जीवन बढ़ चला
सांध्य बेला की ओर ...!
सूरज ने भी रक्तिम आभा बिखेर
स्वागत किया मेरा...!
यूँ लगे कल ही तो
चलना शुरू किया था...!
मैंनें ....
थाम उंगलियां...बाबा की,
गिरकर चला, चलकर बढ़ा ,
प्रतिपल, प्रतिक्षण , अग्रसर
बढ़ता रहा जीवन पथ पर सदैव...!
हर मौसम ने छुआ मुझे...!
हर मौसम ने तरल किया ... मुझे।
नित नए अनुभवों को जीता,
हर रस को पिया मैंने
कभी लगा नहीं बालों की चांदनी छिपाऊँ ,
जी लिया हूँ जीभर कर
पर.....
अब तो थकावट-सी होने लगी है ...!
जीवन सांध्य भी ऊँधने लगी है
दस्तक धीमे से कानों में गूंजने लगी है
चलो अब चलते हैं..
सांसो में पाबंदियां-सी लगने लगी हैं ।
यों लगे बार- बार ,
सूरज भी कहता हो
मुझसे..!!
इस पोशाक को उतार
नयी को धारणकर नव प्रवेशद्वार में प्रवेश कर....!!!
इस क्षितिज से उस क्षितिज तक जाने की।
अग्रिम तैयारी कर..!!
#अनीता लागुरी ( अनु )
अब तो थकावट-सी होने लगी है ...!
जीवन सांध्य भी ऊँधने लगी है
दस्तक धीमे से कानों में गूंजने लगी है
चलो अब चलते हैं..
सांसो में पाबंदियां-सी लगने लगी हैं ।
यों लगे बार- बार ,
सूरज भी कहता हो
मुझसे..!!
इस पोशाक को उतार
नयी को धारणकर नव प्रवेशद्वार में प्रवेश कर....!!!
इस क्षितिज से उस क्षितिज तक जाने की।
अग्रिम तैयारी कर..!!
#अनीता लागुरी ( अनु )