनाकर
तू तालियाँ बहुत बजाती है
जो निकल भी आउँ छटपटा कर
तू दूजी लिए खड़ी रहती है
ऐ ज़िंदगी तेरे हर किरदार से डर लगता है

चलो माना तू हंसने के मौके भी देती है
मगर समंदर कब कश्तियों को
बिना भिंगोए पार जाने देती है

याद है तुझे
तूने कहा था मुझसे
चल आ सरपट दौड़ लगाते हैं
मैं वही लाइन में खड़ी रह गई
तू जीत करके मुझसे दूर हो गई
ऐ ज़िंदगी तेरी इन चालाकियों से भी डर लगता है

सुकून की तलाश में
छत बनाया था मैंने
टपकती बारिश की बूंदों ने
सर से पाँव तक नहला दिया

तू यकीनन उड़ा ले मजाक मेरा
या गिरा दे रास्तों पर मुझे
पर फिर भी उठ खड़ी  होऊंगी
और  पूछूंगी तुमसे बस तू हार गया

पर हाँ तेरे चंद सवालों से अब भी डर लगता है
सब कुछ हासिल करने के फेर में
अस्तित्व ने मेरे मुझको नकार दिया
मुस्कुराहटे बनती रही चेहरे में मगर
तुमने वह नकाब भी उतार दिया

कहने को तो
दम भरा करती थी
तेरी चुनौतियों से जिंदगी बदल दूंगी
पर तेरे झमेलों ने लपेटा मुझे ऐसा
रोटी कपड़ा मकान इन्हीं में सिमट गई
ऐ ज़िदगी तेरे हर वार से डर लगता है
🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂

अनीता लागुरी"अनु"