भोपाल से प्रकाशित दैनिक लोकजंग में सम्पादकीय पृष्ठ पर 15 जनवरी 2019 को प्रकाशित मेरा लेख-
आरक्षण : एक ज्वलंत और सम्वेदनशील मुद्दा
अनीता लागुरी "अनु"
आरक्षण का संक्षिप्त परिचय-
सरकारी भाषा में समाज चार श्रेणियों में विभक्त है- अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग एवं सामान्य वर्ग। 1951 की जनगणना के आधार पर सदियों से हाशिये पर धकेल दी गयीं सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से वंचित-शोषित अनुसूचित जनजातियों एवं अनुसूचित जातियों को सम्विधान निर्माता स्वर्गीय डॉ. भीमराव अम्बेडकर की पहल पर क्रमशः 7.5% , 15 % आरक्षण सरकारी नौकरियों में इनकी जनसँख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व तय किया गया। आरम्भ में यह 10 वर्ष के लिये तय हुआ था जिसे राजनैतिक और अन्य कारणों से नियमित बढ़ाया जाता रहा है। 1990 में भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने वर्षों से प्रतीक्षारत अन्य पिछड़ी जातियों के लिये मंडल आयोग की 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफ़ारिश को लागू कर दिया। इसी वर्ष अनुसूचित जनजातियों एवं अनुसूचित जातियों के आरक्षण को भी अगले 10 के लिये बढ़ाया गया था। परिणामस्वरूप देशभर में आरक्षण के विरुद्ध हिंसक आंदोलन शुरू हो गया जो सामान्य वर्ग की ओर से आयोजित किया गया। अन्य पिछड़ी जातियों को मिले आरक्षण के विरोध में युवाओं ने आत्मदाह तक किये। देश में राजनैतिक अस्थिरता का माहौल पैदा हो गया था। एक राजनैतिक पार्टी ने संसद में तो अन्य पिछड़ी जातियों के आरक्षण का समर्थन किया लेकिन सड़क पर सामान्य वर्ग के आरक्षण विरोधी आंदोलन को दबे-छिपे हवा दी जिसकी बाद में पोल खुल गयी जब देश ने मंडल बनाम कमंडल आंदोलन का सामना किया जिसने समाज में कड़वाहट घोल दी।
अन्य पिछड़े वर्ग को मिले आरक्षण की तर्ज़ पर कुछ और जातियों ने इस वर्ग में शामिल होने की माँग को आंदोलन का रूप दिया जिसमें गुर्जर, जाट, मराठा, पाटीदार आंदोलन प्रमुख हैं। इन जातियों को चुनावी स्टंट के तौर पर आरक्षण देने की कोशिश हुई लेकिन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित आरक्षण की 50% कुल सीमा के नियम के तहत ये प्रयास ख़ारिज होते रहे।
124 वां संविधान संशोधन -
संसद के शीतकालीन सत्र की समाप्ति से एक दिन पहले 7 जनवरी 2019 को केंद्र सरकार की कैबिनेट ने आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लिये 10 % आरक्षण (सरकारी नौकरियों व सरकारी एवं निजी शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षा के लिये ) का प्रस्ताव पास किया और इसे अगले दिन 8 जनवरी को लोकसभा ने और (एक दिन के लिये बढ़ाये गये राज्यसभा के कामकाज) 9 जनवरी को राज्यसभा ने दो तिहाई बहुमत से पास कर दिया जिसे 12 जनवरी 2019 को महामहिम राष्ट्रपति की मंज़ूरी मिल गयी है अब इस अधिनियम को देश की 15 विधानसभाओं से पास कराना अगली चुनौती है। हालाँकि इस सम्विधान संशोधन को विपक्षी दलों ने सत्ताधारी दल की चालाकीभरी चुनावी चाल से सम्बोधित करते हुए अपना समर्थन दिया। केवल बिहार के प्रमुख विपक्षी दल और कुछ मुस्लिम साँसदों ने इसका विरोध किया। प्रस्तावित 10 प्रतिशत आरक्षण (सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमज़ोर नागरिकों के लिये ) के साथ 124 वां सम्विधान संधोधन जो आरक्षण की सीमा 50 % से 60 % किये जाने की सिफ़ारिश करता है, संसद से पास होकर महामहिम राष्ट्रपति की मंज़ूरी तक का सफ़र तय कर चुका है। वर्तमान में अब कुल लागू आरक्षण 59.5% हो गया है। इसे 10 जनवरी 2019 को सर्वोच्च न्यायालय में एक एनजीओ द्वारा चुनौती दी गयी है जिसे ज़िरह के लिये स्वीकार कर लिया गया है।
सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों को आरक्षण पाने की शर्तें-
1. परिवार की सालाना आमदनी 8 लाख रुपये से कम हो।
2. परिवार के पास 5 एकड़ से कम कृषि भूमि हो।
3. आवेदक के पास 1000 वर्ग फीट से बड़ा फ़्लैट न हो।
4. निगम ( म्यूनिसपल्टी ) क्षेत्र में 100 गज़ से बड़ा घर न हो।
5. ग़ैर निगम क्षेत्र में 200 गज़ से बड़ा घर न हो।
विशेषज्ञों की राय -
क़ानून के जानकार कहते हैं कि संविधान में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के लिये आरक्षण देने का प्रावधान नहीं है। सम्विधान में केवल सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से कमज़ोर वर्ग को आरक्षण के ज़रिये समाज की मुख्यधारा में लाने और प्रतिनिधित्व देने के लिये आरक्षण का प्रावधान किया गया।
भ्रम -
मीडिया द्वारा इसे सवर्ण (हिन्दू धर्म का सबल वर्ग) आरक्षण कहा जा रहा है जबकि यह सभी धर्मों के आर्थिक रूप से कमज़ोर नागरिकों के लिये है।
समाज पर प्रभाव -
आरक्षण को लेकर सामान्य वर्ग की ओर से सभी प्रकार के आरक्षण को समाप्त कर मेरिट को तरजीह देने की माँग अचानक समाप्त होती प्रतीत होती है। आरक्षण प्राप्त नागरिकों एवं वर्गों के प्रति सामान्य वर्ग की नाराज़गी समाज में सदैव महसूस होती रही है और इसे समाज में व्याप्त नफ़रत का बड़ा कारण माना गया है। अब केंद्र सरकार के प्रयास से समाज के आरक्षण से वंचित वर्ग (सामान्य वर्ग ) को भी आरक्षण की परिधि में शामिल कर लिया गया है तो अब यह देखना दिलचस्प होगा जो वर्ग आरक्षण का मज़ाक़ उड़ाता था अब वही इसका भागीदार बनकर क्या महसूस करता है। क्या अब समाज के सभी वर्गों में प्रतियोगिता की स्वस्थ भावना पनपेगी यह भविष्य के गर्भ में है।
आरक्षण से ज़रूरी है समान शिक्षा व्यवस्था की सबल नीति जिसके चलते देश के समस्त शिक्षार्थियों को शिक्षा में किसी प्रकार का भेदभाव न झेलना पड़े तभी हम भारत के सुखद भविष्य की तस्वीर देख सकते हैं।
@ अनीता लागुरी "अनु"
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २८ जनवरी २०१९ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
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आपका बहुत-बहुत आभार आदरणीय ध्रुव जी मेरे लेख को अधिक से अधिक पाठकों तक पहुंचाने के लिए।
हटाएंआवश्यक सूचना :
जवाब देंहटाएंसभी गणमान्य पाठकों एवं रचनाकारों को सूचित करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि अक्षय गौरव ई -पत्रिका जनवरी -मार्च अंक का प्रकाशन हो चुका है। कृपया पत्रिका को डाउनलोड करने हेतु नीचे दिए गए लिंक पर जायें और अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचाने हेतु लिंक शेयर करें ! सादर https://www.akshayagaurav.in/2019/05/january-march-2019.html
बारीकी से देखा है इस विषय को आपने ...
जवाब देंहटाएंये सच में एक ज्वलंत समस्या है ...
एक बदनुमा दाग जैसी प्रणाली पर विशेष नज़र और विश्लेषण ... अच्छा लगा ...काश ! इसको निर्धारित करने वाले लोग इसका सही प्रारूप बना पाते ...
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