गुरुवार, 10 अक्तूबर 2019

धूमिल होते गए बापूजी..!!

जलते रहे तुम रात भर
🌿🍁🍂🍁🍂🍁🍂
 जलते रहे तुम रात भर,
राख होते रहे तुम रात भर,
 अग्नि में भस्म होते हुए
देखता मैं,रहा तुम्हें ,रात भर

  आँसू महीनों तक ना सूखे।
चरखा भी घूमता रहा अनवरत
सत्य और अहिंसा के तागे से,
बुन ली आज़ादी की ताबीर...!

  बेशक आवाज़ ना थी तेरी लाठी में
 पर उसकी खामोश ताकत ने,
 लहर ऐसी बनाई...!!!
की दांडी से छिटका नमक,
अंग्रेजो के भोजन को बेस्वाद कर गया,

तू फिरता रहा एक कपड़े में
करता रहा बातें अहिंसा की
 बिना एक भी रक्त गिराए
आजादी का मार्ग किया प्रशस्त तूने,

लांछन लाख लगे तुझ पर....
 किरकिरी तु बन गया आंखों की,
 फिर भी तटस्थ खड़ा रहा.तु,
बनकर अंधा ,बहरा और गूंगा..!!

लेकिन ये नौजवान पीढ़ी क्या जाने,
 दे रहे हैं तुझ को जो  आज गाली
 सत्य अहिंसा के बल पर
 अंग्रेजों ने मुंह की खाई थी...!

हां कहीं  बहे थे खून जरूर
और कहीं चली थी मुख की कोमल वाणी,
पर नासमझो ऐसे ही कुछ पाई थी, हमने आजादी
 कहीं पर गिरा था रक्त तो....
किसी ने मारी थी सीने में गोली..!!

 चिता की राख तो ठंडी हो गई
पर .फजाओं में ये कौन सा जहर घुल गया..!
 हर दूसरा शख्स घुट रहा यहाँ,
न जाने ये कैसा हिंदुस्तान बन गया...?
 गांधी गांधी ना रहे
 अब बापू ना कहे कोई ..?
 टूट गई उनकी वो लाठी..!
अहिंसा के बल पर जो चलती थी,

 है नमन बापूजी तुझको,
 कभी तो वापस आएंगे..!!
वक्त रहा ना कभी किसी का
 ये जहर भी उड़ जाएगा...!!
धूमिल हो रही तेरे विचारों पर
एक नया सूरज फिर से उग आएगा
...🍁🍂🍁🍂🍁??????
         #अनु

3 टिप्‍पणियां:

  1. बापू है ना आपके सामने से हैं अवतरित हो चुके हैं नहीं मानेंगी बापू तो मनवा लेंगे ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी पर आपकी टिप्पणी बिल्कुल भी मुझे समझ नहीं आई

      हटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (06-11-2019) को     ""हुआ बेसुरा आज तराना"  (चर्चा अंक- 3511)     पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

    जवाब देंहटाएं

रचना पर अपनी प्रतिक्रिया के ज़रिये अपने विचार व्यक्त करने के लिये अपनी टिप्पणी लिखिए।