हां मन करता है
कभी सो जाऊँ
पेड़ के तले
बिछाकर छोटा-सा
एक रुमाल....!
और पी लूँ वहीं
खड़े ठेले से
कुल्हड़ वाली चाय
और कभी प्यास लगे
तो भर लूँ गली के नल से
अंजुरीभर पानी और बुझा लूँ
प्यास.....!
थक गया हूँ
दिखावे की हाय-हैलो से
सलीके से पहने
कपड़ों से...!
फास्ट-फूड के नाम पर
चायनीज़ों के स्टेंडर्ड से
याद आती है ,
पानी पुरी आहहहहहह"""""
उसका वो नमक-मिरच
का मिश्रण.....!!!
कहां पहुँच गया हूँ मैं
देखकर भी खा नहीं सकता
लगे ....क्या सोचेंगे मेरे
सो कॉल्ड मित्र !
ज़िन्दगी रफ़्तार हो गई !
मानो उसैन बोल्ट-सी फास्ट हो गई !!!!
जो चाहा हासिल कर लिया
जो चाहा देख लिया
गूगल मानो
घर में रखे आईने के सामान हो.....
जहां जो देखो
सच ही दिखाता है..... (?)
सच ही दिखाता है..... (?)
थक गया हूँ
वो सुकून वाली
नींद कहां आँखों में
याद आते हैं
वो दिन जब लकड़ी के पटरों पर भी
नींद आ जाया करती थी....
नींद आ जाया करती थी....
खैनी रगड़ते दोस्तों से भी
गले लग लिया करता था..
अब तो
ज़िन्दगी मानो झूठी किताब हो गई
अब तो
ज़िन्दगी मानो झूठी किताब हो गई
हर शख़्स बहुरुपिया ....
नियत
मुँह में राम बग़ल में छुरी हो गई
नियत
मुँह में राम बग़ल में छुरी हो गई
हाँ थक गया हूँ बहुत ...
मन करता है
सो जाऊँ कहीं ..... !
#अनीता लागुरी (अनु )
मन करता है
सो जाऊँ कहीं ..... !
#अनीता लागुरी (अनु )
...........................................
वाह !!अनु जी ,मन को बहुत भा गई आपकी लेखनी 👌👌बहुत ही उम्दा।
जवाब देंहटाएंजी आभार शुभा जी,आपको अच्छी लगी तहे दिल से शुक्रिया...🙏
हटाएंवाह!!!!! अनु जी बहुत ख़ूब. वर्तमान और अतीत के बीच आधुनिकता से तालमेल बैठाने के फेर में कशमकश में उलझे चरित्र को आपने बख़ूबी रोचकता के साथ चित्रित किया है. आपकी पारखी नज़र जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में कविता की तलाश कर रही है . और हमें भी ऐसी ताज़गी देने वाली कविताओं की तलाश रहती है. बधाई एवं शुभकामनायें. लिखते रहिये.....
जवाब देंहटाएंमन का कोई छोर नहि होता ...
जवाब देंहटाएंउसे खुले छोड़ देना चाहिए ... उड़ान करने देनी चाहिए ...
जी दिगंबर जी शुभ संध्या मन की मन को ही करने देनी चाहिए..!!धन्यवाद इतनी अच्छी प्रतिक्रिया हेतु..!!
हटाएंबदलते समय के परिप्रेक्ष्य में सुंदर रचना के माध्यम से जागरण लाती इस रचना हेतु बधाई।
जवाब देंहटाएंप्रिय अनिता आपकी रचना से आधुनिकता की भ्रामक दौड़ में त्रस्त हुए भावुक मन की अव्यक्त भावनाओं को अभिव्यक्ति मिली है | भौतिकता की अंधी दौड़ में भागता मन भीतर से कितना अकेला हो जाता है ये आपने बखूबी बयान किया है | थके तन- मन से शायद वो ऐसा ही सोचता होगा | अलग सी इस रचना पर आप विशेष सराहना की हकदार हैं |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर। थोड़ा फोंट कलर चेंज करो। पढ़ने में परेशानी महसूस हो रही है।
जवाब देंहटाएंजी आभार सुशील जी.. माफी चाहुंगी असुविधा के लिए ...जी करती हुं।
हटाएंबहुत ही उम्दा
जवाब देंहटाएंआपकी ये रचना पढ़ने के बाद सच में लगता है कि कही एकांत में जाकर, अपनी जेब से रुमाल निकालकर उसे किसी पेड़ तले बिछाकर कुछ घंटे चैन से जाऊँ ।
जवाब देंहटाएंआपने बहुत ही आले दर्जे का लेखन किया है
जी बेहद आभार आपका ... खुशी हुई की कविता की गहराई में आप उतर पाएं. तहे दिल से शुक्रिया...
जवाब देंहटाएंमहिला रचनाकारों का योगदान हिंदी ब्लॉगिंग जगत में कितना महत्वपूर्ण है ? यह आपको तय करना है ! आपके विचार इन सशक्त रचनाकारों के लिए उतना ही महत्व रखते हैं जितना देश के लिए लोकतंत्रात्मक प्रणाली। आप सब का हृदय से स्वागत है इन महिला रचनाकारों के सृजनात्मक मेले में। सोमवार २७ नवंबर २०१७ को ''पांच लिंकों का आनंद'' परिवार आपको आमंत्रित करता है। ................. http://halchalwith5links.blogspot.com आपके प्रतीक्षा में ! "एकलव्य"
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जवाब देंहटाएंजी बहुत-बहुत धन्यवाद ध्रुव जी आमंत्रण के लिए। पांच लिंकों का आनंद की ओर से इस विशेष आयोजन के लिए मेरी ओर से शुभकामनाएं। कल चर्चा के लिए जरूर हाजिर हो जाऊंगी। आज रचना संसार में महिला रचनाकार ज्यादा सशक्त और मुखर होकर अपनी अभिव्यक्ति को समाज के समक्ष रख रही हैं। महिलाओं के अंतर्द्वंद को बड़ी गहराई के साथ आजकल महिला रचनाकार शब्दांकन कर रही हैं। आभार आपका।
जवाब देंहटाएंअनीता जी बहुत यथार्थ भरे भाव हैं आपकी रचना में .
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका मीना जी। आते रहिएगा ब्लॉग पर। आपके ब्लॉग पर ज़रूर पहुंचकर आपकी रचनाओं को पढूंगी।
हटाएंसच में जिंदगी कृत्रिम सी हो गई है...आपने सच्चाई को सहजता से दर्शाया अपनी रचना में ।
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