लंबी श्वास भरी उसने और चाय की अंतिम चुसकी ली,और अपनी कमर में साड़ी के आंचल को खोसा, .....बेतरतीब ढंग से अपने बालों की छोटी सी पोनी बनाई और जुट गई घर के कामों में,... इस छोटे से ब्रेक टाइम में उसने खुद को रिचार्ज किया उसे पता था अब वह दिनभर बहुत व्यस्त रहने वाली है...!!! ये हे हमारी प्यारी अनुष्का जो शादी के 5 सालों के बाद भी एक अदने से ब्रेक के लिए तरसती रहती है..!! वो चाहती है कि जब वो चाय की प्याली के साथ बालकनी में खड़ी हो तो उसे कोई भी परेशान ना करें कोई भी उसे ना टोके ..हब्बी भी यह ना कहें अनु प्लीज मेरी टाई कहां है... ??? मेरी जुराब कहां है ?? यह बच्चे यह न कहे की मम्मी मेरी टिफिन कहां है ? बस इस आधे धंटे वो खुद को देना चाहती है ,जरा सा गुनगुना चाहती है,ये छोटा सा ब्रेक अनु के लिए..बेहद खास होता है....उसे अच्छा लगता है !!! बालकनी सेभागती दौड़ती जिंदगी को सड़कों पर उलझते देखना,और ... वहीं कोने में गमलों में उग आए मनीपंलाट के लतरौ को बिला वजह तंग करना और बालकनी में बैठकर आते-जाते लोगों को देख चाय..... की छोटी छोटीं चुस्कियां लेना और हौले से मुस्कुराकर सामने वाली शर्मा आंटी को गुड मॉर्निंग कहना...!!!
पर क्या करें वो भी इस एक पल को पाने के लिए वो सुबह के पांच बजे उठती है.....!!
पर फिर भी वो इस पर को luckly ढुंढ पाती है..!
(अब दोपहर को मिलती हुं लंच टाइम में)
अनु 🍂🍁
भावों को शब्दों में अंकित करना और अपना नज़रिया दुनिया के सामने रखना.....अपने लेखन पर दुनिया की प्रतिक्रिया जानना......हाशिये की आवाज़ को केन्द्र में लाना और लोगों को जोड़ना.......आपका स्वागत है अनु की दुनिया में...... Copyright © अनीता लागुरी ( अनु ) All Rights Reserved. Strict No Copy Policy. For Permission contact.
गुरुवार, 7 जून 2018
#ब्रेक टाईम
सोमवार, 28 मई 2018
When some one does not understand me...then i feel very angry...
I want to tell everyone..that I am not wrong .nor ever..
I want to shout.but my scream s smolder inside this house..!!
I want to break the chainsmokers of this slavery..!!
Want to fly in the open sky..!!
I want to tell everyone..that I am not wrong .nor ever..
I want to shout.but my scream s smolder inside this house..!!
I want to break the chainsmokers of this slavery..!!
Want to fly in the open sky..!!
Want to touch the colourful butterflies..!!
I want to fly my kiye to the highest height.in the sky...!!i
I want to.live life..!!
I want breath..
But i wont..
Plz give me back my freedom ..!!
I want to fly my kiye to the highest height.in the sky...!!i
I want to.live life..!!
I want breath..
But i wont..
Plz give me back my freedom ..!!
Annu
Pic courtesy by #Devon oppemiehr mam wall
सोमवार, 16 अप्रैल 2018
ख़ामोश मौतें!!
बस्तियां- दर- बस्तियां
हुईं ख़ामोश ,
ये फ़ज़ाओं में कोन-सा
ज़हर घुल गया..!!
जहां तक जाती हैं
नज़रें मेरी..!
वहां तक लाशों का
शहर बस गया..!!
इन सांसों में कैसी,
घुटन है छाई,
मौत से वाबस्ता
हर बार कर गया...!!
ये कैसी ज़िद है,
तुम्हारी
ये कैसा जुनून है
तुम्हारा..!
कि मुकद्दर में मेरे
सौ ज़ख़्म लिख गया..!!!
तुम भी इंसां हो
मैं भी इंसां हूँ ,
फिर भला मेरी मौत
तुम्हें है...क्यों प्यारी....??
कभी देखा है?
मासूम हाथों में..!!
बहते लाल रंग को!!
जिह्वा निकल रही ,
उबलती आंखों को,
कतारों में
लेटी अनगिनत लाशों को,
कफ़न भी मयय्सर न
होने वाले मंज़र को...!!
वो ऊपर बैठा
हुईं ख़ामोश ,
ये फ़ज़ाओं में कोन-सा
ज़हर घुल गया..!!
जहां तक जाती हैं
नज़रें मेरी..!
वहां तक लाशों का
शहर बस गया..!!
इन सांसों में कैसी,
घुटन है छाई,
मौत से वाबस्ता
हर बार कर गया...!!
ये कैसी ज़िद है,
तुम्हारी
ये कैसा जुनून है
तुम्हारा..!
कि मुकद्दर में मेरे
सौ ज़ख़्म लिख गया..!!!
तुम भी इंसां हो
मैं भी इंसां हूँ ,
फिर भला मेरी मौत
तुम्हें है...क्यों प्यारी....??
कभी देखा है?
मासूम हाथों में..!!
बहते लाल रंग को!!
जिह्वा निकल रही ,
उबलती आंखों को,
कतारों में
लेटी अनगिनत लाशों को,
कफ़न भी मयय्सर न
होने वाले मंज़र को...!!
वो ऊपर बैठा
वो भी यही सोच रहा होगा
कब इंसानो को मैंने
राक्षस बना दिया..!!!
कब इंसानो को मैंने
राक्षस बना दिया..!!!
#अनीता लागुरी(अनु)
गुरुवार, 29 मार्च 2018
भ्रम के सिक्के
आज फिर वो एक
भ्रम को पाले उठेगा
उठा के गमछा,कुदाल
पी के सत्तु का घोल
चल देगा सड़क की ओर
और लगेगा ताकने,
उस ओर , जहां आते हैं
लोग मज़दूरों को चुनने,
शायद उसकी,
बेबसी पसंद आ जाए किसी को,
और ले चले उसे,
कंक्रीट के शहरों में,
जोतने उसका खेत,
और शाम ढले उसे मिलते हैं ,
कुछ सिक्को में समाए हुए
उसके भ्रम,
ओढ़कर अपनी पसलियों को
एक मरी मुस्कान के साथ
थमा वो चंद सिक्के,
अपनी बीवी की हथेलियों में
और कहता है,
ले के आ जुगाड़,
वो भी दौड़ पड़ती है,
उठा के थैला,
भ्रम के चंद सपने खरीदने,
ये कहानी है,
एक आम मज़दूर की,
व्यवस्था के ढ़ेर पर
बैठे परिवर्तन की प्रतीछा करते,
दिग्भ्रमित सपनों की,
जिन्हें सिर्फ़ आता है,
अनाज के चंद दाने उगाना
वरना गमछे में ही,
उन्हें जीवन का सारा सच
निचोड़ना आता है।
#अनीता लागुरी (अनु)
भ्रम को पाले उठेगा
उठा के गमछा,कुदाल
पी के सत्तु का घोल
चल देगा सड़क की ओर
और लगेगा ताकने,
उस ओर , जहां आते हैं
लोग मज़दूरों को चुनने,
शायद उसकी,
बेबसी पसंद आ जाए किसी को,
और ले चले उसे,
कंक्रीट के शहरों में,
जोतने उसका खेत,
और शाम ढले उसे मिलते हैं ,
कुछ सिक्को में समाए हुए
उसके भ्रम,
ओढ़कर अपनी पसलियों को
एक मरी मुस्कान के साथ
थमा वो चंद सिक्के,
अपनी बीवी की हथेलियों में
और कहता है,
ले के आ जुगाड़,
वो भी दौड़ पड़ती है,
उठा के थैला,
भ्रम के चंद सपने खरीदने,
ये कहानी है,
एक आम मज़दूर की,
व्यवस्था के ढ़ेर पर
बैठे परिवर्तन की प्रतीछा करते,
दिग्भ्रमित सपनों की,
जिन्हें सिर्फ़ आता है,
अनाज के चंद दाने उगाना
वरना गमछे में ही,
उन्हें जीवन का सारा सच
निचोड़ना आता है।
#अनीता लागुरी (अनु)
शुक्रवार, 9 मार्च 2018
मेरे शब्दों की ..मुखरता।।
मैं एक अदना सा लेखक हुं,
लिखता वहीं हुं जो
मन को बींध जाता है,
लिखता वहीं हुं जो
मन को बींध जाता है,
स्पष्ट, अस्पष्ट की संज्ञा
से परे
मन के विस्मृत भावों
को संवेदनाओं से
उकेरता चला जाता हुं
से परे
मन के विस्मृत भावों
को संवेदनाओं से
उकेरता चला जाता हुं
मन के कोरे कागज में
जब दर्द की चीख
निकलती है
और धुटन से जिह्वा
बाहर आती हैं
जब दर्द की चीख
निकलती है
और धुटन से जिह्वा
बाहर आती हैं
तब आत्मा शोर मचाती है
और मैं एक अदना सा लेखक
लिख डालता हूं
खुद की आत्मसंतुष्टि के लिए
भाव आविभाव की
पोथी लेकर।
और मैं एक अदना सा लेखक
लिख डालता हूं
खुद की आत्मसंतुष्टि के लिए
भाव आविभाव की
पोथी लेकर।
तत्पर...ये नहीं सोचता कि
प्रभाव क्या है इसका
क्या तुम समझोगे,
रखोगे राय क्या अपनी
बस लिखता चला जाता हूं,
प्रभाव क्या है इसका
क्या तुम समझोगे,
रखोगे राय क्या अपनी
बस लिखता चला जाता हूं,
अपनी कलम को,
अपनी पराजय की हार में
डुबा ,
जीत में बदलने की कोशिश में
इतिहास लिखने बैठ जाता हूं।
अपनी पराजय की हार में
डुबा ,
जीत में बदलने की कोशिश में
इतिहास लिखने बैठ जाता हूं।
शुक्रवार, 2 मार्च 2018
कश्मकश ...!
हर शाख़ पर उल्लू बैठा है
हर शख़्स यहां कीचड़ से मैला है
क्या रंग क्या गुलाल खेलूं
हर चमन में शातिर शागिर्द बैठा है
तुम बात करते हो मकानों की
यहां हर घर बेज़ुबानों से दहला है
पंख लगाकर क्या उड़े चिड़िया
हर सैय्यद पंख कतरने बैठा है
जिस्म में थरथराहट मौजूद भी है
मेरे हाथों में कांपते मेरे सपने भी हैं ...!
कुछ कहने को उतावला मेरा मन भी है
हाँ वो गोले आग के,मेरे अंदर भी हैं ।
# अनीता लागुरी (अनु)
शनिवार, 24 फ़रवरी 2018
प्रश्न,...!!
प्रश्न तो बस प्रश्न होते हैं,
तीखे से ,मीठे से,कुछ उलझे से
कुछ जज्बाती से,
तो कुछ हमेशा की तरह अनुत्तरित से।
यहां कुछ प्रश्न..?
तीखे से ,मीठे से,कुछ उलझे से
कुछ जज्बाती से,
तो कुछ हमेशा की तरह अनुत्तरित से।
यहां कुछ प्रश्न..?
मैंने भी पुछा ,
मां से अपनी...?
क्यो लड़के की चाह में,
मुझे अजन्मे ही मारने चली..?
मां से अपनी...?
क्यो लड़के की चाह में,
मुझे अजन्मे ही मारने चली..?
क्यों छठे माह तक,
बिना किसी भय के ,
सींचती रही रक्त से अपने..!
सुनाती रही लोरी,
और सहलाती रही
उदर को अपने...!!
बिना किसी भय के ,
सींचती रही रक्त से अपने..!
सुनाती रही लोरी,
और सहलाती रही
उदर को अपने...!!
हर बीतते पल के साथ,
मुझ खुन के टुकड़े को
नख, शिख ,दंत से क्यों
सांवारती रही...?
और करती रही मजबूत
रिश्ता हमारा,
मुझ खुन के टुकड़े को
नख, शिख ,दंत से क्यों
सांवारती रही...?
और करती रही मजबूत
रिश्ता हमारा,
फिर ऐसा क्या हुआ,
मां....?
किसने तुझे कमजोर बनायां
किसने तुझे कहा,
लड़के ही वंश बड़ाते है,
ये मुई लड़कियां तो बस बोझ होती है।
एक बार आने तो दिया होता,
दुनिया में तुम्हारी,
पर ....!
मां....?
किसने तुझे कमजोर बनायां
किसने तुझे कहा,
लड़के ही वंश बड़ाते है,
ये मुई लड़कियां तो बस बोझ होती है।
एक बार आने तो दिया होता,
दुनिया में तुम्हारी,
पर ....!
तु इतना भी ना कर सकी,
मेरी मां,
लड़ जाती मेरी खातिर सबसे
और रख ये प्रश्न....!
पुछती सबसे...!
क्या हुआ जो गर ये
लड़की है...!
मेरी मां,
लड़ जाती मेरी खातिर सबसे
और रख ये प्रश्न....!
पुछती सबसे...!
क्या हुआ जो गर ये
लड़की है...!
है तो मेरा ही अंश..
मैं लाउंगी इसे
इस दुनिया में..!
इसे जीने का अधिकार
मैं दुंगी..!
मैं लाउंगी इसे
इस दुनिया में..!
इसे जीने का अधिकार
मैं दुंगी..!
पर तुने नहीं कहा,
और छोड़ दिया मुझे अकेला।
और मैं बिना जन्मे ही
चल दी , तुम्हारी दुनिया से दुर..!
और छोड़ दिया मुझे अकेला।
और मैं बिना जन्मे ही
चल दी , तुम्हारी दुनिया से दुर..!
और आज मौका मिला तो
मैंने भी पुछ लिया ये
प्रश्न ..!
ना जाने फिर कभी
मौका मिले या नहीं,
इस अजन्मे बच्चे को
तुमसे संवाद का ...?
..
मैंने भी पुछ लिया ये
प्रश्न ..!
ना जाने फिर कभी
मौका मिले या नहीं,
इस अजन्मे बच्चे को
तुमसे संवाद का ...?
..
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आज फिर तुम साथ चले आए घर की दहलीज़ तक..! पर वही सवाल फिर से..! क्यों मुझे दरवाज़े तक छोड़ विलीन हो जाते हो इन अंधेरों मे...
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कभी चाहा नहीं कि अमरबेल-सी तुमसे लिपट जाऊँ ..!! कभी चाहा नहीं की मेरी शिकायतें रोकेंगी तुम्हें...! चाहे तुम मुझे न पढ...