रविवार, 13 अक्टूबर 2019

मैं जानता हूँ,

            मैं जानता हूँ,
     एक दिन मैं गिर पडूँगा,
 मेरे घुटने शायद छिल जाएँ  तब,
शायद तब पीछे मुड़कर देखूँगा,
टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों से गुज़रती...
अपने जीवन के साठवें  साल को,
जहाँ खोने के लिए अब  कुछ भी नहीं,         
कुछ यादों को बेशक संभालना चाहता हूँ
 जब जीवन में बसंत का साम्राज्य था,
 पता ही नहीं चला...!!
जीवन रूपी नाव ने कब गति पकड़ी,
 भंवरों से उभरता हुआ..
अनंत की ओर बेसबब बढ़ता रहा हूँ मैं.. .!!
अब क्या कहूँ... जीवन का गणित,
वर्गाकार से गोलाकार में परिवर्तित हो चुका है...!!
 शून्य की परिकल्पना न चाहते हुए भी,
जमे हुए घुटनों में दर्द जोड़ देती है...!!

 #अनीता लागुरी "अनु"

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 13 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    उत्तर
    1. जी बहुत-बहुत धन्यवाद दिग्विजय जी मेरी रचना को शामिल करने के लिए मैं जरूर आऊंगी

      हटाएं
  2. जी नमस्ते,


    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (14-10-2019) को "बुरी नज़र वाले" (चर्चा अंक- 3488) पर भी होगी।


    ---

    रवीन्द्र सिंह यादव

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  3. अब क्या कहूँ...जीवन का गणित
    हर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें

    जवाब देंहटाएं
  4. मैं जानता हूँ,
    एक दिन मैं गिर पडूँगा,
    मेरे घुटने शायद छिल जाएँ तब,
    शायद तब पीछे मुड़कर देखूँगा,
    टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों से गुज़रती...
    अपने जीवन के साठवें साल को,
    जहाँ खोने के लिए अब कुछ भी नहीं,
    कुछ यादों को बेशक संभालना चाहता हूँ
    जब जीवन में बसंत का साम्राज्य था,
    पता ही नहीं चला...!!
    जीवन रूपी नाव ने कब गति पकड़ी,
    भंवरों से उभरता हुआ..
    अनंत की ओर बेसबब बढ़ता रहा हूँ मैं.. .!!
    अब क्या कहूँ... जीवन का गणित,
    वर्गाकार से गोलाकार में परिवर्तित हो चुका है...!!
    शून्य की परिकल्पना न चाहते हुए भी,
    जमे हुए घुटनों में दर्द जोड़ देती है...!!


    awesome jut awesome

    mujhe lgaa meri jiwani ko rchnaa me keh diyaa...pr 60+ nhi abhi ..30+ KI KAHAANI MAGAR :P

    bahut bdhiyaa anu ji

    sach byaan kar diyaa aapne jodh ghatwaaw krte krte

    bdhaayi

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