तापस!
मेरी डायरियों के पन्नों में,
रिक्तता शेष नहीं अब,
हर सू तेरी बातों का
सहरा है..!
कहाँ डालूँ इन शब्दों की पाबंदियाँ
हर पन्ने में अक्स तुम्हारा
गहरा है...!
वो टुकड़ा बादल का,
वो नन्हीं-सी धूप सुनहरी,
वो आँगन गीला-सा
हर अल्फ़ाज़ यहाँ पीले हैं।
तलाशती फिर रही हूँ..
शायद कोई तो कोना रिक्त होगा...!
वो मेरा नारंगी रंग....!
तुम्हें पढ़ने की मेरी अविरल कोशिश..!
और मेरे शब्दों की टूटती लय..!
वो मेरी मौन-मुखर मुस्कान..
कैसे समाऊँ पन्नों में ..!
हर सू तेरी यादों का सहरा है।
तापस..!
कहाँ बिखेरूँ इन शब्दों की कृतियाँ
यहाँ रिक्तता शेष नही अब...!
तुम्हारी मृदुला
#अनीता लागुरी 'अनु'
Anu
जवाब देंहटाएंuffffffffff
wow just awesome
कहाँ डालूं इन शब्दों की पाबंदियां
हर पन्ने में अक्स तुम्हारा
गहरा है...!
mera aksar kuch aisa hi jawaab hota tha jab mujhe behar me likhne ko kahaa jata tha... :P
Though I know, ther were right but...
वो टुकड़ा बादल का,
वो नन्हीं सी धूप सुनहरी,
वो आंगन गीला सा
हर अल्फाज यहां पीले है
beautiful lines
bahut hi pyari rchnaa....bilkul sargi ke waqt ke aasmaan jaisi
bdhaayi
. बहुत-बहुत धन्यवाद जोया जी आपको प्रभावित कर पाई इसकी मुझे बेहद खुशी है... अपनी प्रतिक्रिया में 1 पंक्तियां जोड़ी है ...बिल्कुल सरदि के आसमान जैशी यह पंक्तियां बहुत अच्छी लगी मुझे..💐
हटाएंबहुत ही प्यारी कविता तुमने लिखी है Tapas ,Mridula एक रूमानियत सी महसूस हो रही है इन दोनों के नाम को सुनकर.. प्रेम अगन में जलती नायिका के शांत रुदन को बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किया है तुमने... रचना में प्रयुक्त बिंबों का भी जवाब नहीं. प्रेम रस में डूबी कविताओं का गहराई मापन आसान नहीं होता है... इसलिए टिप्पणियों के लिए भाव नहीं मिलते हैं.. पर तुम्हारी यह रचना बहुत ही अच्छी बन पड़ी है लिखते रहो ऐसे ही
जवाब देंहटाएंजी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद यह कविता लिखने का मेरा कोई प्रयोजन नहीं था बस अचानक ही मन में आया और मैंने यह लिख डाला पर अब लग रहा है कि मेरा लिखना सफल हुआ आप सबको की टिप्पणियां हमेशा मेरा मनोबल बढ़ाती है... और आपने तो बहुत ही प्यारी टिप्पणी दे डाली इतनी गहराई मैं जाकर चिंतन मनन कर अपने विचारों को आपने प्रस्तुत किया इसका दिल से आपको धन्यवाद...!!
जवाब देंहटाएंकहाँ बिखेरुं इन शब्दों की कृतियां
जवाब देंहटाएंयहाँ रिक्तता शेष नही अब,
तुम्हारी मृदुला...
जब मोबाइल फोन का युग नहीं था और लैंडलाइन वाले फोन पर भी प्रतिदिन बात करना संभव नहीं था, तो कुछ इसी तरह का पत्र व्यवहार आपस में होता था, चिठ्ठी की कितनी प्रतीक्षा में धड़कनें बढ़ी रहती थी। वह भी प्रियतम के पत्र की, बहुत ही भावनात्मक ढंग से आपने एक नायिका के विरह का चित्रण अपनी लेखनी के माध्यम से किया है प्रणाम।
बहुत-बहुत धन्यवाद व्याकुल पथिक जी आपकी प्रतिक्रियाएं इतनी विस्तारपूर्वक होती हैं कि रचना से भी ज्यादा अच्छा आपकी प्रतिक्रिया देखकर लगती है आप पूरी कविता का निचोड़ कम शब्दों में सामने लाकर रख देते हैं बहुत ही अच्छी लगी आपकी प्रतिक्रिया धन्यवाद
हटाएंवाह! वाह! वाह! वाह!
जवाब देंहटाएंआदरणीया दीदी जी बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति लिए मन को छू कर वही ठहर जाने वाली पंक्तियाँ प्रस्तुत की आपने। सुंदर शब्दों का चयन कर बखूबी पिरोया आपने। ये पहली प्रेम कविता होगी जिसे हम कई बार पढ़ गए। अब सराहना करूँ ये योग्यता नही हममें इसलिए आप तो बस हमारी वाह वाह के संग नमन स्वीकार करिए। सादर नमन शुभ रात्रि 🙏
प्रिय आंचल मन को मोह लिया तुम्हारी प्रतिक्रिया ने युवाओं को सोच कर कुछ लिखने का प्रयास किया था मैंने पर इसकी पृष्ठभूमि में काफी पीछे चली गई थी जहां फोन मोबाइल सब कुछ नहीं था पर मैंने तुम्हें प्रभावित किया इसकी मुझे बहुत खुशी है
हटाएंओ हो,
जवाब देंहटाएंये डायरी भी ना कितनी जल्दी भर गई है, अभी तो अल्फ़ाज़ उकेरने शुरू ही किये थे प्रेम के, अभी कहानी तेरी मेरी शुरू ही हुई है और ये मोटी सी डायरी कमबख्त कितनी छोटी पड़ गयी। अभी तो सब कुछ ही बाकी पड़ा है लिखना और इसका एक कोना तक खाली नहीं है।
तापस आओ तो बताऊं तुम्हे कि किस कदर पढ़ना चाहती हूं मैं तुम्हे कि बहुत कुछ लिखना है इस कहानी में मगर रिक्तता नहीं है। अगर तुम जान सको कि 'ये मृदुला सिर्फ तुम्हारी है' का अर्थ।
बहुत ही शानदार और प्यारी रचना।
मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है👉👉 जागृत आँख
आपके कवि मन ने प्रेम में डूबी प्रेमिका के मन मे चल रही बातों को बहुत ही अच्छे से प्रतिक्रिया के द्वारा लिख दिया,सच कहा डायरिया छोटी पड़ जाती है जब हम अपने किसी खास को लिखने बैठ जाते हैं शब्दों का तांता सा लग जाता है जैसा वह हमसे कह रहे हो मुझे लिखो मुझे भी लिखो आपकी प्रतिक्रिया ने बहुत आनंदित किया धन्यवाद
जवाब देंहटाएंदिल के भावों को व्यक्त करती बहुत ही सुंदर रचना, अनु दी।
जवाब देंहटाएंकहाँ बिखेरूँ इन शब्दों की कृतियाँ यहाँ रिक्तता शेष नही अब...! वा...व्व...बहुत सुंदर!
बहुत-बहुत धन्यवाद ज्योति तुम्हें मेरी कविता पसंद आई तुम्हारा लेख भी बहुत जबरदस्त लिखा है तुमने मुझे अच्छा लगा इतना खुलकर तुमने इतनी ज्वलंत विषय पर लिखा
हटाएंजी बहुत-बहुत धन्यवाद रविंद्र जी मैं जरूर आऊंगी 5 लिंको के आनंद में शामिल होने का यह अवश्य बड़ी बात है
जवाब देंहटाएंवाह!!अनु जी ,क्या बात है ,बेहतरीन !!हर पंक्ति लाजवाब ....।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद शुभा जी आपको ब्लॉग पर देख कर मुझे बहुत खुशी हुई..!!💐
हटाएंवो टुकड़ा बादल का,
जवाब देंहटाएंवो नन्हीं-सी धूप सुनहरी,
वो आँगन गीला-सा
हर अल्फ़ाज़ यहाँ पीले हैं।
तलाशती फिर रही हूँ..
शायद कोई तो कोना रिक्त होगा...!
प्रिय अनु , निशब्द हूँ इस रचना के आगे !!!!!!! पढ़कर लिखना शेष नहीं रहा | नारी मन के दर्द की पराकाष्ठा जहाँ शब्द मौन हो जाते हैं | सस्नेह --
बहुत ही प्यारी कविता
जवाब देंहटाएंकहाँ डालूँ इन शब्दों की पाबंदियाँ,
जवाब देंहटाएंशब्दों की पाबन्दियों को,
ख्यालों के कागज़ से बाहर आने दो,
आपनी काल्पनाओं को पंख लगाने दो।