रविवार, 10 नवंबर 2019

मूक-बधिर भेड़ें..!!

                                      
मनुष्यों का एक झुंड
भेडों को चरा रहा था
  भेड़ें  मूक-बधिर
सिर्फ़ साँस ले रहीं थीं
      सँकरे नासिका-छिद्र से
कुछ ने कहा- "चलो उस ओर"
कुछ ने कहा- "रुक जाओ यहाँ"
    कुछ ने आँखें दिखायीं
    फिर भी बात न बनी,
     तो हाथ पकड़कर
        खींच ले गये 
    सजाने ओर सँवारने
      अपनी जमात में
 एक और किरदार शामिल करने
       वो तुम नहीं
            हम थे..!!
 मूक-बधिर किये गये
       भेडों के झुंड!!!

    @अनीता लागुरी 'अनु'

13 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 10 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. ..जी यशोदा दी..निमंत्रण का बहुत बहुत धन्यवाद जरूर आउंगी

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद मीना दी..आपको ब्लॉग में देख कर बहुत खुशी होती है...💐

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  3. बहुत बहुत धन्यवाद मीना दी..आपको ब्लॉग में देख कर बहुत खुशी होती है...💐

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (11-11-2019) को "दोनों पक्षों को मिला, उनका अब अधिकार" (चर्चा अंक 3516) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं….
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

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  5. वाह !बेहतरीन सृजन प्रिय अनु.
    सादर

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  6. डर/स्वार्थ इंसान को भेड़ सामान ही बना देता है ...
    अच्छी रचना है ...

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  7. बहुत ही सुन्दर सार्थक सृजन...
    वाह!!!

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