रविवार, 20 अक्टूबर 2019

सूरज संग संवाद..!!

हाँ पहली बार देखा था सूरज को
सिसकते हुए...!!
दंभ से भरे लाल गोलाकार वृत्त में
सालों से अकेले खड़े हुए..!!
हमारे कोसे जाने की अवधि में
स्थिर वो सुनता रहा है सब कुछ
उसकी भी संवेदनाएँ ...!
प्रभाव छोड़ती है..!!                                        
जब वो आग के गोलों में तब्दील,
अपनी मारक शक्तियों का प्रयोग करता है
धरती जलती है ..!!
उसके  क्रोध के सामने,
पशु ,पक्षी ,इंसान  रहम मांगते हैं..!!
जब वो अपने अंदर की आग को,
बाहर उबालकर रख देता है                                  
ऐसा प्रतीत होता है..!!
उसे भी संवाद प्रिय होगा,
 किसी के  सानिध्य को
 तरसता..
सदियों से अकेले खड़े होकर जलने की
सजा से व्याकुल..!
वो भी कितना कराहता होगा,
मिन्नतें दरख़्वास्त सारी उसकी
जल गयीं होंगीं ख़ुद की उसकी आग में
क्या वो अभिशप्त है...?
यों सदियों से अब तक जलते रहना..
उसकी नियति में लिखा भयानक सच है..!

#अनीता लागुरी "अनु"


28 टिप्‍पणियां:

  1. .. बहुत-बहुत धन्यवाद यशोदा जी पाँच लिंको के आनंद में मुझे सम्मिलित करने के लिए मैं जरूर आऊंगी

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  2. मानवीकरण का खूबसूरत प्रयोग।
    प्रेमी की स्तिथि और भाव दोनों को उम्दा अंदाज में प्रस्तुत किया है।
    प्यारी रचना।
    मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है 👉👉  लोग बोले है बुरा लगता है

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    1. .. सुप्रभात रोहितास जी, एवं बहुत-बहुत धन्यवाद इतनी अच्छी प्रतिक्रिया हेतु.!!

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  3. वाह! भावों का प्रगाढ़तम निकष! बधाई!!!

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    1. सुप्रभात...... बहुत-बहुत धन्यवाद विश्व मोहन जी!!

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (23-10-2019) को    "आम भी खास होता है"   (चर्चा अंक-3497)     पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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    1. जी बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय चर्चा मंच के लिंक पर खुद को पाना एक बहुत बड़ी खुशी की बात है मैं जरूर आऊंगी

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  5. बहुत सुन्दर...
    उसे भी संवाद प्रिय होगा,
    किसी के सानिध्य को
    तरसता..
    सदियों से अकेले खड़े होकर जलने की
    सजा से व्याकुल..!
    वाह!!!!

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    1. . बहुत-बहुत धन्यवाद सुधा जी आपको मेरी रचना पसंद आई

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  6. उत्तर
    1. .. जी बहुत-बहुत धन्यवाद पूरी तरह से जारी रखूंगी

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  7. बहुत सुंदर रचना अनु तुम्हें पढ़ना सदैव नवीनतम भावों को सृजित करता है।
    खूब लिखो लेखनी की धार बढ़ती रहे।

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  8. बहुत-बहुत धन्यवाद श्वेता जी आपकी प्रतिक्रिया हमेशा और बेहतर लिखने को प्रेरित करती हैं

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  9. अनु दी,अकेलापन इंसान को अखरता हैं... सुना था जानवरो को भी अखरता हैं। प्रेम जानवरों को हुई चाहिए। लेकिन सुरजबक अकेलापन...बहुत सुंदर कल्पना।

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    1. इंसान पशु पक्षी पेड़ सबकी जीवन में प्रेम की बारी आई फिर वह सूरज क्यों अकेला सोचा चलो आज उसे भी प्रेम के बंधन में बांध दूं बहुत अच्छी लगी आपकी प्रतिक्रिया

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  10. बहूत हि गहरे जजबात और भावना को प्रस्तुत करती आपकी यह रचना सब कुछ दिल मे उतर गया....!

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  11. . बहुत-बहुत धन्यवाद संजय जी इतनी अच्छी प्रतिक्रिया हेतु

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  12. .. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका देव सांकृत्यायन जी

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  13. .. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका देव सांकृत्यायन जी

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  14. Anu ji,

    चर्चामंच का ये उपकार हे हम सब पर ,...हमे इक दूजे  mila देता है 
    ब्लॉग तक पहुँचने और रचना को सराहने के लिए बहुत आभार बहुत ही स्नेहिल शब्दों के लिए हृदय से धन्यवाद साथ बनाये रखे 

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    जब वो आग के गोलों में तब्दील,
    अपनी मारक शक्तियों का प्रयोग करता है
    धरती जलती है ..!!

    बहुत ही अच्छे भाव उकेरे हैं आपने 

    सदियों से अकेले खड़े होकर जलने की
    सजा से व्याकुल..!
    वो भी कितना कराहता होगा,

    :)

    तने उग्र भाव से ओत प्रोत रचना के दिल में कितना शून्य सा ठंडापन  

    saarthak rchnaa ke liye bdhaayi

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    उत्तर
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद #जोया जी मुझे भी बेहद खुशी है कि मैं आप सी शख्सियत से मिल पाई..... मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, हमेशा साथ बनाए रखें सादर..💐

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  15. सृष्टि की हर वस्तु में संवेदना तलाशना एक कवि का उत्कृष्ट रूप है ।
    बहुत सुंदर रचना ।

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    1. .. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका आपकी प्रतिक्रिया ने मन हर लिया 💐.!!

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