कभी चाहा नहीं
कि अमरबेल-सी
तुमसे लिपट जाऊँ ..!!
कभी चाहा नहीं की
मेरी शिकायतें
कभी चाहा नहीं की
मेरी शिकायतें
रोकेंगी तुम्हें...!
चाहे तुम मुझे
न पढ़ने की
बरसों की पीड़ा का
त्याग करो न करो।
हाँ !
ख़ामोशी से जलना
आता है मुझे
अपने अंदर उमड़ रहे
सवालों को समेटकर.......
उदासी की सफ़ेद चादर
ओढ़ना पसंद है मुझे
चाहे तुम मुझे पढ़ो या न पढ़ो ...!
मेरी स्याह रातें
मेरी करवट बदलती रातें...!
शोर करती मेरी....
गुपचुप सिसकियों का सच
और मुझे देखता वह चाँद अकेला..!
पर फिर भी मेरी शिकायतें
नहीं रोकेंगी तुम्हें
चाहे तुम मुझे पढ़ने की पीड़ा का
त्याग करो या न करो...!
#अनीता लागुरी (अनु )
(चित्र साभार : गूगल)
ऐसा कमाल का लिखा है आपने कि पढ़ते समय एक बार भी ले बाधित नहीं हुआ और भाव तो सीधे मन तक पहुंचे !!
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद आपका,आपको मेरी कविता अच्छी लगी ..आपकी टिप्पणी मेरे लिए अहम है ।
हटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण कृति !!!
जवाब देंहटाएंजी आभार आदरणीय मीना जी...!
हटाएंआपको रचना अच्छी लगी..!!
जी धन्यवाद, मुझे बेहद खुशी है की मुझ नवोदित बाॅलागर क़ो आप सभो ने बहुत सर्पोट किया...!बस अभी सीख रही हुं ..जिस वजह से सभ़ो के बॉलाग तक नही पहुंच पाई हुं....!पर जल्द ही पारंगत हो जाउंगी..फिर आप सभी गुणीजनो की रचनाओं का आनंद ले पाउंगी!सादर धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंवाह ! अनु जी आपकी काव्य रचनाओं के बिषयों में ताज़गी का प्राधान्य है। एक हृदयस्पर्शी रचना में आपने सहजता के साथ सरसता भर दी है। सुंदर, प्रभावशाली, भावप्रवण रचना। बधाई एवं शुभकामनाऐं।
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत सुंंदर..
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद पम्मी जी,
हटाएंप्रतिक्रिया हेतु...खुशी हुवी .जानकर की...आपको रचना अच्छी लगी...!!!
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना
जी धन्यवाद लोकेश जी सराहना हेतु..!!!
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 24 नवम्बर 2017 को साझा की गई है..................http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जी नमस्ते,
हटाएंस्वेता जी बेहद आभार आपका ,आपने मेरी रचना का चयन किया....!!
अनिता जी ....आपकी यह रचना मेरे अंतर्मन को छू गई ।
जवाब देंहटाएंलग रहा है जैसे अपने ही जीवन का सच उभर रहा है
जी आपका स्वागत है,शकुंतला जी मेरी बलॉग पर..आपके विचार से सहमत हुं,हम नारी मन स्वंय मे बहुत ही माधुराम्य ,कोमलता का भाव संजोंकर जीवन जीते है...!खामोशी से दीये की भांति ..सदैव साथ बनाएं रखे ....धन्यवाद..!
हटाएंधन्यवाद अनिता जी
हटाएंआपकी यह रचना मेरे अंतर्मन को छू गई ।
जवाब देंहटाएंजी सादर आभार नीतु जी...!
हटाएंबहुत बहुत लाज़वाब रचना अनीता जी। wahhhhh। शिक़वा तो है पर शिक़ायत नहीँ। गम तो है पर ग़मगीन नहीं। Mमलामत तो है पर अदावत नहीं। जज़्बातों का सबरंगी कारवां उकेर दिया आपने। बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी रचना....
वाह!!!!
प्रिय अनिता आपकी सुंदर रचना भाषा , भाव शैली सभी पर खरी उतरती मन को छू जाती है | शायद ये हर नारी की शिकायत या फिर उसकी नियति है और कभी ना कभी इस स्थिति से दो चार होती ही है |ऐसी स्थिति में मन यही कहता है
जवाब देंहटाएंसुनो ! मन की व्यथा कथा -
समझो मन के जज्बात मेरे ,
कभी झाँकों इस सूने मन में -
रह कुछ पल साथ मेरे !
दीप की भांति जला है ये दिल -
सदियों सी लम्बी रातों में ,
कभी सिमट गए कभी छलके हैं -
ना रुके आंसूं मेरी आँखों में ;
कभी तो मनाओ जो रूठे हम -
रंग दो रीते एह्साह मेरे ,
छोड़ भी दो अलसाई रात का दामन
कभी तो जागो साथ मेरे !!!!!!
जी सादर आभार रेणु जी,आपकी प्रतिक्रिया ...प्रतिक्रिया ना होकर एक नारी की अंर्तमन की व्यथा कह गई,छोटी छोटी ख्वाहिशे होती है हमारी ..बस अपने प्रियतम का साथ चाहते है..!!एक वो साथ ही संपुणॆ जीवन की रिक्कता भर देता हे....!आपके लिखे ने तो चार चांद जोड़ दिऐ..मन भर आया ...आपकी पंक्तियां पढ़कर..चाहुंगी पुरा पढ़ना...एक और बार दिल से आभार एंव शुक्रिया...!!
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हटाएंप्रिय अनिता आपकी सुंदर रचना भाषा , भाव शैली सभी पर खरी उतरती मन को छू जाती है | शायद ये हर नारी की शिकायत या फिर उसकी नियति है और कभी ना कभी इस स्थिति से दो चार होती ही है |ऐसी स्थिति में मन यही कहता है
जवाब देंहटाएंसुनो ! मन की व्यथा कथा -
समझो मन के जज्बात मेरे ,
कभी झाँकों इस सूने मन में -
रह कुछ पल साथ मेरे !
दीप की भांति जला है ये दिल -
सदियों सी लम्बी रातों में ,
कभी सिमट गए कभी छलके हैं -
ना रुके आंसूं मेरी आँखों में ;
कभी तो मनाओ जो रूठे हम -
रंग दो रीते एह्साह मेरे ,
छोड़ भी दो अलसाई रात का दामन
कभी तो जागो साथ मेरे !!!!!!
प्रिय अन्नू -- नारी मन की संयमित पीड़ा को बयान करती रचना हर दृष्टि से सराहनीय है | बहुत ही हृदयस्पर्शी भाव मन को छू रहे हैं |
जवाब देंहटाएंबहुत भाव पूर्ण रचना आदरणीय अनीता जी.लाज़वाब लिखती हैं आप.भावों को सीधे दिल तक पन्हुचाने वाली शब्दकला में पारंगत.
जवाब देंहटाएंआप की रचनायें padhkar अभिभूत हूं.अनंत शुभकामनायें
सादर
जी अर्पणा जी,ह्रदिक धन्यवाद ....आपकी प्रतिक्रिया अहम है...बस प्रयास कर रही हुं आप सबों के समकक्ष पहुंच सकुं .आपने सराहा बहुत खुशी हुई...सदैव साथ बनाएं रखें ...एक और बार धन्यवाद...!
हटाएंबहुत सुन्दर रचना। लगातार लिखती रहें। ब्लॉग में कई गैजेट कई बार प्रयोग किये गये हैं। एक ही रखिये। जैसे लेबल, ब्लॉग आर्किव, मेरे बारे में,आदि।
जवाब देंहटाएंजी अत्यंत प्रसन्नता हुई, आपको रचनाएं अच्छी लगी,.और बेहद आत्मीयता का बोध हुआ ब्लाग को लेकर आपका मार्गदर्शन करना . जी ब्लांगिंग बस अभी सीख रही हुं. कई बार बदलाव करने के बाद दोबारा उस परिवर्तन को ढुंढ नहीं पा रही हुं.. कई बार पुरी पेज ही डिलीट हो जा रही है.आपने जो सुझाव दिए हैं उन पर प्रयास कर रही हुं...सदैव कमीयों पे मेरी आगाह कीजीएगा .. जल्द ही सुधार लुंगी ..जी एक और बार आपका धन्यवाद...!!
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