तापस!
मेरी डायरियों के पन्नों में,
रिक्तता शेष नहीं अब,
हर सू तेरी बातों का
सहरा है..!
कहाँ डालूँ इन शब्दों की पाबंदियाँ
हर पन्ने में अक्स तुम्हारा
गहरा है...!
वो टुकड़ा बादल का,
वो नन्हीं-सी धूप सुनहरी,
वो आँगन गीला-सा
हर अल्फ़ाज़ यहाँ पीले हैं।
तलाशती फिर रही हूँ..
शायद कोई तो कोना रिक्त होगा...!
वो मेरा नारंगी रंग....!
तुम्हें पढ़ने की मेरी अविरल कोशिश..!
और मेरे शब्दों की टूटती लय..!
वो मेरी मौन-मुखर मुस्कान..
कैसे समाऊँ पन्नों में ..!
हर सू तेरी यादों का सहरा है।
तापस..!
कहाँ बिखेरूँ इन शब्दों की कृतियाँ
यहाँ रिक्तता शेष नही अब...!
तुम्हारी मृदुला
#अनीता लागुरी 'अनु'