मुँह अँधेरे वह चल पड़ती है
अपनी चाँगरी में डाले जूठे बर्तनों के जोड़े
और सर पर रखती है एक माटी की हाँडी
और उठा लेती है जोजो साबुन की
एक छोटी-सी टिकिया
जो वहीं कहीं कोने में फेंक दी जाती है
और नंगे पाँव ही निकल पड़ती है पोखर की ओर
हुर्र... हुर्र....हुर्र....
मर सैने पे......हुर्र मर... मर..
का शोर करती हुई,
बकरियों और गायों को हाँक ले जाती है
वह परवाह नहीं करती बबूल के काँटों की
क्योंकि काँटे पहचानते हैं उसके पैरों को,
पगडंडियाँ झूम उठती हैं
जब उसकी काली फटी पैरों की बिवाइयों में
मिट्टी के कण धँस जाते हैं
वह परिचित है उसके पैरों की ताकत से
उसके बग़ल से आती पसीने की गंध से
वह परवाह नहीं करती अपने बिखरे बालों की
और न ही लगाती है डाहाता हुआ लाल रंग माथे पर
उसका आभूषण उसकी कमर के साथ बँधा हुआ उसका दुधमुंहा बच्चा होता है
जो अपने में ही मस्त
अपनी माँ के स्तन से चिपका हुआ
दुनियादारी की बातें सीखता है
और माँ गुनगुनाते हुए बाहृ परब का कोई गाना
अतिथियों के आगमन से पहले
लीपती है आँगन को गोबर से
और ओसारे में बिछा देती है एक टूटी खटिया
जो द्योतक होती है उसके अतिथि प्रेम की
और तोड़ लाती है सुजना की डालियाँ
पीसती है सिलबट्टे पर इपील बा की कलियाँ
और मिट्टी के छोटे से हाँडे में
चढ़ा देती है अपने खेत के धान से निकले चावल
जो सरजोम पेड़ की लकड़ियों संग उबलते हुए
सुनाते हैं उसकी मेहनत की कहानी
वह खेतों के बीच से गुज़रती टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों के बीच
ताकती है उन राहगीरों को
जो जाते हैं उसके मायके के पास लगने वाले हाट बाज़ार में को
जहाँ संदेशा भिजवाती है।
"अंणा बाबा देरंगम काजीए...
आबेना ती रे जुका
कंसारी दाली कूल ते चा|"
फिर तैयार होती है अपने जूड़े में
सरहूल का फूल खोंसकर,
बढ़ जाती है उस ओर जहाँ सुसुन आँकड़ा में
दामा दुमंग के साथ गाये जाते हैं जीवन के गीत
उड़ती हुई धूल की परवाह न करते हुए
गोलाकार पँक्तियों में नृत्य करते हुए
थका देती है उन पैरों को
जो जानते हैं इसके अंदर रची-बसी
आदिवासी महिला होने का मतलब |
जोहार...!!!
अनीता लागुरी 'अनु'
कविता में मैंने कुछ स्थानीय भाषा के शब्द जोड़े हैं जिनके अर्थ नीचे दिए गए हैं
(१)चाँगरी-टोकरी
(२)इपील बा-खट्टी मीठी फूल की कलियाँ
(३)जोजो साबुन-इमली से बनने वाला साबुन
(४)सुसून आँकड़ा-नृत्य स्थान
(५)"अंणा बाबा देरंगम काजीए...
आबेना ती रे जुका
कंसारी दाली कूल ते चा- मेरी मायके से लगने वाले बाजार को जाने वाले राहगीर वहां अगर मेरी बाबा से मुलाकात होगी तो उनसे कहना मेरे लिए खेसारी का दाल भेज दे
(६)मर सैने पे......हुर्र मर... मर..- भेड़ बकरियों को अपनी भाषा में हांका जाता है चलो चलो आगे बढ़ो.