शुक्रवार, 17 नवंबर 2017

अधखुली खिड़की से...

अधखुली खिड़की से,
धुएं के बादल निकल आए,
संग साथ में  सोंधी रोटी की
ख़ुशबू भी ले आए,                            
सुलगती अंगीठी
 और अम्मा का धुआँ-धुआँ
  होता मन..!
कभी फुकनी की फूं-फूं
तो कभी अंगना में
नाचती गौरैया ...ता-ता थईया..!
बांधे ख़ुशबुओं की पोटली
सूरज  भी सर पर चढ़  आया..!
जब अम्मा ने सेकीं रोटियां तवे पर...!
नवम्बर का सर्द सवेरा भी
 ख़ुद पे शरमाया....!
जब अधखुली खिड़की से....धुएं
का बादल निकल आया....!
 #अनु

चित्र साभार - गूगल 

28 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत मनमोहक लिखा आपने अनु जी। माटी की सुगंध भर गयी मन में...वाह्ह्ह👌

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    1. जी बेहद आभार आपका स्वेता जी,
      आपकी प्रतिक्रिया जान मन प्रफुलित हो गया....!

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  2. जी बेहद आभार आदरणीया,आपने मेरी रचना को" पांच लिंको का आंनद 'के रविवरीय समुह मे शामिल किया..! मेरे लिए प्रसन्नता की बात हे कि आप सभी दिग्गज महानुभवो के मध्य कुछ सीख सकुं ..जी धन्यवाद ...!

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  3. उत्तर
    1. सुप्रभात ....ध्रुव जी ,
      ह्राद्विक प्रसन्नता हुई, आपकी प्रतिक्रिया जानकर ...धन्यवाद आपका,आपको मेरी रचना पंसद आई..!

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  4. भावों से भरी सुन्दर‎ रचना‎ .

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    उत्तर
    1. जी बेहद आभार मीना जी,
      आपको मेरी रचना अच्छी लगी...!!!

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  5. सुलगती अंगीठी और
    अम्मा का धुंआ धुंआ
    होता मन..!...बहुत खूब कहा अनु जी...

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  7. प्रिय अनु -- घर के आँगन की सौंधी महक है आपकी रचना में --------- स्स्नेग --

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  8. वाह !!! बदलते वक़्त के साथ परिवेश में अनेक तब्दीलियां आयीं हैं। पर उस सौंधी महक का नहीं कोई सानी। आपकी यह रचना सीधे बचपन में ले जाती है उन्हें जो कभी चूल्हे की आंच का अनुभव ले चुके हैं। बिषय को बड़ी सरलता, भाव गाम्भीर्य और सरसता के साथ प्रस्तुत करना आपके काव्य सृजन का अनूठापन है। लिखते रहिये। बधाई एवं शुभकामनाऐं।

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  9. सर्दी का मौसम और धूवें से उठती मास के हाथों की ख़ुशबू ...
    आपने तो केनवास खड़ा कर दिया है ... यादों के गलियारे में ले जाती रचना ...

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    1. जी धन्यवाद दिगमबर जी, बेहद खुशी हुवी आपकी प्रतिक्रिया जानकर.की अधखुली खिड़की से आपसभो ने यादो के गलियारे मे प्रवेश किया ...जी मन मे उर्जा भरती आपकी टिप्पणी अहम हे ...धन्यवाद ।

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  10. हर एक पंक्तियाँ अद्भुत सुन्दर है जिसे आपने बेहद खूबसूरती से प्रस्तुत किया है

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