चित्र : गूगल से
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व्याकुल समुद्र
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रेत में अंदर तक धँसे
मेरे पाँव को छू रहीं थीं
समुद्री लहरें
शायद मीठे होने की चाहत में
हर बार हर लहर के साथ
पछाड़ आती थी नमक की एक टोकरी
किनारे पर
पर दुर्भाग्य उसका
उतनी ही नमकीन वह हर बार हो जाती
जितनी शिद्दत से लहरों को हर बार भगाती
देखकर उसकी जिजीविषा
मन आतुर हो उठा भरने को उसे आगोश में
पर हर बार दब जाता था रुदन उसका
लहरों के संग तीव्र शोर में
हलक सूखता उसका भी
पर प्यासा ही रह जाता है
एक घूँट नीचे नहीं जाता
नमक के उस घोल में
क्या..उसके आँसुओं ने ही
समुद्र में इतना नमक भरा था?
आह! निकलती अंतर्मन से उसके
जब पानी भाप बनकर उड़ जाता था
और सतह के अंदर नीम गहराइयों में
हलचल मचाते जलचर
जीवन जी जाते थे!
पर उसका क्या उसकी इच्छा का क्या
मीठे पानी की खोज में
सतह पर उभर-उभरकर
चाँद को बुलाता है...पर चाँद
ज्वार-भाटे में उसे उलझाकर छिप जाता है.
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अनीता लागुरी "अनु"