भेडों को चरा रहा था
भेड़ें मूक-बधिर
सिर्फ़ साँस ले रहीं थीं
सँकरे नासिका-छिद्र से
कुछ ने कहा- "चलो उस ओर"
कुछ ने कहा- "रुक जाओ यहाँ"
कुछ ने आँखें दिखायीं
फिर भी बात न बनी,
तो हाथ पकड़कर
खींच ले गये
सजाने ओर सँवारने
अपनी जमात में
एक और किरदार शामिल करने
वो तुम नहीं
हम थे..!!
मूक-बधिर किये गये
भेडों के झुंड!!!
@अनीता लागुरी 'अनु'
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 10 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं..जी यशोदा दी..निमंत्रण का बहुत बहुत धन्यवाद जरूर आउंगी
हटाएंअप्रतिम सृजन अनु ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद मीना दी..आपको ब्लॉग में देख कर बहुत खुशी होती है...💐
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद मीना दी..आपको ब्लॉग में देख कर बहुत खुशी होती है...💐
जवाब देंहटाएंसही !
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (11-11-2019) को "दोनों पक्षों को मिला, उनका अब अधिकार" (चर्चा अंक 3516) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
सुंदर अभिव्यक्ति 👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद अनुराधा जी
हटाएंवाह !बेहतरीन सृजन प्रिय अनु.
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता जी
हटाएंडर/स्वार्थ इंसान को भेड़ सामान ही बना देता है ...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना है ...
बहुत ही सुन्दर सार्थक सृजन...
जवाब देंहटाएंवाह!!!