शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2020

व्याकुल समुद्र....


                                चित्र : गूगल से
                        🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁
                                       व्याकुल समुद्र
🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁
रेत में अंदर तक धँसे
मेरे पाँव को  छू रहीं थीं
समुद्री लहरें
शायद मीठे होने की चाहत में
हर बार हर लहर के साथ
पछाड़ आती थी नमक की एक टोकरी
किनारे पर

पर दुर्भाग्य उसका
उतनी ही नमकीन वह हर बार हो जाती
जितनी शिद्दत से लहरों को हर बार भगाती

देखकर उसकी  जिजीविषा
मन आतुर हो उठा भरने को उसे आगोश में
पर हर बार दब जाता था रुदन उसका
लहरों के संग तीव्र शोर में

हलक सूखता उसका भी
पर प्यासा ही रह जाता है
एक घूँट नीचे नहीं जाता
नमक के उस घोल में

क्या..उसके आँसुओं ने ही
समुद्र में इतना नमक भरा था?
आह! निकलती अंतर्मन से उसके
जब पानी भाप बनकर उड़ जाता था
और सतह के अंदर नीम गहराइयों में
हलचल मचाते जलचर
जीवन जी जाते थे!

पर उसका क्या उसकी इच्छा का क्या
मीठे पानी की खोज में
सतह पर उभर-उभरकर
चाँद को बुलाता है...पर चाँद
ज्वार-भाटे में उसे उलझाकर छिप जाता है.
🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁
अनीता लागुरी "अनु"

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर सृजन जो आधुनिक कविता की विचारणीय अभिव्यक्ति है. कविता के बिम्ब नये-नये अर्थों और संदर्भों से पाठक को जोड़ते हैं और अंत में गहन चिंतन उभरता है.
    लिखते रहिए. बधाई एवं शुभकामनाएँ.

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 07 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. आज आपको नही प्रथम प्रणाम आपकी लेखनी को 🙏
    क्या खूब लिखा आपने। और वैचारिक क्षमता...वाह। समंदर के मन की व्याकुलता कहूँ या ज़िंदगी की...बहुत खूब रही अभिव्यक्ति। और उतने ही सुंदरता से आपने इसे पिरोया। अब और क्या कहूँ बस नमन स्वीकार करिए 🙏

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  4. पर उसका क्या उसकी इच्छा का क्या
    मीठे पानी की खोज में
    सतह पर उभर-उभरकर
    चाँद को बुलाता है...पर चाँद
    ज्वार-भाटे में उसे उलझाकर छिप जाता है.
    वाह!!!!
    बहुत ही सुन्दर , लाजवाब सृजन।

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    उत्तर
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद सुधा जी आप ब्लॉग पर आई मुझे बहुत अच्छा लगा

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  5. उत्तर
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद नितीश जी आप ब्लॉग पर आए मुझे बहुत खुशी हुई

      हटाएं
  6. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-02-2020) को "हिन्दी भाषा और अशुद्धिकरण की समस्या" (चर्चा अंक 3606) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    आप भी सादर आमंत्रित है

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  7. क्या..उसके आँसुओं ने ही
    समुद्र में इतना नमक भरा था?
    आह! निकलती अंतर्मन से उसके
    जब पानी भाप बनकर उड़ जाता था

    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति अनु जी ,सादर स्नेह

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