रविवार, 13 अक्टूबर 2019

मैं जानता हूँ,

            मैं जानता हूँ,
     एक दिन मैं गिर पडूँगा,
 मेरे घुटने शायद छिल जाएँ  तब,
शायद तब पीछे मुड़कर देखूँगा,
टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों से गुज़रती...
अपने जीवन के साठवें  साल को,
जहाँ खोने के लिए अब  कुछ भी नहीं,         
कुछ यादों को बेशक संभालना चाहता हूँ
 जब जीवन में बसंत का साम्राज्य था,
 पता ही नहीं चला...!!
जीवन रूपी नाव ने कब गति पकड़ी,
 भंवरों से उभरता हुआ..
अनंत की ओर बेसबब बढ़ता रहा हूँ मैं.. .!!
अब क्या कहूँ... जीवन का गणित,
वर्गाकार से गोलाकार में परिवर्तित हो चुका है...!!
 शून्य की परिकल्पना न चाहते हुए भी,
जमे हुए घुटनों में दर्द जोड़ देती है...!!

 #अनीता लागुरी "अनु"

गुरुवार, 10 अक्टूबर 2019

धूमिल होते गए बापूजी..!!

जलते रहे तुम रात भर
🌿🍁🍂🍁🍂🍁🍂
 जलते रहे तुम रात भर,
राख होते रहे तुम रात भर,
 अग्नि में भस्म होते हुए
देखता मैं,रहा तुम्हें ,रात भर

  आँसू महीनों तक ना सूखे।
चरखा भी घूमता रहा अनवरत
सत्य और अहिंसा के तागे से,
बुन ली आज़ादी की ताबीर...!

  बेशक आवाज़ ना थी तेरी लाठी में
 पर उसकी खामोश ताकत ने,
 लहर ऐसी बनाई...!!!
की दांडी से छिटका नमक,
अंग्रेजो के भोजन को बेस्वाद कर गया,

तू फिरता रहा एक कपड़े में
करता रहा बातें अहिंसा की
 बिना एक भी रक्त गिराए
आजादी का मार्ग किया प्रशस्त तूने,

लांछन लाख लगे तुझ पर....
 किरकिरी तु बन गया आंखों की,
 फिर भी तटस्थ खड़ा रहा.तु,
बनकर अंधा ,बहरा और गूंगा..!!

लेकिन ये नौजवान पीढ़ी क्या जाने,
 दे रहे हैं तुझ को जो  आज गाली
 सत्य अहिंसा के बल पर
 अंग्रेजों ने मुंह की खाई थी...!

हां कहीं  बहे थे खून जरूर
और कहीं चली थी मुख की कोमल वाणी,
पर नासमझो ऐसे ही कुछ पाई थी, हमने आजादी
 कहीं पर गिरा था रक्त तो....
किसी ने मारी थी सीने में गोली..!!

 चिता की राख तो ठंडी हो गई
पर .फजाओं में ये कौन सा जहर घुल गया..!
 हर दूसरा शख्स घुट रहा यहाँ,
न जाने ये कैसा हिंदुस्तान बन गया...?
 गांधी गांधी ना रहे
 अब बापू ना कहे कोई ..?
 टूट गई उनकी वो लाठी..!
अहिंसा के बल पर जो चलती थी,

 है नमन बापूजी तुझको,
 कभी तो वापस आएंगे..!!
वक्त रहा ना कभी किसी का
 ये जहर भी उड़ जाएगा...!!
धूमिल हो रही तेरे विचारों पर
एक नया सूरज फिर से उग आएगा
...🍁🍂🍁🍂🍁??????
         #अनु

प्रश्न..!!

प्रश्न तो बस प्रश्न होते हैं,
तीखे से ,मीठे से,कुछ उलझे से
कुछ जज्बाती से,
तो कुछ हमेशा की तरह अनुत्तरित से।
यहां कुछ प्रश्न..?
मैंने भी पुछा ,
मां से अपनी...?
क्यो लड़के की चाह में,
मुझे अजन्मे ही मारने चली..?
क्यों छठे माह तक,
बिना किसी भय के ,
सींचती रही रक्त से अपने..!
सुनाती रही लोरी,
और सहलाती रही
उदर को अपने...!!
हर बीतते पल के साथ,
मुझ खुन के टुकड़े को
नख, शिख ,दंत से क्यों
सांवारती रही...?
और करती रही मजबूत
रिश्ता हमारा,
फिर ऐसा क्या हुआ,
मां....?
किसने तुझे कमजोर बनायां
किसने तुझे कहा,
लड़के ही वंश बड़ाते है,
ये मुई लड़कियां तो बस बोझ होती है।
एक बार आने तो दिया होता,
दुनिया में तुम्हारी,
पर ....!
तु इतना भी ना कर सकी,
मेरी मां,
लड़ जाती मेरी खातिर सबसे
और रख ये प्रश्न....!
पुछती सबसे...!
क्या हुआ जो गर ये
लड़की है...!
है तो मेरा ही अंश..
मैं लाउंगी इसे
इस दुनिया में..!
इसे जीने का अधिकार
मैं दुंगी..!
पर तुने नहीं कहा,
और छोड़ दिया मुझे अकेला।
और मैं बिना जन्मे ही
चल दी , तुम्हारी दुनिया से दुर..!
और आज मौका मिला तो
मैंने भी पुछ लिया ये
प्रश्न ..!
ना जाने फिर कभी
मौका मिले या नहीं,
इस अजन्मे बच्चे को
तुमसे संवाद का ...

बुधवार, 9 अक्टूबर 2019

बस करो..!!

मैं कब तक चीखती रहूं चिल्लाती रहूं ....ये तो अंधे हैं बहरे हैं, गूंगे हैं । इनकी आत्माएं मरी हुई है...  मुझे मार कर संतुष्ट होते हो ना लो मारो मुझे मेरी चमड़ी के हर हिस्से को लाल कर दो और जब मैं चीखना चाहूं बांध के  कपड़ा मेरे मुंह में वही कोने में मुझे फिकवा  दो.....  बस बर्दाश्त करना आता है मुझे ..... जानती हूं जब मैं दर्द से बिलखती हूं तुम्हारे चेहरे पर असीम संतुष्टि के भाव उत्पन्न होते हैं एक विजेता की गर्वान्वित मुस्कान तुम अपने होठों पर लाते हो और चीखकर कहते हो और लड़ाईगी जुबान मुझसे  .... और मैं गूंगी जुबान अंदर ही अंदर चीखने की भरपूर कोशिश करती हूं,    और वही उस ठंडे फर्श में पड़े-पड़े सुबह होने का इंतजार करते करते एक ओर रात मर मर के गुजार देती हूं,
                                                अनु

गुरुवार, 24 जनवरी 2019

आरक्षण : एक ज्वलंत और सम्वेदनशील मुद्दा

भोपाल से प्रकाशित दैनिक लोकजंग में सम्पादकीय पृष्ठ पर 15 जनवरी 2019 को प्रकाशित मेरा लेख-  
आरक्षण : एक ज्वलंत और सम्वेदनशील मुद्दा 
अनीता लागुरी "अनु"

आरक्षण का संक्षिप्त परिचय- 
            सरकारी भाषा में समाज चार श्रेणियों में विभक्त है- अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग एवं सामान्य वर्ग।  1951 की जनगणना के आधार पर सदियों से हाशिये पर धकेल दी गयीं सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से वंचित-शोषित अनुसूचित जनजातियों एवं अनुसूचित जातियों को सम्विधान निर्माता स्वर्गीय डॉ. भीमराव अम्बेडकर की पहल पर  क्रमशः 7.5% , 15 %  आरक्षण सरकारी नौकरियों में इनकी जनसँख्या  के अनुपात में प्रतिनिधित्व तय किया गया। आरम्भ में यह 10 वर्ष के लिये तय हुआ था जिसे राजनैतिक और अन्य कारणों से नियमित बढ़ाया जाता रहा है। 1990 में भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने वर्षों से प्रतीक्षारत अन्य पिछड़ी जातियों के लिये मंडल आयोग की 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफ़ारिश को लागू कर दिया। इसी वर्ष अनुसूचित जनजातियों एवं अनुसूचित जातियों के आरक्षण को भी अगले 10 के लिये बढ़ाया गया था। परिणामस्वरूप देशभर में  आरक्षण के विरुद्ध हिंसक आंदोलन शुरू हो गया जो सामान्य वर्ग की ओर से आयोजित किया गया। अन्य पिछड़ी जातियों को मिले आरक्षण के विरोध में युवाओं ने आत्मदाह तक किये। देश में राजनैतिक अस्थिरता का माहौल पैदा हो गया था।  एक राजनैतिक पार्टी ने संसद में तो अन्य पिछड़ी जातियों के आरक्षण का समर्थन किया लेकिन सड़क पर सामान्य वर्ग के आरक्षण विरोधी आंदोलन को दबे-छिपे  हवा दी जिसकी बाद में  पोल खुल गयी जब देश ने मंडल बनाम कमंडल आंदोलन का सामना किया जिसने समाज में कड़वाहट घोल दी।  
           अन्य पिछड़े वर्ग को मिले आरक्षण की तर्ज़ पर कुछ और जातियों ने इस वर्ग में शामिल होने की माँग को  आंदोलन का रूप दिया जिसमें गुर्जर, जाट, मराठा, पाटीदार आंदोलन प्रमुख हैं। इन जातियों को चुनावी स्टंट के तौर पर आरक्षण देने की कोशिश हुई लेकिन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित आरक्षण की 50% कुल सीमा के नियम के तहत ये प्रयास ख़ारिज होते रहे। 
124 वां संविधान संशोधन -
           संसद के शीतकालीन सत्र की समाप्ति से एक दिन पहले 7 जनवरी 2019 को केंद्र सरकार की कैबिनेट ने आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लिये 10 %  आरक्षण (सरकारी नौकरियों व  सरकारी एवं निजी शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षा के लिये ) का प्रस्ताव पास किया और इसे अगले दिन  8 जनवरी  को लोकसभा ने और (एक दिन के लिये बढ़ाये गये राज्यसभा के कामकाज) 9 जनवरी को राज्यसभा ने दो तिहाई बहुमत से पास कर दिया जिसे  12 जनवरी 2019 को महामहिम राष्ट्रपति की मंज़ूरी मिल गयी है अब इस अधिनियम को  देश की 15 विधानसभाओं से पास कराना अगली चुनौती है। हालाँकि इस सम्विधान संशोधन को विपक्षी दलों ने सत्ताधारी दल की चालाकीभरी चुनावी चाल से सम्बोधित करते हुए अपना समर्थन दिया।  केवल  बिहार के प्रमुख विपक्षी दल और कुछ मुस्लिम साँसदों ने इसका विरोध किया।  प्रस्तावित 10 प्रतिशत आरक्षण (सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमज़ोर नागरिकों के लिये ) के साथ 124 वां सम्विधान संधोधन जो आरक्षण की सीमा 50 % से 60 % किये जाने की सिफ़ारिश करता है, संसद से पास होकर महामहिम राष्ट्रपति की मंज़ूरी तक का सफ़र तय कर चुका है। वर्तमान में अब कुल लागू आरक्षण 59.5%  हो गया है। इसे 10 जनवरी 2019 को  सर्वोच्च न्यायालय में एक एनजीओ द्वारा चुनौती दी गयी है जिसे ज़िरह के लिये स्वीकार कर लिया गया है। 
सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों को आरक्षण पाने की शर्तें-
1. परिवार की सालाना आमदनी 8 लाख रुपये से कम हो। 
2. परिवार के पास 5 एकड़ से कम कृषि भूमि हो। 
3. आवेदक के पास 1000 वर्ग फीट से बड़ा फ़्लैट न हो। 
4. निगम ( म्यूनिसपल्टी ) क्षेत्र में 100 गज़ से बड़ा घर न हो।
5.  ग़ैर निगम क्षेत्र में 200 गज़ से बड़ा घर न हो।   
विशेषज्ञों की राय - 
क़ानून के जानकार कहते हैं कि संविधान में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के लिये आरक्षण देने का प्रावधान नहीं है।  सम्विधान में केवल सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से कमज़ोर वर्ग को आरक्षण के ज़रिये समाज की मुख्यधारा में लाने और प्रतिनिधित्व देने के लिये आरक्षण का प्रावधान किया गया। 
भ्रम - 
मीडिया द्वारा इसे सवर्ण (हिन्दू धर्म का सबल वर्ग) आरक्षण कहा जा रहा है जबकि यह सभी धर्मों के आर्थिक रूप से कमज़ोर नागरिकों के लिये है। 
समाज पर प्रभाव -
       आरक्षण को लेकर सामान्य वर्ग की ओर से सभी प्रकार के आरक्षण को समाप्त कर मेरिट को तरजीह देने की माँग अचानक समाप्त होती प्रतीत होती है। आरक्षण प्राप्त नागरिकों एवं वर्गों के प्रति सामान्य वर्ग की नाराज़गी समाज में सदैव महसूस होती रही है और इसे समाज में व्याप्त नफ़रत का बड़ा कारण माना गया है। अब केंद्र सरकार के प्रयास से समाज के आरक्षण से वंचित वर्ग (सामान्य वर्ग ) को भी आरक्षण की परिधि में शामिल कर लिया गया है तो अब यह देखना दिलचस्प होगा जो वर्ग आरक्षण का मज़ाक़ उड़ाता था अब वही इसका भागीदार बनकर क्या महसूस करता है। क्या अब समाज के सभी वर्गों में प्रतियोगिता की स्वस्थ भावना पनपेगी यह भविष्य के गर्भ में है। 
आरक्षण से ज़रूरी है समान शिक्षा व्यवस्था की सबल नीति जिसके चलते देश के समस्त शिक्षार्थियों को शिक्षा में किसी प्रकार का भेदभाव न झेलना पड़े तभी हम भारत के सुखद भविष्य की तस्वीर देख सकते हैं।
@ अनीता लागुरी "अनु" 



शुक्रवार, 21 दिसंबर 2018

एक दिन शहर ने कहा मुझसे....


एक दिन शहर ने कहा मुझसे
मेरे हिस्से में सुकून कब आएगा..?
समेटे फिरता हूँ सबको ख़ुद में..,
भला मेरे लिए साँसें कौन लेगा...!!
कौन होगा जो दो घड़ी बातें करेगा मुझसे
पूछेगा मुझसे क्या शहर 
शहर होने से
तुम थक तो नहीं गये...?
कितनी फैली है ज़मीन तुम्हारी
कितना चलते हैं लोग तुझ पर
रातों को भी नींद नसीब नहीं
लोग आते हैं थककर सुस्ताने तुझ तक
तुम्हारे तो पंख भी नहीं हैं
कि तुम उड़ जाओ सब छोड़कर
फैला लो हाथों को जितना भी तुम
लोग तुझमें  सिमट ही आयेंगे..
यह शहर शहर का खेल है
लौटकर कहाँ तुम जाओगे?
  @अनीता लागुरी "अनु"