शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

प्रश्न,...!!

प्रश्न तो बस प्रश्न होते हैं,
तीखे से ,मीठे से,कुछ उलझे से
कुछ जज्बाती से,
तो कुछ हमेशा की तरह अनुत्तरित से।
यहां कुछ प्रश्न..?
मैंने भी पुछा ,
मां से अपनी...?
क्यो लड़के की चाह में,
मुझे अजन्मे ही मारने चली..?
क्यों छठे माह तक,
बिना किसी भय के ,
सींचती रही रक्त से अपने..!
सुनाती रही लोरी,
और सहलाती रही
उदर को अपने...!!
हर बीतते पल के साथ,
मुझ खुन के टुकड़े को
नख, शिख ,दंत से क्यों
सांवारती रही...?
और करती रही मजबूत
रिश्ता हमारा,
फिर ऐसा क्या हुआ,
मां....?
किसने तुझे कमजोर बनायां
किसने तुझे कहा,
लड़के ही वंश बड़ाते है,
ये मुई लड़कियां तो बस बोझ होती है।
एक बार आने तो दिया होता,
दुनिया में तुम्हारी,
पर ....!
तु इतना भी ना कर सकी,
मेरी मां,
लड़ जाती मेरी खातिर सबसे
और रख ये प्रश्न....!
पुछती सबसे...!
क्या हुआ जो गर ये
लड़की है...!
है तो मेरा ही अंश..
मैं लाउंगी इसे
इस दुनिया में..!
इसे जीने का अधिकार
मैं दुंगी..!
पर तुने नहीं कहा,
और छोड़ दिया मुझे अकेला।
और मैं बिना जन्मे ही
चल दी , तुम्हारी दुनिया से दुर..!
और आज मौका मिला तो
मैंने भी पुछ लिया ये
प्रश्न ..!
ना जाने फिर कभी
मौका मिले या नहीं,
इस अजन्मे बच्चे को
तुमसे संवाद का ...?
..

बुधवार, 21 फ़रवरी 2018


कैद ख्यालो की,

ये जो कैद है ,
तुम्हारे ख्यालो की,
तुम्हारे अनगिनत स्पर्शो  की...!
मेरे अधरो पर अंकित
तुम्हारे प्रणय निवेदन की
चाहुं भी ,
कहकशो से तुम्हारी,
रुह को मेरी,
आजाद नहीं कर सकती।
बांधी है गांठ
तेरी यादों की मेरे ख्यालों की डोर से।
,
          अनु 

कैद ख्यालो की,

शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

सिस्टम से दुबका हाथी,

एक छोटा हाथी
मेरी किताब के चित्रों में दूबका,
अक्सर मुंह चिढ़ाता है मुझे..!
चाहा उसे कई बार
बाहर निकाल लाऊं,
पर है वो टेढ़ा बड़ा
मुझसे ही कहता है...!
तुम्हें खाने को अनाज नहीं..?
भला मुझे निकालकर
क्या खाक खिलाओगी....?
और मुझे भूखे रहने की आदत नहीं
गुस्से में मार दूंगा अगर किसी को
मेरी हत्या,हत्या कहलाएंगी,
पर तेरी काले कोट में छिप जाएगी।
  बाकियों को तो दे रखे हे हत्या का हथियार,
पर मुझे पकड़ ले जाओगे..!;
अगर कुछ बोला मैं खिलाफ तुम्हारे,
लगाके देशद्रोह का इल्जाम...!
बना दोगे लोकतंत्र का हत्यारा बड़ा..!
फिर भी तुम नहीं मानोगे
करवाओगे जबरदस्ती मुझसे
अपनी बात मनवाओगे,
जो ना मानी तुमरी मैंने,
बिन मौत मर जाउंगा।
या हाथ पर हाथ धर कर,
किसी कोठरी में फेंकवा दिया जाउंगा..!
फिर भी नहीं मानोगे तुम..?
भेज के अंध भक्तों की टोल
चौराहों में खून ही खून फैलावगे
युवाओं को कर अंधा
सिस्टम के गंदे बोल सिखाओगे
हां मैं आहत हूं
नजर में भले ही तुम्हारी एक छोटा अदना-सा हाथी हूं,
पर बात पते की करता हूं..!!
रहूं किताबों में सुरक्षित बनके छोटा सा हाथी
दुनिया जहान के षड्यंत्रों से दूर
शांति और सुख से भरपूर
कह लो कायर भले तुम मुझे
पर मेरे अंदर की दुनिया तुमसे लाख भली है
               अनु 🍁 🍂🍁

बुधवार, 14 फ़रवरी 2018

वैलेंटाइन-डे

❤ प्यार एक ख़ूबसूरत एहसास है इसे हर वो दिल महसूस करता है........ जो प्यार के एहसास से  गुज़रता है।  उसके लिए हर वह पल ख़ास  होता है जब वह अपने प्यार से मिलता है।  उसे उसकी बातें अच्छी लगती हैं...... उसकी मुस्कुराहट अच्छी लगती है़..... उसका हर अंदाज़-ए-बयां उसे अच्छा लगता है और वो उसकी चाहत में पूरी तरह से  डूब चुका होता है।  ......क्या वाक़ई  इतना ख़ास होता है प्यार ?..... हमें  शायद इतना ख़ास   महसूस होता होगा  प्यार। चलो अब बातें प्यार की कर ही रहे हैं तो कुछ अपनी भी बातें जोड़ दूँ  इसमें। 
पता है ?  
मुझे लगता है .....
जब तुम मुस्कुराते हो 
तब कहीं  झरने की  कल-कल  करती 
मधुर-सी आवाज 
यूँ  ही मेरे आसपास बिखर जाती है.....! 
कुछ ऐसा संगीत मेरे रोम-रोम में गूंजने लगता है....!!!   
जिसकी ध्वनि सिर्फ़ मुझे सुनाई पड़ती है 
और मेरा मन यूँँ ही मस्त-मगन 
हर गली हर चौराहे पर  नाचने लगता है ....।.
जानते हो क्यों....? 
क्योंकि शायद मैं प्यार के एहसास में 
सर से पांव तक डूबी हुई हूँ, 
यह प्यार ही तो है 
जो मुझे सजने-संवरने और यूँ  ही 
आईने के सामने खड़े होकर 
ख़ुद  को घंटो तक देखने की मेरी इच्छा को बढ़ाता है ......।
न  चाहते हुए भी 
माथे पर एक छोटी-सी बिंदी लगाने को मजबूर करता है ।   
हाथों में चूड़ियां और ,
छरहरी काया पर  मेरी एक सुंदर-सा 
अनारकली सूट बदल-बदलकर 
पहनने को मजबूर करता है..।
कैसे बताऊँ मन न जाने क्या-क्या सोचता है। 
शायद इसी को कहते हैं प्यार...
पर क्या इसी  प्यार के लिए 
हर एक दिल धड़कता है।
हर पल हर घंटे 
हर ल्मम्हे जीता है।
क्या इस प्यार के लिए सिर्फ एक सप्ताह काफी होता है ।
ना जाने किस पाश्चात्य प्रभाव भी आकर
 प्रेम दिवस के नामकरण करते चले गए
इसे हम किसी समय के परिधि में नहीं बांध सकते हैं .!
इस प्यार को तो यह भी नहीं पता 
कि  हम इंसानों ने 
इसके लिए भी सीमाएं तय कर दीं  हैं...। 
जबकि  प्यार तो अनंत है ।
असीमित है ।
जिसका कोई ओर-छोर नहीं ,
यह तो हर उस दिल में बसता है ।
जहां पर हम किसी के लिए कुछ ख़ास महसूस  करते हैं !          
उसके लिए हर वो बातें सोचते हैं 
जो  उसे अच्छी लगे 
उसकी ख़ुशी के  लिए हर जतन करते हैं..।. 
जब वो गुजरता है गली के कोने से,
तो छत के किसी कोने में खड़े होकर उसे देखते हैं ।
तब तक जब तक की वह नजरों से ओझल ना हो जाए। 
उसकी हर अच्छी-बुरी बातों को 
हम सही मानते हैं ।
और जब वह पास आता है ।
तो अपनी अंगुलियों में 
दुपट्टे का  छोर  घुमाए  बिना 
उसकी ओर देखने  
उसके धड़कनों को सुनने का प्रयास करते हैं ।
शायद यही प्यार है ।   
अनचाहा अनकहा अद्भुत प्यार ...
जो  तुम्हें मुझसे  है .... और  मुझे  तुमसे..... ।
मैं अपने प्यार को एक  सप्ताह में नहीं बांट सकती 
मेरे लिए तो हर वह पल ख़ास  है।
हर वो पल एक उत्सव की तरह है.।
जब तुम मेरे पास से गुजरते हो !  
मुझसे बातें करते हो ,
तुम्हारे होने न होने का एहसास ,
मुझे अंदर ही अंदर बेचैन करता है ।
और तुम्हें देखकर मेरी आंखें भर आती हैं ख़ुशी  से 
मेरे लिए तो ये सारे पल वैलेंटाइन-डे से भी से भी ज़्यादा ख़ास हैं 
क्योंकि प्यार की कोई परिधि नहीं होती...... 
# अनीता लागुरी (अनु)

कहानी संग्रह पंखुड़ियाँ (24 लेखक एवं 24 कहानियाँ )

कहानी संग्रह पंखुड़ियाँ (24 लेखक एवं 24 कहानियाँ )



कहानी संग्रह
की सूचना साझा करते हुए बहुत ख़ुशी का अनुभव हो रहा है कि इस संकलन में मेरी कहानी "सरसों के तेल की पूरी की मिठास " सम्मिलित है। 
देशभर के अलग-अलग राज्यों से प्राची डिजिटल पब्लिकेशन की  इस पहल ने लेखकों को एक प्रतिष्ठित मंच प्रदान किया कहानी संग्रह का आयोजन करते हुए। 
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मंगलवार, 6 फ़रवरी 2018

सांप्रदायिक उन्माद

Image result for image of roitesअरे मारो उसे....!              आहहह...!!!
पकड़ो..! काट डालो..!!!
...लो बचने न पाये...!
जलाओ उसे .!!
फ़र्क़  क्या पड़ता है?
छोड़ो ! 

कौन......?  
....... जी
रिश्ते गिनने लग गये.....!
तो हो गयी
ख़ून-ख़राबे  की होली..
यह है कड़वा
मगर आज का अकाट्य सत्य
सत्य जो दिखता है
सत्य जो रुलाता है
सत्य जो पूछता है
कहां खड़े हो आज तुम
इतना गुस्सा
इतना स्वार्थ
कि अपनी आत्मतुष्टि के लिए 
हथियार उठाए
अपनी ही गली में
लाल रंग फैलाते हो
और नालियों में 
लहू बहाते हो 
और करते हो
अट्टहास!!
लो ले लिया पूरा बदला
मुझे देश-दुनिया से क्या
मैं जीता हूँ
अपने धर्म  और समाज के नाम पर
ख़ून  बहे तो बहे
लोगों के  घर जले तो क्या
मैं नहीं झुकनेवाला
देश जल रहा है
गलियों में
चौराहों पर
धर्म के नाम पर कत्लेआम
हो रहे हैं
भाई...अब तो डर लगता है
इंसान  होने से
डर लगता है अपनी
ज़ात बताने से
न जाने कौन  कब  कहां
बैठा हो अंधभक्ति के साथ
और काट दे मेरा गला
आज तक क्या पाया 
और खोया क्या-क्या
तुमने ...हमने.....???
# अनीता लागुरी ( अनु )

चित्र साभार : गूगल 

गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

तुम्हारे कहने से चलो मुस्कुरा देती हूँ..!

                                       
मुझे आती नहीं
मुस्कुराहट  तुम्हारी  तरह
न ही आती है                                                आँखों को नीचेकर 
शरमाने की कला
मेरी संवेदनाएं तो यहीं से
झाँकतीं हैं
बस जहां तक देख पाऊँ
उतने ही ख़्वाब बुनती हूँ
देख रही हो...
कटे-फटे हाथों  की मेरी लकीरों को
इनमे धंसी  इस माटी को
ये कहती हैं मुझसे
हमें  तुम पर गर्व  है
तुम भूख को मात देती हो
अपने चेहरे पर 
दौड़ने  वाली मुस्कान से
और तुम कहती हो..?
आप ऐसे देखो तो
तस्वीर अच्छी आएगी
क्या अच्छी... क्या बुरी
...!
बस  तुम्हारे  तस्वीर लेने से
मेरे माथे से बह रही
पसीने की बूँदें 
मेरी क़िस्मत को
नहीं  बदलेगी
पर बिटिया ...!
तुम्हारे कहने से चलो
मुस्कुरा देती हूँ..!
#अनीता लागुरी ( अनु )