शुक्रवार, 31 जनवरी 2020

बिट्टू


                                       बिट्टू
                                🍁🍂🍁🍁🍁
 बिट्टू!!!
 का  री नादान गुड़ियाँ,
 चल पास आ  मेरे
तेरी धमा चौकड़ी थमती नहीं
तेरे बालों में आ तेल लगा दूँ
 कसकर एक जुड़ा बना दूँ
बींधते है जो नज़र तुझे
 उन ऩजरों  से बचाकर
 माथे में एक काला टीका लगा दूँ
आहह....!!!
अम्माँ  दुखता है
 छोड़ मुझे,
यह कड़वापन मुझे नहीं भाता
इस सरसों से तू पूरी ही तल ले,
मैं चली खेलने बाहर
आज गुड़ियाँ की मेरी शादी है
आँगन में शहनाई बजेगा
 राधा का गुड्डा
 दूल्हा बनेगा
 तू भी आना अब्बा संग
हल्दी चंदन का लेप लगाकर
 देकर जाना कोई शगुन,
 सुनकर उसकी बातों को
 मन अधीर हो उठा..।
बिटिया एक दिन जाएगी तू भी ऐसे
राजा दूल्हा तेरा भी आयेगा
छोड़  ड़योढ़ी तक तुझको
अब्बा तेरा वापस आयेगा..।
 आँख नचाकर कहा उसने..
" ना री अम्मा ना ना ना"
मैं ना चाहूँ कोई दूल्हा
नाही चाहूँ बंगला, गाड़ी
 तेरा आंचल है सबसे प्यारा,
 ले लगा दे कड़वा तेल,
माथे में सजा दे काजल की टिकिया
अब ना करूंगी तुझको तंग
 तेरी ही बिटिया बनकर
 रहूँगी हरदम संग
🍁🍂🍁🍂🍁🍂
अनीता लागुरी"अनु"

7 टिप्‍पणियां:

  1. वाह्ह्ह.... कितना नेह भरा है इन पंक्तियों में। कितनी प्यारी कितनी न्यारी पंक्तियाँ हैं 👌
    सादर प्रणाम 🙏 सुप्रभात

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  2. बचपन की वे तमाम गुड़‍ियायें याद आ गईं , धन्यवाद अनीता जी बचपन में ले जाने के ल‍िए

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  3. मेरी नन्ही सी बेटी एक दम सट कर सोई हुई है और मैंने आपकी ये कविता पढ़ी तो आंख से आंसू रोक नहीं पाया।
    बेहद सुंदर रचना।

    नई पोस्ट पर आपका स्वागत है- लोकतंत्र 

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (05-02-2020) को    "आया ऋतुराज बसंत"   (चर्चा अंक - 3602)    पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  5. बेहतरीन सृजन अनु जी , बचपन के सारे भाव उमड़ आये ,सादर स्नेह

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  6. वाह! एक मर्मस्पर्शी बाल कविता जो निरापद निश्छल बचपन को बड़ी ख़ूबसूरती से अभिव्यक्त करती है। गहन अनुभूतियों की मार्मिक अभिव्यक्ति गहन चिंतन में डुबो देती है।
    बधाई एवं शुभकामनाएँ।

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