मंगलवार, 12 नवंबर 2019

संवाद में प्यार क़ाएम रहता है

"वाह...!  क्या जादू है तुम्हारे हाथों में,
तुम्हारे हाथों से बनी चाय पीकर तो लगता है कि जन्नत के दर्शन हो गये। 
 सच कहता हूँ सुधा, शादी की पहली सुबह और आज 50 साल बीत जाने के बाद भी तुम्हारे हाथों की बनी चाय में कोई फ़र्क़ नहीं आया।" श्याम जी कहते-कहते मुस्कुरा दिये।
 "चलो जी, आपको भी क्या शैतानी सूझ  रही है... बिना चीनी की चाय में क्या स्वाद! क्या आप भी मुझे सुबह- सुबह यों ही बना रहे हैं...?"
ऐसा कहकर सुधा बालकनी के बाहर देखने लगी।  
            जबसे श्यामा जी की मधुमेह की बीमारी के बारे में सुधा को पता चला बस उसके बाद से ही उन्होंने उनकी खाने-पीने की चीज़ों में मीठा डालना कम कर दिया। लेकिन यह उनके बीच रिश्तों की मिठास ही है जो इतने सालों के बाद भी श्यामा जी के चाशनी में डूबे संवाद सुधा को फिर से वही पहले वाली सुधा बना देते हैं  जहाँ अतीत के गलियारों में जाकर अपनी ससुराल के पहले दिन बनायी गयी   चाय के स्वाद को याद करती हैं जब वो चाय में चीनी मिलाना ही भूल गयी थी पर सब की मुस्कुराहटों ने उसे एहसास नहीं होने दिया कि उसने चाय में चीनी ही नहीं मिलायी!
             प्यार करने का तरीक़ा भले ही बदल जाय मगर कुछ रिश्तों में प्यार कभी नहीं बदलता है। ऐसा ही श्यामा जी का प्यार है, वे  अपनी जीवनसंगिनी से बहुत प्यार करते हैं।  जितना मैं उन्हें जानती हूँ, उनके  रिश्ते में प्यार उम्र की मोहताज नहीं।यहाँ जो संवादों की रेलम-पेल मैंने परोसी है! वह मेरे पड़ोस में रहने वाले एक ख़ूबसूरत से बुज़ुर्ग कपल की रोज़ होनेवाली नोंकझोंक की एक झलकी है। 
           ज़िंदादिली को हर उम्र में जीया जा सकता है बस अपनी धड़कनों के साथ तारतम्य तो बैठाइये। 
कल श्यामा जी और सुधा जी सुबह की सैर पर जाते हुए मुझे चिढ़ा रहे थे। दौड़ लगाते हुए मुझे बालकनी में खड़ा देखकर बोले थे- 
"हँसते-मुस्कुराते जीना है तो प्रकृति का स्पर्श महसूस करो, आओ हमारे साथ सैर पर चलो।"
            मैंने हँसकर हाथ हिलाया और सोचने लगी कि ज़िन्दगी का सफ़र लंबा तो है पर कठिन नहीं। 
"कल से प्रकृति के कैनवास पर मैं भी अपनी कूँची से उकेरूँगी अपने मनचाहे रंग उदासियों की मटमैली चादर को उतारकर! मैं भी प्रकृति से संवाद स्थापित करुँगी"- मैं दबी जुबां से बुदबुदायी।  

#अनीता लागुरी 'अनु'   
  

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (13-11-2019) को      "गठबन्धन की नाव"   (चर्चा अंक- 3518)     पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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    1. . जी आदरणीय शास्त्री जी निमंत्रण हेतु बहुत-बहुत आभार ...में जरूर आऊंगी..

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  2. सहमत आपकी बात से अनु जी ...
    प्रेम कई बार छोटी छोटी खुशियों में होता है ... आपसी व्यवहार में होता है ... लम्हा तो जाना है जो आता है पर अगर उसे ख़ुशी के साथ जी लिया तो वो यादगार हो जाता है ... चाय में चीनी न होने से ज्यादा उस समय का आनद, उस समय के शब्द है जो याद रहते हैं ... स्वाद तो पीते वक़्त है बस .... चाय ख़त्म स्वाद गया ...
    बहुत गहरी बात है इन पंक्तियों में अगर समझ आ गया तो जीवन आनद है ...

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद दिगंबर सर जी,सही कहा आप ने प्रेम छोटी छोटी चीजों में समाहित है..गुजरते वक़्त के साये में सिर्फ लम्हात ही तो जीते है..क्या रह जायेगा पीछे ,चलो कुछ आगे चलते है..छोटी मगर बहुत प्रभावित हुई आपकी प्रतिक्रिया से ..ऐसे ही मार्गदर्शन ओर सहयोग की अपेक्षा रखूंगी...बहुत बहुत धन्यवाद ..आपका🙏

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  3. मैं भी प्रकृति से संवाद स्थापित करुँगी"
    - भावों के सफर में एक पड़ाव ऐसा भी आता है, जब हम प्रकृति एवं ईश्वर से संवाद स्थापित कर स्वयं के अधूरेपन को दूर करते हैं।
    आपकी प्रथम लघुकथा भावपूर्ण रही..।
    प्रणाम।

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    1. .. बहुत-बहुत धन्यवाद शशि जी... सही कहा आपने भावों के सफर में एक ऐसा पड़ाव भी आता है जब हम प्रकृति और ईश्वर से संवाद स्थापित कर के खुद के अधूरेपन अकेलेपन को दूर करने का प्रयास करते हैं बहुत ही अच्छी टिप्पणी धन्यवाद आपका..!!

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  4. प्यार करने का तरीक़ा भले ही बदल जाय मगर कुछ रिश्तों में प्यार कभी नहीं बदलता है।

    बिल्कुल सही कहा अपने पर अफसोस ये बात हर कोई समझ नही पाता समय रहते।
    आभार

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  5. प्रखर प्रेम को परिभाषित करती बेहतरीन अभिव्यक्ति प्रिय अनु.
    योंही लिखती रहो.
    सादर

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  6. बिम्ब और भाव का शब्दिक अवतरण दोनों बेमिसाल ......

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