अधखुली खिड़की से,
धुएँ के बादल निकल आए,
संग साथ मे सोंधी रोटी
की खु़शबू भी ले आए,
सुलगती अँँगीठी और
अम्मा का धुंआँ -धुंआँ
होता मन..!
कभी फुकनी की फुँँ- फुँँ
तो कभी अँँगना मे,
नाचती गौरेया...ता -ता थईया..!
बांधे खुशबूओं की पोटली,
सूरज भी सर पर चढ़ आया..!
जब अम्मा ने सेकीं रोटियाँ तवे पर...!
नवंबर की सर्द सुबह भी खुद पे
शरमाया....!
जब अधखुली खिड़की से....धुएँ
का बादल निकल आया....
अनीता लागुरी "अनु"