सोमवार, 4 दिसंबर 2017

सांध्य बेला की ओर ...जीवन बढ़ चला !!!


जीवन बढ़ चला
सांध्य बेला की ओर ...!
सूरज ने भी रक्तिम आभा बिखेर
स्वागत किया मेरा...!
यूँ  लगे कल ही तो
चलना शुरू किया था...!
                  मैंनें ....
थाम  उंगलियां...बाबा की,
गिरकर चला, चलकर बढ़ा ,
 प्रतिपल, प्रतिक्षण , अग्रसर
बढ़ता रहा जीवन पथ पर सदैव...!
हर मौसम ने छुआ मुझे...!
हर मौसम ने तरल किया ... मुझे।
नित नए अनुभवों को जीता,
हर रस को पिया  मैंने
कभी लगा  नहीं बालों की चांदनी छिपाऊँ ,
जी लिया हूँ  जीभर कर
              पर.....
अब तो थकावट-सी होने लगी  है ...!
जीवन सांध्य भी ऊँधने लगी है
दस्तक धीमे से कानों  में गूंजने  लगी है
चलो  अब चलते हैं..
सांसो में पाबंदियां-सी लगने लगी हैं ।
यों   लगे बार- बार ,
सूरज भी कहता हो
मुझसे..!!                                                                                                                                                                                
इस पोशाक को उतार
नयी  को धारणकर                                                                                                                                     नव प्रवेशद्वार में  प्रवेश कर....!!!
इस क्षितिज से उस क्षितिज  तक जाने की।
अग्रिम  तैयारी कर..!!

 #अनीता लागुरी ( अनु )

शनिवार, 2 दिसंबर 2017

वो पगली...!

वो पगली,
अक्सर गली के चौराहे पर.....!
वो घूरती नीली-सी नज़र
ठिठका जाती कदमों को मेरे....!
एक पल को जड़ हो जाता मैं....
और लगता चोरी से.....
निहारने उसे,
वो बिखरे बालों वाली
फटे चिथड़ों  से,
तन को लपेटने वाली....!
यौवन की ओर अग्रसर
वह पगली मुझे...!
अनायास ही खींच लेती..अपनी ओर.!
और मैं बावरा,
पल में  उसके रोने,
पल में  उसके हँसने की
जादूगरी को देख..!
मन ही मन मुस्करा देता
और पास जाकर पूछ बैठता
रोटी खाई तुमने...?
क्या तुम्हें भूख लग रही है..?
और वो........
न जाने कौन-सी  अक्षुण्ण 
अनुभुति लिए कहती मुझसे...
धत्त बाबू...!!!
# अनीता लागुरी (अनु )
                                                                     (चित्र  साभार गुगल )

शुक्रवार, 1 दिसंबर 2017

कैसै कर दूँ रिटायर तुम्हें मेरे मोबाइल ...


अक्सर मैं और मेरा मोबाइल फोन 

बातें  करते हैं ...!

गर तुम ना होते 

तो मेरा क्या होता...?

मैं  न  होती  तो 

कौन तुझे दुलारता ..!

 मोबाइल कातर भाव से कहता है -

कोमल हाथों का स्पर्श कैसे मुझे सहलाता

सुन मेरे फोन -

कानों में मेरे कौन सरगोशियां करता

जब भी सताता अकेलापन 

कैंडी क्रश  कौन  खिलाता

मित्रों से कौन मिलाता 

याद है  मुझे

तेरा वो लाल डिब्बे में आना...!

हौले से मुस्कराकर हैलो कहना...!

कितनी  ख़ुश थी तुझे  पाकर

रात-दिन सारा साथ बिताते ....

साथ ही सोते 

साथ ही जागते ...!

पहचानती है रंग तेरा 

मेरी रजाई / लिहाफ़ ...भी



ब्रश करने से लेकर किचन तक 

तुम मुझमें  मैं तुममें  समाई-सी    

कितनी यादेँ गुथी हैं तुमसे ...!

कितने बादल बरसे हैं 

आँखों से  झर-झर-से

वो मेरा प्यार 

उसकी बातें....      
  
उसकी लड़ाइयाँ ....

सब तुमने देखी-सुनीं है न.....

साक्षी हो बात-बात के 
पर कैसे ...........?  

लोगों को तुम लगे अखरने....!

मॉडल और की-पैड से लगने लगे पुराने...!

कइयों ने समझाया मुझे......

कर दो छुट्टी अब तुम इसकी...

डाल डिब्बे में दो इसको जल्दी...

लिख डालो रिटायरमेंट इसका....!

पर ये क्या जाने नामुराद...


हर दर्द को जीया है संग हमने.....

अपाहिज रिश्ते क्या निभाए नहीं जाते..???

पुराने स्वेटर क्या ठंड से नहीं बचाते..!!

चलो माना फीचर्स थोड़े कम हैं इसमें....!

रंग भी उड़ा-सा बैटरी भी डाउन है इसकी 

फिर भी कई अनमोल यादें हैं इसमें..!!

कैसै कर दूँ  रिटायर तुम्हें मेरे मोबाइल ...

हाथों में..... दिल में...... मेरे 

तुम ही हो बसते ओ प्यारे मोबाइल....!!!

#अनीता लागुरी (अनु)

शुक्रवार, 24 नवंबर 2017

मन करता है....


 हां मन करता  है
कभी सो जाऊँ 
पेड़ के तले 
बिछाकर छोटा-सा 
एक रुमाल....!


और पी लूँ वहीं
खड़े  ठेले से
कुल्हड़ वाली चाय


और कभी प्यास लगे
तो भर लूँ  गली के नल से
अंजुरीभर  पानी और बुझा लूँ 
प्यास.....!


थक गया हूँ 
दिखावे  की हाय-हैलो से
सलीके से पहने 
कपड़ों  से...!


फास्ट-फूड के नाम पर
चायनीज़ों  के स्टेंडर्ड  से
याद आती है ,
पानी पुरी आहहहहहह"""""
उसका वो नमक-मिरच
का मिश्रण.....!!!


कहां पहुँच  गया  हूँ मैं 
देखकर‌ भी खा नहीं  सकता
लगे ....क्या सोचेंगे मेरे 
सो  कॉल्ड  मित्र !


ज़िन्दगी रफ़्तार  हो गई !
मानो उसैन बोल्ट-सी फास्ट हो गई !!!!
जो चाहा हासिल  कर लिया
जो चाहा देख लिया
गूगल मानो
घर में रखे  आईने के सामान  हो..... 
जहां जो देखो
सच ही दिखाता है..... (?)


थक गया हूँ 
वो सुकून  वाली 
नींद कहां आँखों में 
याद आते हैं 
वो दिन जब लकड़ी के पटरों पर भी
 नींद आ जाया करती थी.... 

खैनी रगड़ते दोस्तों  से भी
गले लग लिया करता था..
अब तो
ज़िन्दगी  मानो झूठी  किताब हो गई
हर शख़्स  बहुरुपिया ....
नियत
मुँह में राम  बग़ल में छुरी हो गई 

हाँ  थक गया हूँ  बहुत ...
मन करता है
सो जाऊँ  कहीं ..... !

#अनीता लागुरी (अनु )
...........................................
नोट : (तंबाकू (खैनी) सेहत के लिए हानिकारक है , प्रयास करें दूर रहें  .)
  • (चित्र साभार: गूगल)

बुधवार, 22 नवंबर 2017

नहीं रोकेंगी तुम्हें...


कभी चाहा नहीं 
कि  अमरबेल-सी 
तुमसे लिपट जाऊँ ..!!
कभी चाहा नहीं की
मेरी शिकायतें
रोकेंगी तुम्हें...!
चाहे तुम मुझे 
न पढ़ने की 
बरसों की पीड़ा का 
त्याग  करो न  करो। 
       हाँ !
ख़ामोशी  से जलना
आता है मुझे
अपने अंदर उमड़ रहे
सवालों को समेटकर.......
उदासी की सफ़ेद  चादर
ओढ़ना  पसंद है मुझे
चाहे तुम मुझे पढ़ो  या न पढ़ो ...!
मेरी स्याह रातें
मेरी करवट बदलती रातें...!
शोर करती मेरी.... 
गुपचुप सिसकियों का सच
और मुझे देखता वह चाँद अकेला..!
पर फिर भी मेरी शिकायतें
नहीं रोकेंगी तुम्हें 
चाहे तुम मुझे पढ़ने की पीड़ा का
त्याग  करो या न करो...!
#अनीता लागुरी (अनु )

(चित्र साभार : गूगल)

मंगलवार, 21 नवंबर 2017

एक ज़िंदा भारतीय....


क्यों   दिखता  नहीं 
एक  ज़िंदा  भारतीय
क्यों दिखती  नहीं
भूख  से कुलबुलाती
  उसकी  अतड़ियाँ  ..!
उसकी  आशायें ,
उसकी हसरतें  ,
दिखती  कब  हैं 
  जब .....?
 वो  मर  जाता  है  !
      लोगों  की  आँखों  पर 
चढ़   जाता है  ..
           एक  अंजुरीभर  चावल  के  बदले ..!
           घर  बोरों   से  भर   जाता   है ...
           टूटी खाट आँगन  में  सज  ज़ाती है 
          बन  सूर्खियां अख़बारों  की
            बाक़ियों  की जुगाड़ कर जाता है। 
🍂🍁🍂#अनु 


चित्र साभार: गूगल ...