अक्सर मैं और मेरा मोबाइल फोन
बातें करते हैं ...!
गर तुम ना होते
तो मेरा क्या होता...?
मैं न होती तो
कौन तुझे दुलारता ..!
मोबाइल कातर भाव से कहता है -
कोमल हाथों का स्पर्श कैसे मुझे सहलाता
सुन मेरे फोन -
कानों में मेरे कौन सरगोशियां करता
जब भी सताता अकेलापन
कैंडी क्रश कौन खिलाता
मित्रों से कौन मिलाता
याद है मुझे
तेरा वो लाल डिब्बे में आना...!
हौले से मुस्कराकर हैलो कहना...!
कितनी ख़ुश थी तुझे पाकर
रात-दिन सारा साथ बिताते ....
साथ ही सोते
साथ ही जागते ...!
पहचानती है रंग तेरा
मेरी रजाई / लिहाफ़ ...भी
ब्रश करने से लेकर किचन तक
तुम मुझमें मैं तुममें समाई-सी
कितनी यादेँ गुथी हैं तुमसे ...!
कितने बादल बरसे हैं
आँखों से झर-झर-से
वो मेरा प्यार
उसकी बातें....
उसकी लड़ाइयाँ ....
सब तुमने देखी-सुनीं है न.....
साक्षी हो बात-बात के
पर कैसे ...........?
लोगों को तुम लगे अखरने....!
मॉडल और की-पैड से लगने लगे पुराने...!
कइयों ने समझाया मुझे......
कर दो छुट्टी अब तुम इसकी...
डाल डिब्बे में दो इसको जल्दी...
लिख डालो रिटायरमेंट इसका....!
पर ये क्या जाने नामुराद...
हर दर्द को जीया है संग हमने.....
अपाहिज रिश्ते क्या निभाए नहीं जाते..???
पुराने स्वेटर क्या ठंड से नहीं बचाते..!!
चलो माना फीचर्स थोड़े कम हैं इसमें....!
रंग भी उड़ा-सा बैटरी भी डाउन है इसकी
फिर भी कई अनमोल यादें हैं इसमें..!!
कैसै कर दूँ रिटायर तुम्हें मेरे मोबाइल ...
हाथों में..... दिल में...... मेरे
तुम ही हो बसते ओ प्यारे मोबाइल....!!!
#अनीता लागुरी (अनु)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
रचना पर अपनी प्रतिक्रिया के ज़रिये अपने विचार व्यक्त करने के लिये अपनी टिप्पणी लिखिए।