एक दिन शहर ने कहा मुझसे
मेरे हिस्से में सुकून कब आएगा..?
समेटे फिरता हूँ सबको ख़ुद में..,
भला मेरे लिए साँसें कौन लेगा...!!
मेरे हिस्से में सुकून कब आएगा..?
समेटे फिरता हूँ सबको ख़ुद में..,
भला मेरे लिए साँसें कौन लेगा...!!
कौन होगा जो दो घड़ी बातें करेगा मुझसे
पूछेगा मुझसे क्या शहर
पूछेगा मुझसे क्या शहर
शहर होने से
तुम थक तो नहीं गये...?
कितनी फैली है ज़मीन तुम्हारी
कितना चलते हैं लोग तुझ पर
तुम थक तो नहीं गये...?
कितनी फैली है ज़मीन तुम्हारी
कितना चलते हैं लोग तुझ पर
रातों को भी नींद नसीब नहीं
लोग आते हैं थककर सुस्ताने तुझ तक
तुम्हारे तो पंख भी नहीं हैं
कि तुम उड़ जाओ सब छोड़कर
लोग आते हैं थककर सुस्ताने तुझ तक
तुम्हारे तो पंख भी नहीं हैं
कि तुम उड़ जाओ सब छोड़कर