अधखुली खिड़की से,
धुएं के बादल निकल आए,
संग साथ में सोंधी रोटी की
ख़ुशबू भी ले आए,
धुएं के बादल निकल आए,
संग साथ में सोंधी रोटी की
ख़ुशबू भी ले आए,
सुलगती अंगीठी
और अम्मा का धुआँ-धुआँ
होता मन..!
और अम्मा का धुआँ-धुआँ
होता मन..!
कभी फुकनी की फूं-फूं
तो कभी अंगना में
नाचती गौरैया ...ता-ता थईया..!
तो कभी अंगना में
नाचती गौरैया ...ता-ता थईया..!
बांधे ख़ुशबुओं की पोटली
सूरज भी सर पर चढ़ आया..!
जब अम्मा ने सेकीं रोटियां तवे पर...!
सूरज भी सर पर चढ़ आया..!
जब अम्मा ने सेकीं रोटियां तवे पर...!
नवम्बर का सर्द सवेरा भी
ख़ुद पे शरमाया....!
जब अधखुली खिड़की से....धुएं
का बादल निकल आया....!
ख़ुद पे शरमाया....!
जब अधखुली खिड़की से....धुएं
का बादल निकल आया....!
#अनु
चित्र साभार - गूगल
चित्र साभार - गूगल
बहुत मनमोहक लिखा आपने अनु जी। माटी की सुगंध भर गयी मन में...वाह्ह्ह👌
जवाब देंहटाएंजी बेहद आभार आपका स्वेता जी,
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया जान मन प्रफुलित हो गया....!
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंजी आभार....अनिल जी..!
हटाएंबहुत ही खूबसूरत पांति
जवाब देंहटाएंbeautiful expression with emotions and feelings
जवाब देंहटाएंजी बेहद आभार आदरणीया,आपने मेरी रचना को" पांच लिंको का आंनद 'के रविवरीय समुह मे शामिल किया..! मेरे लिए प्रसन्नता की बात हे कि आप सभी दिग्गज महानुभवो के मध्य कुछ सीख सकुं ..जी धन्यवाद ...!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कृति !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात ....ध्रुव जी ,
हटाएंह्राद्विक प्रसन्नता हुई, आपकी प्रतिक्रिया जानकर ...धन्यवाद आपका,आपको मेरी रचना पंसद आई..!
वाह!सुंंदर रचना..
हटाएंभावों से भरी सुन्दर रचना .
जवाब देंहटाएंजी बेहद आभार मीना जी,
हटाएंआपको मेरी रचना अच्छी लगी...!!!
bahut sunder...
जवाब देंहटाएंkitni sadgi hai.....manmohak
सुलगती अंगीठी और
जवाब देंहटाएंअम्मा का धुंआ धुंआ
होता मन..!...बहुत खूब कहा अनु जी...
सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुशील जी..🙇
हटाएंधन्यवाद सुशील जी..🙇
हटाएंबहुत लाजवाब...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
धन्यवाद सुधा जी,
हटाएंआपने सराहा..!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंप्रिय अनु -- घर के आँगन की सौंधी महक है आपकी रचना में --------- स्स्नेग --
जवाब देंहटाएंवाह !!! बदलते वक़्त के साथ परिवेश में अनेक तब्दीलियां आयीं हैं। पर उस सौंधी महक का नहीं कोई सानी। आपकी यह रचना सीधे बचपन में ले जाती है उन्हें जो कभी चूल्हे की आंच का अनुभव ले चुके हैं। बिषय को बड़ी सरलता, भाव गाम्भीर्य और सरसता के साथ प्रस्तुत करना आपके काव्य सृजन का अनूठापन है। लिखते रहिये। बधाई एवं शुभकामनाऐं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंजी आभार लोकेश जी.!!!
हटाएंसर्दी का मौसम और धूवें से उठती मास के हाथों की ख़ुशबू ...
जवाब देंहटाएंआपने तो केनवास खड़ा कर दिया है ... यादों के गलियारे में ले जाती रचना ...
जी धन्यवाद दिगमबर जी, बेहद खुशी हुवी आपकी प्रतिक्रिया जानकर.की अधखुली खिड़की से आपसभो ने यादो के गलियारे मे प्रवेश किया ...जी मन मे उर्जा भरती आपकी टिप्पणी अहम हे ...धन्यवाद ।
हटाएंहर एक पंक्तियाँ अद्भुत सुन्दर है जिसे आपने बेहद खूबसूरती से प्रस्तुत किया है
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद संजय जी,आपने सराहा...!!
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