शनिवार, 16 नवंबर 2019

कवि की तकरार..!

एक कवि की तक़रार
      हो गई
निखट्टू कलम से
कहा उसे संभल जा तू
    तेरे अकेले से
राजा अपनी चाल नही
  बदलने वाला
तेरी ताक़त बस
ये चंद स्याही है
उसके प्यादे ही काफी है
तेरे लिखे पन्ने को
नष्ट करने को,
बात मेरी मान
चल हस्ताक्षर कर इस
राजीनामे में,
लिखेगा तू जरूर
अपनी चाल भी चलेगा जरूर
मगर वक़्त और मोहरे
मैं तय करूँगा,
सामने खड़ी विशाल सेना को
अपनी क़लम की ताकत से
तू हराएगा....
सियासी दावँ पेंच की जादूगरी
में तुझे सिखाऊंगा,
बस अखड़पन में न उलझ
क़लम अपाहिज है तब तक
जब तक कवि के हाथों का
खिलौना न बन जाये..
..................
अनीता लागुरी"अनु"

11 टिप्‍पणियां:

  1. क़लम अपाहिज है तब तक
    जब तक कवि के हाथों का
    खिलौना न बन जाये. /..........बहुत सही कहा आपने.
    बहुत सुन्दर रचना

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-11-2019) को     "हिस्सा हिन्दुस्तान का, सिंध और पंजाब"     (चर्चा अंक- 3522)    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    उत्तर
    1. जी धन्यवाद निमंत्रण के लिए मैं जरूर आऊंगी

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में रविवार 17 नवम्बर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. क़लम और कवि के चिंतन पर कटाक्ष करती रचना में बहुत कुछ कहना बाक़ी है लेकिन कवयित्री अपना संदेश संप्रेषित कर पाने में सक्षम है। अनु जी आपका सृजन मौलिकता और नवीनता की महक लिये हुए पाठक को आनंदित करता है।

    लिखते रहिए।

    बधाई एवं शुभकामनाएँ।

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  5. क़लम और कवि के माध्यम से लेखन का बहुत ही सुन्दर चिन्तन उभर कर सामने आया है प्रिय अनु. शब्द शब्द में गूँथी मर्म की बेहतरीन अभिव्यक्ति
    सादर

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  6. कलम की ताकत और कलम की बेबसी दोनों पर सार्थक तंज है रचना में, अपनी अनुठी लेखन शैली में बहुत कुछ कहा है आपने प्रिय अनुजी।
    बहुत अच्छी लगी आपकी रचना ।
    पर कभी कभी सोचती हूं कि हम कुछ भी लिखते हैं, चाहे स्वांत सुखाय, चाहे सामायिक चिंतन या फिर कोई भी विमर्श ,हम कितने लोगों तक अपने भाव पहुंचा पाते हैं ,कितने लोग हमें आकर पढ़ते हैं और उन में से कितने प्रभावित होते हैं और फिर कितने व्यवस्था बदलने की चाल में शामिल होते हैं।
    हम वहीं बीस से पच्चीस लोगों तक अपने भाव प्रेसित करते रहते हैं घुम-घुम कर, चाहे कितनी भी सामायिक और यथार्थ रचना हो हमारी रचना से कितने लोग सीख लेते हैं,कितने लोग बदलते हैं,सवाल यही है कि क्या है आखिर कलम की ताकत।
    किसी भी चीज को कृपया व्यक्तिगत न लें बस अभी ये विचार उठे तो यहीं प्रेसित कर दिए।
    सस्नेह।

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  7. कवि और कलम को माध्यम बनाकर आपने जो संदेश दिया है वो सार्थक और सुंदर है।
    उचित कहा आपने बिना कवि कलम का मोल नहीं पर जाने क्यू आज कलम और कवि दोनों किसी बंधन में किसी संकट में लगते हैं।

    बहुत खूब लिखा आपने आदरणीया दीदी जी 👌
    सादर नमन सुप्रभात 🙏

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  8. निखट्टू कलम से
    कहा उसे संभल जा तू
    तेरे अकेले से
    राजा अपनी चाल नही
    बदलने वाला.... निखट्टू कलम को अच्छी सीख दी सचमुच आपने अनीता जी

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