चित्र गूगल से साभार
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एक बौराये हुए कवि ने
आर्ट गैलरी में घूमते हुए,
मुस्कुराती हुई मोनालिसा की
पेंटिंग से पूछा..!
तुम मुस्कुरा रही हो
या फिर मैं तुम्हें देखकर
मुस्कराने की तैयारी कर रहा हूँ
सच है तुम्हारी मुस्कान सिर्फ़
रेगिस्तान में नागफनी ही उगा सकती है
जर्जर पड़े मकानों में
इंद्रधनुष नहीं उगा सकती हैं
मोनालिसा की पेंटिंग ने
तीखी की अपनी बरौनियाँ
और कह डाला कवि से
तुम 21वीं सदी के कवि हो
मैं 1503 का एक अनसुलझा रह्स्य
मेरी मुस्कान में विलुप्त कुछ भी नहीं
तुम आज भी अपने ही सवालों के घेरे में
अपनी अंतरआत्मा को कोसते हुए
विकल्प तलाशते हो
परंतु मेरी स्थिर मुस्कान
कई शताब्दियों तक भी यों ही क़ाएम रहेगी
क्योंकि मैं विकल्प नहीं
विकल्प मुझे तलाशते हैं।
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#अनु लागुरी