रविवार, 24 नवंबर 2019

रुक जाओ मेरे भाई..!

   रुक जाओ।                                                              
मत भागो
मैं नहीं थोपूँगा 
अपनी पराजय तुम पर
यह  मेरी हार है।

मेरे सपनों की 
दम तोड़ती
अट्टालिकाओं के 
ज़मी-दोज़ होने की हार है।

गर कठघरे में खड़ा होगा कोई
तो वो मैं होऊँगा
सादियों से जलता रहा हूँ  मैं
आज भी जलते सूरज का 
तीक्ष्ण प्रहार मैं ही झेलूँगा। 

मेरे भाई... 
कुछ पल ठहर जाओ
सहने को.....  मरने को..... 
कोई एक ही मरेगा
और वो मैं होऊँगा।

इन बची हुई स्मृतियों से
ढक देना ख़ुद  को
और‌ जब 
अंत होगा ज़मीं का
दौड़कर  चढ़ जाना
पश्चिम की ओर
और वापस आकर 
माँ की गोद में 
सर रख कर
सांसों को धीमा करना..!

इन स्मृतियों को वहीं कहीं
कूड़ेदान में डालकर चल देना
बस चलते ही जाना
ये मेरी पराजय 
मैं नहीं थोपूंगा  तुम पर
ये मेरे लिखे शब्दों की हार है
वर्षों से है शापित जीवन  मेरा
आज दफ़न भी हो जाए  तो क्या  ग़म है......?
#अनीता लागुरी (अनु)






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