छैनी-हथौड़े से
ठोक-पीटकर
कविता कभी बनते
हुए देखी है तुमने?
कुम्हार के गीले हाथों से
पिसलते-मसलते
माटी को कभी कविता
बनते देखा है तुमने?
शायद नहीं
कविता यों ही बन जाती है
जब छैनी-हथौड़े
पिसलते-मसलते
हाथों वाला इंसान
निचोड़ डालता है,
अपनी अंतरात्मा की आवाज़
सुनो उसकी आवाज़
ठक-ठक के शोर को सुनो
गीले हाथों से आती
छप-छप की महीन ध्वनियों
को सुनो!
तब कविताएं जन्म लेती हैं
मिट्टी में गिरे
पसीने की बूंदों की तरह...!
अनीता लागुरी "अनु"
सही है कविताएं जन्म लेती है।
जवाब देंहटाएंएक प्रसवपीड़ा के बाद।
शानदार रचना।
कुछ पंक्तियां आपकी नज़र 👉👉 ख़ाका
जी सही कहा कवि की वेदना से ही एक नई कविता का सृजन होता है... भाव यूं ही नहीं पनपते भावों का प्रदर्शन कलम तब तक नहीं कर सकती.. जब तक की कवि ने उस वेदना को जिया ना हो बहुत सारी कविताएं रोज पढ़ती हूं, लेकिन उन कविताओं में उनकी आत्मा मुझे तब नजर आती है जब वह किसी कवि के दिल से उसकी अंतरात्मा की आवाज बन कर के निकलती है... चलिए आपकी प्रतिक्रिया के बहाने कुछ चंद बातें मैंने भी अपनी लिख डाली बहुत-बहुत धन्यवाद आपका
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 14 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं.. जी आदरणीय यशोदा दी निमंत्रण के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद मैं जरूर आऊंगी
हटाएंतब कविताएं जन्म लेती हैं
जवाब देंहटाएंमिट्टी में गिरे
पसीने की बूंदों की तरह..
आहा अनीता जी वाह wow
कभी शहद को गिरते देखा है। .इक सार। ..बस वैसी है ये कविता
बस इक सार इक सांस में पढ़ते चलो और मिठास चखते चलो
कभी कोई आह कोई वेदना तो झरती होगी
जवाब देंहटाएंजब जब भी कलम से स्याही बहती होगी।
सार्थक सृजन अनु जी बहुत गहन भाव रचना।
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (25-11-2019) को "गठबंधन की राजनीति" (चर्चा अंक 3537) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
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रवीन्द्र सिंह यादव
सुन्दर प्रस्तुति
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