वो पगली,
अक्सर गली के चौराहे पर.....!
अक्सर गली के चौराहे पर.....!
वो घूरती नीली-सी नज़र
ठिठका जाती कदमों को मेरे....!
और लगता चोरी से.....
निहारने उसे,
वो बिखरे बालों वाली
फटे चिथड़ों से,
तन को लपेटने वाली....!
यौवन की ओर अग्रसर
वह पगली मुझे...!
अनायास ही खींच लेती..अपनी ओर.!
और मैं बावरा,
पल में उसके रोने,
पल में उसके हँसने की
जादूगरी को देख..!
मन ही मन मुस्करा देता
और पास जाकर पूछ बैठता
रोटी खाई तुमने...?
क्या तुम्हें भूख लग रही है..?
और वो........
न जाने कौन-सी अक्षुण्ण
अनुभुति लिए कहती मुझसे...
धत्त बाबू...!!!
# अनीता लागुरी (अनु )
(चित्र साभार गुगल )
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