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भावों को शब्दों में अंकित करना और अपना नज़रिया दुनिया के सामने रखना.....अपने लेखन पर दुनिया की प्रतिक्रिया जानना......हाशिये की आवाज़ को केन्द्र में लाना और लोगों को जोड़ना.......आपका स्वागत है अनु की दुनिया में...... Copyright © अनीता लागुरी ( अनु ) All Rights Reserved. Strict No Copy Policy. For Permission contact.
रविवार, 17 नवंबर 2019
विलीन हो जाओ प्रकाश पुंज मे..,!
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तापस! मेरी डायरियों के पन्नों में, रिक्तता शेष नहीं अब, हर सू तेरी बातों का सहरा है..! ...
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवावार 17 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं.. जी मैं जरूर आऊंगी मेरी रचना को मान देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
हटाएंज़िंदगी का सार्थक पाठ पढ़ता बहुत ही सुन्दर सृजन प्रिय अनु.
जवाब देंहटाएंसादर
.. जी पहली बार छोटा सा प्रयास किया है मैंने आपको प्रभावित कर पाई इसकी मुझे बेहद खुशी है
हटाएंउम्दा सृजन।
जवाब देंहटाएंदर्शन की सुगंध लिए।
बहुत-बहुत धन्यवाद रोहिताश जी
हटाएंजीवन के गूढ़ रहस्यों की विवेचना करती यह प्रस्तुति अच्छी है। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएं।
. बहुत-बहुत धन्यवाद पुरुषोत्तम जी पर साथ ही क्षमा कीजिएगा मैं बहुत देर में आपको जवाब दे रही हूं
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-11-2019) को "सर कढ़ाई में इन्हीं का, उँगलियों में, इनके घी" (चर्चा अंक- 3523) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
.. जी रविंद्र जी मैं जरूर आउंगी मेरी रचना को मान देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
हटाएंबहुत सुंदर और सार्थक सृजन 👌
जवाब देंहटाएं.. बहुत-बहुत धन्यवाद अनुराधा जी आपको अपने ब्लॉग पर देख कर मुझे बहुत खुशी हुई
हटाएंवाह गजब तथ्य परक शाश्र्वत सी प्रस्तुति अनु जी थोड़े में बड़ा सत्य बताता सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएं.. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका दि
हटाएंलौकिक उपलब्धियों की क्षण-भंगुरता और पार-लौकिक उपलब्धियों की शाश्वतता में से क्या चुनना और क्या नहीं, अगर हम यह समझ लें तो - सत्यं, शिवं, सुन्दरं की स्थापना स्वतः हो जाएगी.
जवाब देंहटाएं.. आध्यात्मिकता के दौर से गुजर रही हूं कुछ ऐसा ही प्रतीत हुआ आपकी टिप्पणी पढ़कर बहुत-बहुत धन्यवाद इतने अच्छे विचार को साझा करने के लिए
हटाएंआध्यात्म भाव ...
जवाब देंहटाएंशून्य से शून्य हो जाना है सब को पर लालसाएं हैं ... इन्द्रियां हैं ... जो चुनी से शून्य के बीच को विचलित करती हैं ... गहरे भाव ...
. जी बहुत-बहुत धन्यवाद दिगंबर जी ,आपकी प्रतिक्रिया भी आपने बहुत ही गहराई से कही है..
हटाएंबिल्कुल ...हकीकत बयां करती अभिव्यक्ति .. ।
जवाब देंहटाएं.. जी बहुत-बहुत धन्यवाद भास्कर जी
हटाएंशाश्वत और सुंदर।
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा आदरणीया दीदी जी 👌
सादर नमन 🙏
सुन्दर रचना
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