शनिवार, 10 नवंबर 2018

माँ


 न जाने कौन से देश तू बसती है

 अक्सर तेरी याद रह-रह आती है

 समेटने बैठी हूँ तेरी यादों को

 पर कागज़  के पन्नों में भी तू नहीं समाती है!

 आँख खुली थी गोद में तेरी

 पर तू ने दम तोड़ा हाथों में मेरे..!!

 मैंने कहा मत जाओ माँ 

 तूने कहा तेरी शरारत अब सही नहीं जाती,

 थक गयी हूँ बिटिया मेरी

 अब धूल में लोटने की मेरी बारी,

 माँ तू तो चल दी जाने किस देश, शहर में

 पर जब भी कसकर जुड़ा बाँधूँ 

 कड़वे  नीम का एहसास आँखों को रुला जाता है मेरे,

 चंदा की लोरियाँ सुनाते-सुनाते तू ख़ुद  ही चल दी चंदा के घर ,

 आ देख शरारत मेरी

 सर पर डाल तेरी शादी का जोड़ा,

 आँचल  को गंदा कर बैठी हूं

चाहती हूँ  तू पास आकर मेरे

 फिर से लगा दे गालों पे चपत मेरी।

 और प्यारी सी झिड़की देकर मुझसे कहे

 तुझे कब अक्ल आएगी



      @अनीता लागुरी "अनु"