सोमवार, 25 नवंबर 2019

धुएँ के बादल


अधखुली खिड़की से,
धुएँ के बादल निकल आए,
संग साथ मे सोंधी रोटी
की खु़शबू भी ले आए,

सुलगती अँँगीठी और
अम्मा का धुंआँ -धुंआँ
  होता मन..!

कभी फुकनी की फुँँ- फुँँ
तो कभी अँँगना मे,
नाचती गौरेया...ता -ता थईया..!

बांधे खुशबूओं की पोटली,
सूरज भी सर पर चढ़ आया..!
जब अम्मा ने सेकीं रोटियाँ तवे पर...!

नवंबर की सर्द सुबह भी खुद पे
शरमाया....!
जब अधखुली खिड़की से....धुएँ
का बादल निकल आया....
                   अनीता लागुरी "अनु"

21 टिप्‍पणियां:

  1. जी बहुत-बहुत धन्यवाद आपका.. बस अभी तुरंत ही चर्चा मंच में आपकी कविता पढ़कर आई आपने बहुत ही बेहतरीन कविता लिखा, भविष्य वर्तमान, और अतीत को लेकर एक सच लिख डाला आपने..।
    ऐसे ही साथ बनाए रखिएगा धन्यवाद

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  2. कभी फुकनी की फुं- फुं
    तो कभी अंगना मे,
    नाचती गौरेया...ता -ता थईया..!

    बांधे खुशबूओं की पोटली,
    सुरज भी सर पर चड़ आया..!
    जब अम्मा ने सेकीं रोटियाँ तवे पर...!

    नवंबर की सर्द सुबह भी खुद पे
    शरमाया....!
    जब अधखुली खिड़की से....धुएँ
    का बादल निकल आया....।।
    .. वाह धुएं के बादल खुली खिड़की से बाहर निकल आए कवि की सोच को दाद देनी पड़ेगी..
    अम्मा का धुआं धुआं होता मन..
    पढ़ने के बाद ऐसा प्रतीत हो रहा है कि पुरानी यादों में हाथ पकड़कर खींचते हुए ले गई है यह पंक्तियां ऐसा ही कुछ महसूस किया करते थे जब हम छोटे में अपने घर के बड़े बुजुर्गों के साथ सुबह के वक्त चूल्हे के आस पास बैठ जाया करते थे..
    और देखा करते थे गोरैयों की धमाचौकड़ी.।
    तुम्हारी कविताएं पढ़ना मुझे बहुत पसंद है यथार्थ के धरातल पर ले कर चली जाती हो हमेशा ऐसा लगता है कि उसमें जो चरित्र है वह खुद हम ही हैं हमारे लिए ही तुमने वह कविता लिखी हो...
    ऐसे ही लिखा रहा करो..👌👌👌

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  3. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका आपकी प्रतिक्रिया मुझे बहुत अच्छी लगती है क्योंकि आप हमेशा कविता की गहराइयों पर उतर कर अपने विचार रखते हैं सच कहूं तो जब भी किसी कविता पर कोई प्रतिक्रिया आती है... तो बहुत ही अच्छा लगता है और अगर पाठक ने अपनी राय पूरी खुल कर रखी है तो लिखना सार्थक हुआ ऐसा महसूस होता है
    ...... जी ऐसे ही साथ बनाए रखिएगा आपका बहुत-बहुत धन्यवाद

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  4. नवम्बर की सर्द धुप का भी अपना ही मजा है ... यूँ तो हर मौसम का अपना मिजाज है ...
    आपने बाखूबी इसे केनवास पर लिखा है ... लाजवाब ...

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    1. जी सही कहा नवंबर की धूप का एक अलग ही मजा है छोटी-छोटी धूप तन मन को सुकून के एहसास से भर देती है यह वक्त होता है पतले गर्म कपड़ों को इस्तेमाल करने का फिर पता ही नहीं चलता कि कब वह मोटे कपड़ों में तब्दील हो जाता है बहुत ही अच्छी लगी आपकी प्रतिक्रिया...।
      सादर धन्यवाद

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  5. नवंबर की गुनगुनी धूप और गरमा गरम रोटियों की महक से सजी आपकी इन पंक्तियों ने मोह लिया आदरणीया दीदी जी। बेहद खूबसूरत सृजन 👌 मनभावन रचना। स्वाद और महक के साथ चित्र सामने आकर खड़ा हो गया। वाह्ह्ह!
    सादर नमन। सुप्रभात 🙏

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    1. ..बहुत-बहुत धन्यवाद आंचल तुम्हारी प्यारी सी प्रतिक्रिया ने मुझे भी गरम गरम रोटियां की ओर मोड़ दिया. इस मौसम में गरम गरम रोटियां अचार और लाल चाय यह सारी चीजें बहुत मनभावन लगती है
      यूं ही साथ बनाए रखना

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  6. आपकी रचनाओं के शब्दों में बहते भाव मन स्वतः ही खींचते हैं।
    प्रकृति और मानवीय जीवन का सुंदर संयोजन आपकी रचनाओं की खासियत है।
    शुभकामनाएँ खूबसूरत रचनाएँ लिखती रहें।

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    1. . बहुत-बहुत धन्यवाद स्वेता दी, आपको ब्लॉग में देख कर मुझे बेहद खुशी होती..है आपकी प्रतिक्रियाएं हमेशा मेरे मनोबल में बहुत वृद्धि करती हैं हमेशा साथ बनाए रखें

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  7. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (26-11-2019) को    "बिकते आज उसूल"   (चर्चा अंक 3531)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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    1. .. जी बहुत-बहुत धन्यवाद निमंत्रण हेतु मैं जरूर आऊंगी

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  8. कभी फुकनी की फुँँ- फुँँ
    तो कभी अँँगना मे,
    नाचती गौरेया...ता -ता थईया..!
    अद्भुत सृजन । खूबसूरत शब्द चित्र !

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    1. .. जी भागवत धन्यवाद मीना जी इतनी प्यारी सी प्रतिक्रिया हेतु.. बहुत अच्छा लगता है आप जब ब्लॉग पर आती हैं और अपनी प्रतिक्रिया देकर जाती हैं यूं ही हमेशा साथ बनाए रखें

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  9. बहुत प्यारी कविता ।
    कुनकुनी ठंड, कोहरा, धुंआ सा बादल, अम्मा का धुआं धुआं मन..... मन को गरमा गए, बहुत कुछ समझा गए , याद दिला गए ।

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  10. अच्‍छा लगा आपके ब्‍लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....

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  11. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (27-01-2020) को 'धुएँ के बादल' (चर्चा अंक- 3593) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

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  12. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर मनभावन सृजन।

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  13. कभी फुकनी की फुँँ- फुँँ
    तो कभी अँँगना मे,
    नाचती गौरेया...ता -ता थईया..!

    वाह 👏 सुंदर सृजन, खूबसूरत भावाभिव्यक्ति.क्या कहने.

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  14. सुलगती अँँगीठी और
    अम्मा का धुंआँ -धुंआँ
    होता मन..!

    कभी फुकनी की फुँँ- फुँँ
    तो कभी अँँगना मे,
    नाचती गौरेया...ता -ता थईया
    बहुत खूब ,बचपन की याद आ गई ,बेहतरीन सृजन अनु जी

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