तुम कवि हो ना,
शब्दों को आकार
देते हो,
मैं एक कड़वा सच हूँ
सच को नंगा करना
मेरी आत्मसंतुष्टि है ।
तुम्हारे विचारों के प्रबल वेग का
कोई छोर नहीं ।
और मैं ...... गंतव्य का भटका राही,
तलाश-ए- मंज़िल की दौड़ में
गुमनाम बना फिरता हूँ ...
तुम्हारी कल्पनाऐं
अंतहीन हैं ।
मैं दर्द को सीता हूँ ...!
उसकी चुभन से ,
ख़ुद की कहानियां
लिखता हूँ .…!
तुम लेते हो सहारा क़लम का
मेरी तो आँखें पनीली होती हैं ,
होगे तुम कवि कहीं के
मैं बस मैं हूँ .......!
कल्पनाओं से परे...!
जीता हूँ संग बिडम्बनाओं के
मरता हूँ संग वर्तमान के...!
एक यथार्थवादी....!
#अनु