भावों को शब्दों में अंकित करना और अपना नज़रिया दुनिया के सामने रखना.....अपने लेखन पर दुनिया की प्रतिक्रिया जानना......हाशिये की आवाज़ को केन्द्र में लाना और लोगों को जोड़ना.......आपका स्वागत है अनु की दुनिया में...... Copyright © अनीता लागुरी ( अनु ) All Rights Reserved. Strict No Copy Policy. For Permission contact.
रविवार, 24 नवंबर 2019
रुक जाओ मेरे भाई..!
मंगलवार, 19 नवंबर 2019
बहीखाता मेरे जीवन का..!!
चित्र गूगल से साभार
एक स्त्री समेटती हैं,
अपने आँचल की गाँठ में,
परिवार की सुख शांति,
और समझौतों से भरी हुई
अंतहीन तालिका.
ख़ुद के उसके दुखों का हिसाब,
उसकी मुस्कुराहटों की पर्चियां,
वो अक्सर ही गायब रहती है।
उसके तैयार किए गए
विवरण पुस्तिका से,
कहने को तो
सिलती है उधड़े हुए कपड़ों को
मगर खुद की उसके बदन में,
चूभोई गईं अनगिनत सुइयों का
दर्द रहस्यमई परतों में दर्ज हो जाता है,
जिसके दरवाजे सिर्फ़ उसकी चाह पर खुलते हैं
एक तमगे की तरह,
दीवाल पर टांग दी जाती है,
पीछे से उसका अतीत,
ठहाके मारते हुए निकल जाता है।
और वर्तमान कहता है उससे
सूख जाएगी तू भी एक दिन
आंगन में मुरझाते इस तुलसी के पौधे की तरह,
अपनी ही किस्मत की लकीरों से
उलझती रहती है तमाम उम्र,
जैसे मोमबत्ती के पिघलने से
बनती है आकृतियां कई
वह भी कई बार अनचाहे बही खातों में,
ख़ुद की दोहरी जिंदगी को,
बदसूरत बना देती है,
अनीता लागुरी"अनु"
रविवार, 17 नवंबर 2019
विलीन हो जाओ प्रकाश पुंज मे..,!
शनिवार, 16 नवंबर 2019
कवि की तकरार..!
एक कवि की तक़रार
हो गई
निखट्टू कलम से
कहा उसे संभल जा तू
तेरे अकेले से
राजा अपनी चाल नही
बदलने वाला
तेरी ताक़त बस
ये चंद स्याही है
उसके प्यादे ही काफी है
तेरे लिखे पन्ने को
नष्ट करने को,
बात मेरी मान
चल हस्ताक्षर कर इस
राजीनामे में,
लिखेगा तू जरूर
अपनी चाल भी चलेगा जरूर
मगर वक़्त और मोहरे
मैं तय करूँगा,
सामने खड़ी विशाल सेना को
अपनी क़लम की ताकत से
तू हराएगा....
सियासी दावँ पेंच की जादूगरी
में तुझे सिखाऊंगा,
बस अखड़पन में न उलझ
क़लम अपाहिज है तब तक
जब तक कवि के हाथों का
खिलौना न बन जाये..
..................
अनीता लागुरी"अनु"
गुरुवार, 14 नवंबर 2019
कविताएं बन जाती है ..!!
छैनी-हथौड़े से
ठोक-पीटकर
कविता कभी बनते
हुए देखी है तुमने?
कुम्हार के गीले हाथों से
पिसलते-मसलते
माटी को कभी कविता
बनते देखा है तुमने?
शायद नहीं
कविता यों ही बन जाती है
जब छैनी-हथौड़े
पिसलते-मसलते
हाथों वाला इंसान
निचोड़ डालता है,
अपनी अंतरात्मा की आवाज़
सुनो उसकी आवाज़
ठक-ठक के शोर को सुनो
गीले हाथों से आती
छप-छप की महीन ध्वनियों
को सुनो!
तब कविताएं जन्म लेती हैं
मिट्टी में गिरे
पसीने की बूंदों की तरह...!
अनीता लागुरी "अनु"
बुधवार, 13 नवंबर 2019
निजता मेरी हर लेना..!
मंगलवार, 12 नवंबर 2019
संवाद में प्यार क़ाएम रहता है
जबसे श्यामा जी की मधुमेह की बीमारी के बारे में सुधा को पता चला बस उसके बाद से ही उन्होंने उनकी खाने-पीने की चीज़ों में मीठा डालना कम कर दिया। लेकिन यह उनके बीच रिश्तों की मिठास ही है जो इतने सालों के बाद भी श्यामा जी के चाशनी में डूबे संवाद सुधा को फिर से वही पहले वाली सुधा बना देते हैं जहाँ अतीत के गलियारों में जाकर अपनी ससुराल के पहले दिन बनायी गयी चाय के स्वाद को याद करती हैं जब वो चाय में चीनी मिलाना ही भूल गयी थी पर सब की मुस्कुराहटों ने उसे एहसास नहीं होने दिया कि उसने चाय में चीनी ही नहीं मिलायी!
प्यार करने का तरीक़ा भले ही बदल जाय मगर कुछ रिश्तों में प्यार कभी नहीं बदलता है। ऐसा ही श्यामा जी का प्यार है, वे अपनी जीवनसंगिनी से बहुत प्यार करते हैं। जितना मैं उन्हें जानती हूँ, उनके रिश्ते में प्यार उम्र की मोहताज नहीं।यहाँ जो संवादों की रेलम-पेल मैंने परोसी है! वह मेरे पड़ोस में रहने वाले एक ख़ूबसूरत से बुज़ुर्ग कपल की रोज़ होनेवाली नोंकझोंक की एक झलकी है।
#अनीता लागुरी 'अनु'
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आज फिर तुम साथ चले आए घर की दहलीज़ तक..! पर वही सवाल फिर से..! क्यों मुझे दरवाज़े तक छोड़ विलीन हो जाते हो इन अंधेरों मे...
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कभी चाहा नहीं कि अमरबेल-सी तुमसे लिपट जाऊँ ..!! कभी चाहा नहीं की मेरी शिकायतें रोकेंगी तुम्हें...! चाहे तुम मुझे न पढ...