नंदू
नंदू दरवाजे की ओट से,
निस्तब्ध मां को देख रहा था...
मां जो कभी होले से मुस्कुरा देती
तो कभी दौड़ सीढ़ियों से उतर
अंगना का चक्कर लगा आती..!
तू कभी चूल्हे पर चढ़ी दाल छोंक आती..
माँ,, आज खुश थी बहुत
अब्बा जो आने वाले थे आज
चार सालों के बाद..
निकाल लाई संदूकची से कानों की बालियां..
और लगा..!!
माथे पर लाली
बालों में गजरा...!
और पहन वो साड़ी नारंगी वाली,
खुद ही मन ही मन शरमा जाती
मां को देख मेरा भी मन हर्षाया
जो कभी पायल बजाती रुनझुन रुनझुन..
और कभी मुझे उठाती गोद में
आज मां खुश थी बहुत
मांगी थी दुआ भगवान से
दे देना लंबी उम्र मेरे सुहाग को
पर...?
अब भी नंदू मां को देख रहा था
मां जो अब चुप थी...
मां जो अब खामोश थी
कुछ कह रही थी तो माँ की आँखे
और आंखों से बहती जल की निर्मल धारा
ताई ने तोड़ी मां की चूड़ियां
पोंछ डाला लाल रंग माथे का
ओर बिखेर दिया मां का जुड़ा
नोच डाला वह चमेली के फूल
पल में बदल गई थी दुनिया हमारी
जहां गूंज रही थी मां की हंसी
अब गूंजने लगे थे सिसकियों के सुर..!
अब्बा आए तो जरूर थे
पर चार कंधों में लेट कर
चंद बे मकसद बेरहम लोगों ने
दागी थी गोलियां उनके सीने पर
और मैं अब भी मां को देख रहा हूँ
दरवाजे की ओर से निस्तब्ध...!!
अनीता लागुरी अनु🍁🍁
भावों को शब्दों में अंकित करना और अपना नज़रिया दुनिया के सामने रखना.....अपने लेखन पर दुनिया की प्रतिक्रिया जानना......हाशिये की आवाज़ को केन्द्र में लाना और लोगों को जोड़ना.......आपका स्वागत है अनु की दुनिया में...... Copyright © अनीता लागुरी ( अनु ) All Rights Reserved. Strict No Copy Policy. For Permission contact.
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रविवार, 3 नवंबर 2019
नंदू...!!
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