गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020

युद्ध :विचारों का अतिक्रमण


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    युद्ध: विचारों का अतिक्रमण
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 कभी सोचा है तुमने
 युद्ध क्या है..?
 युद्ध कहाँ है..?
 क्या है ?
 दो देशों के बीच नहीं,
 वहाँ युद्ध नहीं है..!
 वहाँ  अहंकार है!
अपने लोगों के बीच
राजा कहलाने की
अंधी मानसिकता होती है युद्ध!
उसका रुख़ ज़्यादातर,
अपने ही देश की ओर होता है,
जहाँ सीमाएँ नहीं होती,
 बंदूक और बम से लैस,
 सैनिक नहीं होते,
दो देशों के झंडे नहीं होते...
 वह रुग्ण मानसिकता, रुख़ करती है वहाँ का,
 जहाँ धर्म, ज़ात-पाँत, संप्रदाय,
 विचारों पर अंधा अतिक्रमण करते हैं..।
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अनीता लागुरी 'अनु'

5 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर और सत्य का दर्शन कराती रचना है अनु जी।

    वैसे , एक युद्ध सदैव मनुष्य के हृदय में चलता रहता है-- अच्छाई एवं बुराई के मध्य, इस युद्ध में यदि हम कृष्ण की तरह सत्य के साथ होते हैं तो योगेश्वर हो जाते हैं, अन्यथा
    कौरवों के पक्ष में खड़े ज्ञानी महारथियों की तरह बुराई का साथ दें अपयश प्राप्त करते हैं।

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  2. युद्ध की सनकी मानसिकता पर विचारोत्तेजक चिंतन को अभिव्यक्त करती रचना. लिखते रहिए.
    बधाई एवं शुभकामनाएँ.

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 13 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. आदरणीय दीदी जी सादर प्रणाम 🙏
    युद्ध पर आपका ये चिंतन विचारणीय है। उचित कहा आपने युद्ध रण भूमि पर नही युद्ध तो किसी की महत्वाकांक्षा,तृष्णा और दंभ के मध्य होता है। किसी के अंतर की भूख कई बार युद्ध के नाम पर वीरों की शहादत का भोग लगाती है। शायद इसीलिए स्वयं भगवान कृष्ण ये जानते हुए भी कि युद्ध तो अटल है शांति दूत बनकर युद्ध को रोकने का प्रयास करने गये थे। किंतु यदि बात अधिकारों की हो तो हमे युद्ध से कभी पीछे नही हटना चाहिए। उस क्षण युद्ध हमारा कर्म और धर्म दोनों है यही गीता की शिक्षा है। पर फिर भी एक युद्ध जाने कितनों के बुढ़ापे की लाठी,कितनों के घर का चिराग,कितनों के जीने का सहारा छीन लेता है इसलिए युद्ध को टालने का हर अंतिम प्रयास अनिवार्य है।
    नमन आपको और आपकी लेखनी को। सुप्रभात 🙏

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