शुक्रवार, 9 मार्च 2018

मेरे शब्दों की ..मुखरता।।

मैं एक अदना सा लेखक हुं,
लिखता वहीं हुं जो
मन को बींध जाता है,
स्पष्ट, अस्पष्ट की संज्ञा
से परे
मन के विस्मृत भावों
को संवेदनाओं से
उकेरता चला जाता हुं
मन के कोरे कागज में
जब दर्द की चीख
निकलती है
और धुटन से जिह्वा
बाहर आती हैं
तब आत्मा शोर मचाती है
और मैं एक अदना सा लेखक
लिख डालता हूं
खुद की आत्मसंतुष्टि के लिए
भाव आविभाव की
पोथी लेकर।
तत्पर...ये नहीं सोचता कि
प्रभाव क्या है इसका
क्या तुम समझोगे,
रखोगे राय क्या अपनी
बस लिखता चला  जाता हूं,
अपनी कलम को,
अपनी पराजय की हार में
डुबा ,
जीत में बदलने की कोशिश में
इतिहास लिखने बैठ जाता हूं।

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