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नफ़रत किससे क्यों मुझको आज
सुलग रहे दवानल से सवाल
क्रोध हिंसा की पीड़ा रुलाए
मेरे अंतर्मन में अश्रु कोहराम मचाए
अरे पागल! मन तू क्यों घबराए
तू क्या लाया था जो लेकर जाएगा
मृगतृष्णा की चाह में एक दिन मारा जाएगा
पंच तत्वों से निर्मित ये ढलती काया
अमर तत्व के तेरे विश्वास को झुठलायेगा
अरे पागल! मन तू क्यों घबराए
मोहपाश की गगरी छोड़
कब ठहरा है हाथों में रेत
चकाचौंध में डूबा यह जीवन
एक दिन राख में मिल जाएगा
अरे पागल! मन तू क्यों घबराए
जो आया है सो तो जाएगा
अस्थाई यहाँ कौन टिक पाएगा
भस्मीभूत होकर अस्थियाँ कहलाओगे
अदना-सी तस्वीर समझकर दीवार पर टाँग दिये जाओगे
अरे पागल! मन तू क्यों घबराए
हक़ मान बैठा तू जिस पर
मेरा तेरा कहता रहा जीवन भर
यह जग सारा रैन बसेरा है
चिता की लकड़ियों पर ही अंतिम तेरा सवेरा है
अरे पागल! मन तू क्यों घबराए
यह सत्य एक ऐसा सत्य है
जीवन परिवर्तन का चक्र है
आएँगे-जाएँगे कई किरदार यहाँ
यह तेरा संकल्प धरा रह जाएगा
अरे पागल! मन तू क्यों घबराए.
अनीता लागुरी 'अनु"🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍁
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नफ़रत किससे क्यों मुझको आज
सुलग रहे दवानल से सवाल
क्रोध हिंसा की पीड़ा रुलाए
मेरे अंतर्मन में अश्रु कोहराम मचाए
अरे पागल! मन तू क्यों घबराए
तू क्या लाया था जो लेकर जाएगा
मृगतृष्णा की चाह में एक दिन मारा जाएगा
पंच तत्वों से निर्मित ये ढलती काया
अमर तत्व के तेरे विश्वास को झुठलायेगा
अरे पागल! मन तू क्यों घबराए
मोहपाश की गगरी छोड़
कब ठहरा है हाथों में रेत
चकाचौंध में डूबा यह जीवन
एक दिन राख में मिल जाएगा
अरे पागल! मन तू क्यों घबराए
जो आया है सो तो जाएगा
अस्थाई यहाँ कौन टिक पाएगा
भस्मीभूत होकर अस्थियाँ कहलाओगे
अदना-सी तस्वीर समझकर दीवार पर टाँग दिये जाओगे
अरे पागल! मन तू क्यों घबराए
हक़ मान बैठा तू जिस पर
मेरा तेरा कहता रहा जीवन भर
यह जग सारा रैन बसेरा है
चिता की लकड़ियों पर ही अंतिम तेरा सवेरा है
अरे पागल! मन तू क्यों घबराए
यह सत्य एक ऐसा सत्य है
जीवन परिवर्तन का चक्र है
आएँगे-जाएँगे कई किरदार यहाँ
यह तेरा संकल्प धरा रह जाएगा
अरे पागल! मन तू क्यों घबराए.
अनीता लागुरी 'अनु"🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍁
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार शुक्रवार 24 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-01-2020) को "बेटियों एक प्रति संवेदनशील बने समाज" (चर्चा अंक - 3591) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
सत्य है अन्नू पूरी रचना जीवन-दर्शन का निचोड़ है।
जवाब देंहटाएंलाज़वाब अभिव्यक्ति।
सस्नेह।
बहुत सुन्दर रचना दार्शनिक भाव लिए...
जवाब देंहटाएंमोहपाश की गगरी छोड़
कब ठहरा है हाथों में रेत
चकाचौंध में डूबा यह जीवन
एक दिन राख में मिल जाएगा
अरे पागल! मन तू क्यों घबराए
बहुत लाजवाब...
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंवाह अनु जी, ऐसी वैराग्यपूर्ण बातें तो हम बुजुर्गों के मुख से अच्छी लगती हैं, आपने हमारी टेरेटरी में अनाधिकृत प्रवेश किया है. लेकिन आपकी बात बिलकुल सही है.
जवाब देंहटाएंहम तो इस उम्र में भी रिश्तों की रेत को मुट्ठी में दबाकर रखना चाहते हैं पर वो है कि फिसल ही जाती है.
जी बहुत-बहुत धन्यवाद गोपेश जी.. जी सोचा मैंने थोड़ा सा अलक लिखूं और शायद मेरा प्रयास सफल हुआ बिल्कुल सही कहा आपने रिश्ते ऐसे ही होते हैं जितने भी उन्हें दबाकर रखना चाहो तो कहीं ना कहीं से निकाले जाते हैं लेकिन एक अच्छी बात है कि फिर से नए रिश्ते बनने शुरू हो जाते हैं मुझे बेहद खुशी हुई कि आपने अपने विचार रखें धन्यवाद
हटाएंकविता की प्रत्येक पंक्ति में जीवन-दर्शन अत्यंत का सुंदर भाव हैं.... संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता...
जवाब देंहटाएंवाह आध्यात्म भावों से रची शाश्र्वत दर्शन पर गहन सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
तू क्या लाया था जो लेकर जाएगा
जवाब देंहटाएंमृगतृष्णा की चाह में एक दिन मारा जाएगा
पंच तत्वों से निर्मित ये ढलती काया
अमर तत्व के तेरे विश्वास को झुठलायेगा
अरे पागल! मन तू क्यों घबराए
अनु दी,जीवन का कटु सत्य उकेरती बहुत ही सुंदर रचना।
भावपूर्ण रचना, बधाई.
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