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मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

तुम क्यों नहीं..?

रिश्तों के दरकने का ख़म्याज़ा 
सिर्फ़  मैं ही क्यों भुगतूँ
तुम क्यों नहीं..?
सवाल जो उठ आये मुझपर 
सभी की
उन सवालों की झड़ी
तुम पर क्यों नहीं..?
तुम्हारी नज़रें अभी भी नीचे नहीं हैं
पर मेरी नज़रों का क्या क़ुसूर
तुम्हें वह दर्द दिखता क्यों नहीं...??
हालात मैंने बनाये या तुमने
ये सवाल सुई की तरह मुझे चुभते हैं
पर शायद तुम्हें क्यों नहीं..?
अपने अहं के साथ तुम जीते रहे
तिल-तिल दर्द के साथ मैं मरती रही
पर मेरे जीने की वजह तुम क्यों नहीं..??
एक मैं ही क्यों वजह बनती रही
तुम्हारी हर दी हुई बात की
पर कमाल है दुनिया की नज़रों में तुम क्यों नहीं..?
तुम मेरे तने को काटते रहे
और मैं अधमरी पेड़ बन 
चुपचाप ज़ख़्मों को सीती रही।
यह दर्द तुमने कभी सहा ही नहीं..?
चीख़ना चाहती हूँ इन बंद दरवाज़ों के पीछे
ये स्याह अँधेरे मुझे डराते हैं।
पर तुम इन अँधेरों से डरते क्यों नहीं..?


#अनीता लागुरी 'अनु'