लौट आना उस शहर में
दोबारा
जहाँ मेरी सांसें अंतिम
कहलाईं
जहां धुंध-धुंध जलती रही मैं
और दिल बर्फ़-सा रिसता रहा
नष्ट होता वजूद मेरा,
कहानियां कहता रहा।
वो खेतों से गुज़रती
नन्हीं पगडंडियां..!!
वो पनघट की उतरती-चढ़ती सीढ़ियां ।
जहाँ अक्सर तुम मेरे
अधरो की मौन भाषा
पढ़ा करते थे
और हमें देख
शर्म से लाल सूरज
छुप जाया करता था
वो कोयली नदी का
हिम-सा पानी
जहां मेरे पैरो की बिछुए
अक्सर गुम हो जाया करते थे
और तुम्हारे हाथों का स्पर्श
मुझे सहला जाता था ह्रदय के कपाटों तक
वो पनधट पर हँसी-ठिठोली करती पनिहारिन
जिनकी चुहलबाज़ी
तुम्हें परेशान किया करती थी
और तुम मेरा हाथ थामे
चल देते थे
क्रोध की ज्वाला लिए...
और मैं हँस पड़ती
मानो मुझे कोई ...
तुमसे छीन ले चला....!!
एक और बार चले आओ .....
उस शहर में दोबारा
जहां हर दीवार पर
तुमने नाम मेरा लिखा था
शायद रुह को मेरी
तेरी यादों से रिहाई मिल जाए..!!!
#अनीता लागुरी (अनु)
चित्र साभार : गूगल
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