भावों को शब्दों में अंकित करना और अपना नज़रिया दुनिया के सामने रखना.....अपने लेखन पर दुनिया की प्रतिक्रिया जानना......हाशिये की आवाज़ को केन्द्र में लाना और लोगों को जोड़ना.......आपका स्वागत है अनु की दुनिया में...... Copyright © अनीता लागुरी ( अनु ) All Rights Reserved. Strict No Copy Policy. For Permission contact.
बुधवार, 13 नवंबर 2019
निजता मेरी हर लेना..!
मंगलवार, 12 नवंबर 2019
संवाद में प्यार क़ाएम रहता है
जबसे श्यामा जी की मधुमेह की बीमारी के बारे में सुधा को पता चला बस उसके बाद से ही उन्होंने उनकी खाने-पीने की चीज़ों में मीठा डालना कम कर दिया। लेकिन यह उनके बीच रिश्तों की मिठास ही है जो इतने सालों के बाद भी श्यामा जी के चाशनी में डूबे संवाद सुधा को फिर से वही पहले वाली सुधा बना देते हैं जहाँ अतीत के गलियारों में जाकर अपनी ससुराल के पहले दिन बनायी गयी चाय के स्वाद को याद करती हैं जब वो चाय में चीनी मिलाना ही भूल गयी थी पर सब की मुस्कुराहटों ने उसे एहसास नहीं होने दिया कि उसने चाय में चीनी ही नहीं मिलायी!
प्यार करने का तरीक़ा भले ही बदल जाय मगर कुछ रिश्तों में प्यार कभी नहीं बदलता है। ऐसा ही श्यामा जी का प्यार है, वे अपनी जीवनसंगिनी से बहुत प्यार करते हैं। जितना मैं उन्हें जानती हूँ, उनके रिश्ते में प्यार उम्र की मोहताज नहीं।यहाँ जो संवादों की रेलम-पेल मैंने परोसी है! वह मेरे पड़ोस में रहने वाले एक ख़ूबसूरत से बुज़ुर्ग कपल की रोज़ होनेवाली नोंकझोंक की एक झलकी है।
#अनीता लागुरी 'अनु'
रविवार, 10 नवंबर 2019
मूक-बधिर भेड़ें..!!
भेडों को चरा रहा था
भेड़ें मूक-बधिर
सिर्फ़ साँस ले रहीं थीं
सँकरे नासिका-छिद्र से
कुछ ने कहा- "चलो उस ओर"
कुछ ने कहा- "रुक जाओ यहाँ"
कुछ ने आँखें दिखायीं
फिर भी बात न बनी,
तो हाथ पकड़कर
खींच ले गये
सजाने ओर सँवारने
अपनी जमात में
एक और किरदार शामिल करने
वो तुम नहीं
हम थे..!!
मूक-बधिर किये गये
भेडों के झुंड!!!
@अनीता लागुरी 'अनु'
गुरुवार, 7 नवंबर 2019
पब्लिक बेचारी किधर जाये..!!
मार खाये पुलिस
थोड़ा अटपटा साथ है ज़रूर मगर
बात पते की कहती हूँ
पुलिस माँगे सुरक्षा
वकील माँगे न्याय
तो जनाब ये पब्लिक
बेचारी किसके द्वारे जाये?
लगता है सिस्टम की कार्य-प्रणालियाँ
चल पड़ी हैं भस्मासुर की राह पर
ताब-ओ-ताकत की कलई खोलकर
ख़ुद से ही दीमक को न्यौता दे दिया.
बुधवार, 6 नवंबर 2019
तुम्हारी मृदुला
तापस!
मेरी डायरियों के पन्नों में,
रिक्तता शेष नहीं अब,
हर सू तेरी बातों का
सहरा है..!
कहाँ डालूँ इन शब्दों की पाबंदियाँ
हर पन्ने में अक्स तुम्हारा
गहरा है...!
वो टुकड़ा बादल का,
वो नन्हीं-सी धूप सुनहरी,
वो आँगन गीला-सा
हर अल्फ़ाज़ यहाँ पीले हैं।
तलाशती फिर रही हूँ..
शायद कोई तो कोना रिक्त होगा...!
वो मेरा नारंगी रंग....!
तुम्हें पढ़ने की मेरी अविरल कोशिश..!
और मेरे शब्दों की टूटती लय..!
वो मेरी मौन-मुखर मुस्कान..
कैसे समाऊँ पन्नों में ..!
हर सू तेरी यादों का सहरा है।
तापस..!
कहाँ बिखेरूँ इन शब्दों की कृतियाँ
यहाँ रिक्तता शेष नही अब...!
तुम्हारी मृदुला
#अनीता लागुरी 'अनु'
रविवार, 3 नवंबर 2019
नंदू...!!
नंदू
नंदू दरवाजे की ओट से,
निस्तब्ध मां को देख रहा था...
मां जो कभी होले से मुस्कुरा देती
तो कभी दौड़ सीढ़ियों से उतर
अंगना का चक्कर लगा आती..!
तू कभी चूल्हे पर चढ़ी दाल छोंक आती..
माँ,, आज खुश थी बहुत
अब्बा जो आने वाले थे आज
चार सालों के बाद..
निकाल लाई संदूकची से कानों की बालियां..
और लगा..!!
माथे पर लाली
बालों में गजरा...!
और पहन वो साड़ी नारंगी वाली,
खुद ही मन ही मन शरमा जाती
मां को देख मेरा भी मन हर्षाया
जो कभी पायल बजाती रुनझुन रुनझुन..
और कभी मुझे उठाती गोद में
आज मां खुश थी बहुत
मांगी थी दुआ भगवान से
दे देना लंबी उम्र मेरे सुहाग को
पर...?
अब भी नंदू मां को देख रहा था
मां जो अब चुप थी...
मां जो अब खामोश थी
कुछ कह रही थी तो माँ की आँखे
और आंखों से बहती जल की निर्मल धारा
ताई ने तोड़ी मां की चूड़ियां
पोंछ डाला लाल रंग माथे का
ओर बिखेर दिया मां का जुड़ा
नोच डाला वह चमेली के फूल
पल में बदल गई थी दुनिया हमारी
जहां गूंज रही थी मां की हंसी
अब गूंजने लगे थे सिसकियों के सुर..!
अब्बा आए तो जरूर थे
पर चार कंधों में लेट कर
चंद बे मकसद बेरहम लोगों ने
दागी थी गोलियां उनके सीने पर
और मैं अब भी मां को देख रहा हूँ
दरवाजे की ओर से निस्तब्ध...!!
अनीता लागुरी अनु🍁🍁
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आज फिर तुम साथ चले आए घर की दहलीज़ तक..! पर वही सवाल फिर से..! क्यों मुझे दरवाज़े तक छोड़ विलीन हो जाते हो इन अंधेरों मे...
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कभी चाहा नहीं कि अमरबेल-सी तुमसे लिपट जाऊँ ..!! कभी चाहा नहीं की मेरी शिकायतें रोकेंगी तुम्हें...! चाहे तुम मुझे न पढ...