चित्र गूगल से साभार
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निजता मेरी हर लेना
अपने शब्दों के कूंची से
रंग भर देना
बंद अधरों की मुख मौन भाषा
बंद नयनों से पढ लेना
पर निजता मेरी हर लेना
माना बिखरे पड़े हैं
इश्क़ की किरचें
दर-ओ-दीवार पर
हो सके तो संभाल कर सहेज लेना
आंगन की गीली मिटटी सा है मन मेरा,
हो सके तो अंजुरी भर पानी से
मुझे भींगो देना,
पर निजता मेरी हर लेना
विकट विशाल हृदय है तुम्हारा
इसकी अनंत गहराइयों में
कहीं समा लेना,
पर निजता मेरी हर लेना,
व्याकुल व्यथित सा मन मेरा
तापिश की लौ संग जला देना
अगर न बूझे अगन मेरी
तो हिम खंड पिघलाकर भींगो देना
पर निजता मेरी तुम
हर लेना
इन सुन्न साँसों की
मौन अधरों की भाषा
अपने शब्दों के कूंची
से भर देना
पर निजता मेरी हर लेना
अनीता लागुरी "अनु"
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14.11.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3519 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की गरिमा बढ़ाएगी ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
.. बहुत-बहुत धन्यवाद निमंत्रण के लिए मैं जरूर आऊंगी
हटाएंक्या ही लाजवाब लेखन है आपका।
जवाब देंहटाएंएकदम कायल करने वाला।
निस्वार्थ प्रेम भरी रचना ... वाह।
कुछ पंक्तियां आपकी नज़र 👉👉 ख़ाका
. बहुत-बहुत धन्यवाद रोहिताश जी इतनी सुंदर प्रतिक्रिया हेतु
हटाएंव्याकुल व्यथित सा मन मेरा
जवाब देंहटाएंतापस की लो संग जला देना
अगर न बूझे अगन मेरी
तो हिम प्रहलाद से भींगो देना
पर निजता मेरी तुम
हर लेना
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर लाजवाब सृजन...
..बहुत बहुत धन्यवाद आपका सुधा जी..!
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 14 नवंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
.बहुत बहुत धन्यवाद आपका मैं जरूर आउंगी.!!
हटाएं"निजता मेरी हर लेना"
जवाब देंहटाएंशीर्षक ही पूर्ण भावभरी कविता है। आपकी लिखी पंक्तियाँ मन छू गयी। भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
..बहुत बहुत धन्यवाद स्वेता दी..!आपकी प्रतिक्रिया में मोह लेती है।
जवाब देंहटाएंअद्भुत रचना 👌👌👌
जवाब देंहटाएंहम अक्सर अपनी डायरी के पन्नों को खोल कर बन्द कर देते हैं और आप लिख जाती हो बेहद खूबसूरत :)
जवाब देंहटाएं'निजता मेरी हर लेना' यह तो मीरा की दीवानगी हो गयी. जो पी के रंग में सराबोर हो जाएगी वो अपनी निजता तो खोएगी ही.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !