मैं जानता हूँ,
एक दिन मैं गिर पडूँगा,
मेरे घुटने शायद छिल जाएँ तब,
शायद तब पीछे मुड़कर देखूँगा,
टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों से गुज़रती...
अपने जीवन के साठवें साल को,
जहाँ खोने के लिए अब कुछ भी नहीं,
कुछ यादों को बेशक संभालना चाहता हूँ
जब जीवन में बसंत का साम्राज्य था,
पता ही नहीं चला...!!
जीवन रूपी नाव ने कब गति पकड़ी,
भंवरों से उभरता हुआ..
अनंत की ओर बेसबब बढ़ता रहा हूँ मैं.. .!!
अब क्या कहूँ... जीवन का गणित,
वर्गाकार से गोलाकार में परिवर्तित हो चुका है...!!
शून्य की परिकल्पना न चाहते हुए भी,
जमे हुए घुटनों में दर्द जोड़ देती है...!!
#अनीता लागुरी "अनु"
एक दिन मैं गिर पडूँगा,
मेरे घुटने शायद छिल जाएँ तब,
शायद तब पीछे मुड़कर देखूँगा,
टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों से गुज़रती...
अपने जीवन के साठवें साल को,
जहाँ खोने के लिए अब कुछ भी नहीं,
कुछ यादों को बेशक संभालना चाहता हूँ
जब जीवन में बसंत का साम्राज्य था,
पता ही नहीं चला...!!
जीवन रूपी नाव ने कब गति पकड़ी,
भंवरों से उभरता हुआ..
अनंत की ओर बेसबब बढ़ता रहा हूँ मैं.. .!!
अब क्या कहूँ... जीवन का गणित,
वर्गाकार से गोलाकार में परिवर्तित हो चुका है...!!
शून्य की परिकल्पना न चाहते हुए भी,
जमे हुए घुटनों में दर्द जोड़ देती है...!!
#अनीता लागुरी "अनु"
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 13 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंजी बहुत-बहुत धन्यवाद दिग्विजय जी मेरी रचना को शामिल करने के लिए मैं जरूर आऊंगी
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओमकार जी
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (14-10-2019) को "बुरी नज़र वाले" (चर्चा अंक- 3488) पर भी होगी।
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रवीन्द्र सिंह यादव
अब क्या कहूँ...जीवन का गणित
जवाब देंहटाएंहर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें
मैं जानता हूँ,
जवाब देंहटाएंएक दिन मैं गिर पडूँगा,
मेरे घुटने शायद छिल जाएँ तब,
शायद तब पीछे मुड़कर देखूँगा,
टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों से गुज़रती...
अपने जीवन के साठवें साल को,
जहाँ खोने के लिए अब कुछ भी नहीं,
कुछ यादों को बेशक संभालना चाहता हूँ
जब जीवन में बसंत का साम्राज्य था,
पता ही नहीं चला...!!
जीवन रूपी नाव ने कब गति पकड़ी,
भंवरों से उभरता हुआ..
अनंत की ओर बेसबब बढ़ता रहा हूँ मैं.. .!!
अब क्या कहूँ... जीवन का गणित,
वर्गाकार से गोलाकार में परिवर्तित हो चुका है...!!
शून्य की परिकल्पना न चाहते हुए भी,
जमे हुए घुटनों में दर्द जोड़ देती है...!!
awesome jut awesome
mujhe lgaa meri jiwani ko rchnaa me keh diyaa...pr 60+ nhi abhi ..30+ KI KAHAANI MAGAR :P
bahut bdhiyaa anu ji
sach byaan kar diyaa aapne jodh ghatwaaw krte krte
bdhaayi