कभी चाहा नहीं
कि अमरबेल-सी
तुमसे लिपट जाऊँ ..!!
कभी चाहा नहीं की
मेरी शिकायतें
कभी चाहा नहीं की
मेरी शिकायतें
रोकेंगी तुम्हें...!
चाहे तुम मुझे
न पढ़ने की
बरसों की पीड़ा का
त्याग करो न करो।
हाँ !
ख़ामोशी से जलना
आता है मुझे
अपने अंदर उमड़ रहे
सवालों को समेटकर.......
उदासी की सफ़ेद चादर
ओढ़ना पसंद है मुझे
चाहे तुम मुझे पढ़ो या न पढ़ो ...!
मेरी स्याह रातें
मेरी करवट बदलती रातें...!
शोर करती मेरी....
गुपचुप सिसकियों का सच
और मुझे देखता वह चाँद अकेला..!
पर फिर भी मेरी शिकायतें
नहीं रोकेंगी तुम्हें
चाहे तुम मुझे पढ़ने की पीड़ा का
त्याग करो या न करो...!
#अनीता लागुरी (अनु )
(चित्र साभार : गूगल)