रविवार, 3 नवंबर 2019

नंदू...!!

नंदू
नंदू दरवाजे की ओट से,
निस्तब्ध मां को देख रहा था...
मां जो कभी होले से मुस्कुरा देती
तो कभी दौड़ सीढ़ियों से उतर
अंगना का चक्कर लगा आती..!
तू कभी चूल्हे पर चढ़ी दाल छोंक  आती..
माँ,, आज खुश थी बहुत
अब्बा जो आने वाले थे आज
चार सालों के बाद..
निकाल  लाई संदूकची से कानों की बालियां..
और लगा..!!
माथे पर  लाली
बालों में गजरा...!
और पहन वो साड़ी नारंगी वाली,
खुद ही मन ही मन शरमा जाती
मां को देख मेरा भी मन हर्षाया
जो कभी पायल बजाती रुनझुन रुनझुन..
और कभी मुझे उठाती गोद में
आज मां खुश थी बहुत
मांगी थी दुआ भगवान से
दे देना लंबी उम्र मेरे सुहाग को
    पर...?
अब भी नंदू मां को देख रहा था
मां जो अब चुप थी...
मां जो अब खामोश थी
कुछ कह रही थी तो माँ की आँखे
और आंखों से बहती जल की निर्मल धारा
ताई ने तोड़ी मां की चूड़ियां
पोंछ डाला लाल रंग माथे का
ओर बिखेर दिया मां का जुड़ा
नोच डाला वह चमेली के फूल
पल में बदल गई थी दुनिया हमारी
जहां गूंज रही थी मां की हंसी
अब गूंजने लगे थे सिसकियों के सुर..!
अब्बा आए तो जरूर थे
पर चार कंधों में लेट कर
चंद बे मकसद बेरहम लोगों ने
दागी थी गोलियां उनके सीने पर
और मैं अब भी मां को देख रहा हूँ
दरवाजे की ओर से निस्तब्ध...!!
        अनीता लागुरी अनु🍁🍁

21 टिप्‍पणियां:

  1. नश्वर जगत, पल भर में बदल जाते हैं जीवन के रंग..
    हमारी खुशियों पर रामनाम सत्य का न जाने कब लग जाता है ग्रहण.. फिर भी आनंद की तलाश जारी रहे, यह प्रयत्न करते रहने को कहा जाता है..।
    भावपूर्ण लेखन है आपका।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद पथिक जी...बहुत अच्छा प्रतीत होता है ,आप जब अपनी प्रतिक्रिया रख जाते है...जी जीवन अनिश्चितता का ही एक नाम है कब राम नाम मे बदल जाये कह नही सकते है है..... आभार आपका!!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (05-11-2019) को   "रंज-ओ-ग़म अपना सुनाओगे कहाँ तक"  (चर्चा अंक- 3510)  पर भी होगी। 
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    -- 
    दीपावली के पंच पर्वों की शृंखला में गोवर्धनपूजा की
    हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई।  
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. जी बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी मैं जरूर आउंगी

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  4. बेहद मर्मस्पर्शी रचना,पढ़कर अच्छा लगा।

    अब भी नंदू मां को देख रहा था
    मां जो अब चुप थी...
    मां जो अब खामोश थी
    कुछ कह रही थी तो माँ की आँखे
    और आंखों से बहती जल की निर्मल धारा
    ताई ने तोड़ी मां की चूड़ियां
    पोंछ डाला लाल रंग माथे का
    ओर बिखेर दिया मां का जुड़ा
    नोच डाला वह चमेली के फूल
    पल में बदल गई थी दुनिया हमारी

    सादर।

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    1. .. बहुत-बहुत धन्यवाद #डॉ जफर जी प्रथम तो आज आप पहली बार मेरी ब्लॉग पर आए इसके लिए मुझे बेहद खुशी की अनुभूति हुई इतनी अच्छी प्रतिक्रिया के लिए एक और बार मेरी ओर से धन्यवाद🙏

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  5. आँखों के सामने एक करूँण दृश्य खड़ा कर दिया इन पंक्तियों ने ...
    मर्म को छूती हुयी गुज़रती है रचना ... जाने कितने ही अनजान नंदू देखते है ये सब होते ... कोइ उनके दिल में उतरना नहीं चाहता ... नहीं सुनना चाहता वो चीख ...

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    1. .. जी बहुत-बहुत धन्यवाद आपकी प्रतिक्रिया हमेशा और बेहतर लिखने को प्रेरित करती हैं... सही कहा कितने ही नंदू हैं जिनकी आंखों के सामने सिरोज इस तरह की घटनाएं गुजरती है पर कोई उनकी आवाज नहीं बनता मेरे प्रयास को आपने सराहा आपका बहुत-बहुत धन्यवादत

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  6. बहुत मर्मस्पर्शी दिल को छूती रचना....
    माँ की खुशी और पल में बदलती जिन्दगी मातम का माहौल
    नंदू की आँखों देखी ....बहुत ही सजीव शब्दचित्रण
    लाजवाब सृजन।

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  7. .. बहुत-बहुत धन्यवाद सुधा जी आपकी प्रतिक्रिया ने दिल को सुकून पहुंचाया कि मैंने आप सबों के हृदय को छुआ ऐसे ही हमेशा साथ बनाए रखें...!!

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  8. करुणा से भरी हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति। एक अबोध बालक को पितृ शोक और मां को बिलखते देखना असहनीय स्थिति है। बहुत ही मार्मिक चित्रण किया गया है।

    संवेदना के स्वर उभारने में अनु की लेखनी ख़ूब चलती है। बधाई एवं शुभकामनाएं। लिखते रहिए।

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    1. .. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका आप की गहराई से दी गई प्रतिक्रियाएं हमेशा मनोबल में वृद्धि करती है एक लेखक के लिए आने वाली टिप्पणियां जीवन वर्धक कैप्सूल की तरह काम करती हैं जिनके प्रभाव में आते ही एक लेखक की उर्जा और प्रभावशाली हो जाती है और वह नए-नए सृजनात्मकता की और बढ़ जाता है आपकी रचनाओं के साथ-साथ आपकी टिप्पणियों का भी मुझे इंतजार रहता है हमेशा साथ बनाए रखें सादर धन्यवाद

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  9. बहुत ही सवेदनशील कविता है ये.. तुम्हारी।!! शायद मैंने पहले भी इसे पढ़ा है. कविता के भाव नंदू की मानसिक स्थिति को दर्शा रहे हैं जो यकीनन उसकी बाल सुलभ मन मस्तिक में क्या दौड़ रहा है उस चीज को बखूबी तुमने प्रदर्शित किया है मुझे बहुत अच्छा लगता है जब तुम कविता के पात्रों के साथ अपने मन की बात को संवाद के द्वारा कह देती हो कोई भी कविता तभी मन को छूती है जब उसमें निहित भाव सामग्री हमारे अंतर्मन को छू जाए और तुम्हारी बहुत सारी कविताओं में ऐसा प्राप्य मौजूद रहता है... ऐसे ही लिखती रहो मां सरस्वती का वरदान हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा ��

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    1. . बहुत-बहुत आभार मित्र आपने मेरी कविता को सराहा इसकी मुझे बहुत खुशी नंदू चरित्र को मैंने महसूस किया है उसे जिया है उस जैसी परिस्थितियों से मैं भी दो ,चार बार गुजरी हूं बस इसलिए उन अनुभवों को मैंने इस कविता के जरिए उतार दिया.. मुझे बेहद खुशी है कि आप सबको मेरी यह कविता पसंद आ रही हैं... तब तक कोई कविता सार्थक सिद्ध नहीं होती है जब तक कि वह पाठकों के टिप्पणियों से सुशोभित ना हो ऐसे ही साथ बनाए रखें धन्यवाद

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  10. మీరు రాసిన కవిత్వం చాలా బాగుంది, నా మనసుకు తగిలింది కొన్ని కొన్ని పదాలు....మీరు ఇలాగే మరిన్ని రాయాలని నా మనస్పూర్తిగా కోరుకుంటున్నాను....all the best...

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    1. Thanks a lot raj Shekhar ji... I did not understand your language but I am very happy that you came to my blog.

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  11. जो हुआ फ़रार मार कर गोली
    काश सुनता नंदू के मन की बोली
    जो लिए सवालों की मन में पोथी
    देख रहा था माँ को रोती
    पूछ रहा था जीजी से
    क्या बाबा मुझसे रूठे हैं
    जो आकर गले लगाते थे
    क्यू भूमि पर लेटे हैं
    और ताई को देखो दुष्ट बड़ी
    माँ को कितना सता रहीं
    क्यू तोड़ रही माँ की चूड़ी
    क्यू पोंछ रही लाली और बिंदी
    देखो माँ कितना रोती है
    'नंदू के बाबा' चिल्लाती है
    जब जागेंगे बाबा तब उनसे
    खूब शिकायत लगाऊँगा
    बाबा को कहकर
    माँ को नई चूड़ी दिलवाऊँगा
    जीजी बाबा कब जागेंगे
    मिठाई,खिलौने कब लायेंगे
    बोलो ना जीजी बाबा कब जागेंगे

    आपकी पंक्तियों के समक्ष अपनी पंक्तियों को रखने की मेरी धृष्टता को क्षमा करिएगा आदरणीया दीदी जी पर क्या करूँ आपकी पंक्तियों ने मुझे ऐसा बाँधा कि लिखे बिना रह ना सकीं।
    बहुत सुंदर करुणा से परिपूर्ण हृदयस्पर्शी रचना है और सच कहूं तो आपकी पंक्तियाँ पढ़कर आंखें नम और मन व्याकुल हो उठा।
    काश आए दिन यूँ बेरहम हो किसी की जान लेने वाले एक बार ऐसे अन्य नंदू के बारे में सोचते इनके परिवार के बारे में सोचते... खैर आपकी कलम को कोटिशः नमन आदरणीया दीदी जी।
    सुप्रभात सादर नमन 🙏

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  12. सत्य कहूँ तो आदरणीया अनु जी आपकी इस रचना का मर्म बड़ा ही गहरा और दुःखद है। जहाँ एक तरफ आप ने नंदू की माँ का दो व्यक्तित्व प्रस्तुत किया है वहीं नंदू को एक ही अवस्था में चित्रित किया है जो रचना को एक नया आयाम देती है। ऐसी मार्मिक रचनाएं बहुत ही दुर्लभ पढ़ने को मिलती हैं। रचना की भाव-भंगिमा देखकर यह लगता है कि इस पर गहन मंथन और चिंतन किया गया है। जिसमें डूबकर स्वयं रचनाकार, इस क्षण की अनुभूति करता है।  क्षमा करिएगा, रचना में कहीं-कहीं  मात्रा एवं चन्द्रबिन्दु की कमी खटकती है इसे दूर करें। पुनः क्षमा करें आपकी और रचनाएं पढ़ने न जा सका जिससे कि उनका मर्म समझने में मैं अभी असमर्थ हूँ।  सादर 'एकलव्य'  

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  13. संघातिक और मार्मिक दृश्य उत्पन्न करती हृदय स्पर्शी रचना ।कैसे खुशियों की दुनिया एक पल में उजड़ जाती है अनदेखे आतंक से ।
    अप्रतिम अभिव्यक्ति।

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  14. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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