उस धुँए में कुछ पक रहा था
शायद कुछ सपने..!
कुछ रोटी के कुछ खीर के,
या शायद दाल मास के,
गीली लकड़ियाँ भी सुलग रही थी
उस माटी के हाँडी के संग..!
वो हाँडी ही जाने,
क्या समाया था उसमें,
पर लकड़ी के पीढ़े पर बैठा छोटू
बुनने लगा था सपने हजार,
अम्मा की आँखों मे छलक आयेआँसू
कहा तेरे ही सपने है,
रुक परोसती हूँ,
अनीता लागुरी "अन्नु"☺️
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जवाब देंहटाएंसंतान के सपनो को साकार करने के पीछे अभिभावकों की मेहनत और त्याग का महत्वपूर्ण सहयोग होता है।
जवाब देंहटाएंगजब की अभिव्यक्ति।
आइयेगा- प्रार्थना
भावपूर्ण सृजन अनु जी।
जवाब देंहटाएंवैसे तो हर माता-पिता अपने आंखों के तारे के लिए चांद -तारा भी तोड़कर लाने प्रयत्न करते हैं ।उनके हर स्वप्न को साकार करने के लिए अपनी इच्छाओं की आहुति दे देते हैं।
पर सत्य तो यह भी है कि कभी -कभी अभिभावक अपने सपने को अपने बच्चों के माध्यम से साकार करने के लिए उस पर इतना भार डाल देते हैं कि उसमें स्नेह नहीं उनकी महत्वाकांक्षा झलकने लगती है।
जवाब देंहटाएंउस धुँए में कुछ पक रहा था
शायद कुछ सपने..!
कुछ रोटी के कुछ खीर के,
या शायद दाल मास के,
बेहतरीन व लाजवाब सृजन अनु जी ।
कुछ रोटी के, कुछ खीर के,
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी को हर रोज चलाने के,
सही में चूल्हे पर सपने पलटे है।
बेहतरीन सृजन अनु जी
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना को मेरी धरोहर ब्लॉग पर 27 फरवरी 2020 को साझा की गई है
जवाब देंहटाएंसादर
मेरी धरोहर
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (28-02-2020) को धर्म -मज़हब का मरम (चर्चाअंक -3625 ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
आँचल पाण्डेय
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबेहद हृदयस्पर्शी
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण लाजवाब सृजन
जवाब देंहटाएंवाह!!!
भावों के सफर पर छोटू के सपने ... बहुत ही अद्भुत अनु जी
जवाब देंहटाएंतेरे ही सपने है,
जवाब देंहटाएंरुक परोसती हूँ,
hmmm...aakhiri line ne sab keh diyaa ....
bahut achhi rchnaa Anu
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (28-02-2020) को पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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आँचल पाण्डेय
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (28-02-2020) को ammu पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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आँचल पाण्डेय