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शुक्रवार, 8 दिसंबर 2017

तापस



मेरी डायरियों के पन्नों में,

रिक्तता शेष नहीं अब,

हर सू  तेरी बातों का

सहरा है..!

कहाँ  डालूं इन शब्दों की पाबंदियाँ 

हर पन्ने में अक्स तुम्हारा

गहरा है...!

वो टुकड़ा बादल का,

वो नन्हीं-सी धूप सुनहरी,

वो आँगन  गीला-सा,

हर अल्फ़ाज़ यहां पीले हैं।

तलाशती फिर रही हूँ ..

शायद कोई तो रिक्त होगा

वो मेरा नारंग रंग....!

तुम्हें पढ़ने की मेरी अविरल कोशिश..!

और मेरे शब्दों की टूटती लय..!

वो मेरी मौन मुखर मुस्कान..

कैसे समाऊँ  पन्नों में ..?

हर सू  तेरी यादों  का सहरा है......... 

तापस..!!!

कहाँ  बिखेरुं इन शब्दों की कृतियाँ.....? 

यहाँ  रिक्तता शेष  नहीं  अब.....!

तुम्हारी मृदुला🍂🍁🍃🍀

# अनीता लागुरी (अनु)

गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

फ़र्क़ ये रोटियों में किसने पैदा किया...?

               
तेरी रोटी 
मेरी रोटी से जुदा क्यों है......?
तेरी हमेशा ही तीन कोनों वाली
नर्म मीठी-सी गुदगुदी रोटी
और मेरी  सूखी पापड़ी-सी 
चंदा मामा वाली रोटी...!
मैं सहेजता हूँ 
मेरी रोटी पोटलियों में,
तू  फेंक आता है, 
कचरे की  बाल्टियों  मै,
मेरी रोटी ओढ़े,
भूख और ग़रीबी,
तेरी रोटी में चुपड़ा घी,
फ़र्क़ ये  रोटियों में किसने पैदा किया...?            
तुमने या  मैंने
या ऊपर बैठै 
उस नीली छतरी वाले ने
पर वो .........!!!                             
भूख में फ़र्क़ करना भूल गया,
तुझे भी भूख लगती है.... ।
मुझे भी,
फिर कब हम इंसान बना बैठे...?
रोटियों में फ़र्क़ ..!
 जब तीसरी मंज़िल से रोटी,
 फिकती  है ना,
 न जाने कितने दौड़ पड़ते हैं।
 मेरी तरह.....!
 पिंटो अंकल का टॉमी भी 
दौड़ लगाता है 
कभी मैं आगे,
कभी वो आगे,
 वजह...?
 वो तिकोनी रोटी जिसे तुम
 परांठा  कहते  हो.....!
ऊपर से लहलहा कर नीचें गिरती है
मेरी भूख मे तब्दील होकर,
#अनीता लागुरी ( अनु )
                  
(चित्र साभार: गूगल)

शुक्रवार, 17 नवंबर 2017

अधखुली खिड़की से...

अधखुली खिड़की से,
धुएं के बादल निकल आए,
संग साथ में  सोंधी रोटी की
ख़ुशबू भी ले आए,                            
सुलगती अंगीठी
 और अम्मा का धुआँ-धुआँ
  होता मन..!
कभी फुकनी की फूं-फूं
तो कभी अंगना में
नाचती गौरैया ...ता-ता थईया..!
बांधे ख़ुशबुओं की पोटली
सूरज  भी सर पर चढ़  आया..!
जब अम्मा ने सेकीं रोटियां तवे पर...!
नवम्बर का सर्द सवेरा भी
 ख़ुद पे शरमाया....!
जब अधखुली खिड़की से....धुएं
का बादल निकल आया....!
 #अनु

चित्र साभार - गूगल 

गुरुवार, 16 नवंबर 2017

काश...कोई दे जाता...!

एक शोर ह्रदय को झंकृत करता,
मौन-मौन मनुहार ........रचाता। 

एक  दिया  मुंडेर  पर  जलता ,
नज़्म-नज़्म  संगीत  बजाता। 

एक इंतज़ार टिक-टिक सुनाता,
देख के तुमको नंगे पैर धूल लगाता। 

एक बादल कभी  ज़रा-सा  गुस्साता,
हथेलियों में मेरी कुछ बूँदें रख  जाता। 

एक एहसास तल्ख़ी का तुम्हारा,
आँखों में  मेरी आँसू  दे जाता। 

एक शोर, एक दिया,एक इंतज़ार,
हर पृष्ठ  में  जीवन का राग उकेरता। 

#अनु

सोमवार, 13 नवंबर 2017

तुम कवि हो...पर मै.......!

तुम कवि हो ना,

शब्दों  को आकार


देते हो,


मैं  एक कड़वा  सच  हूँ 

सच को नंगा करना 


मेरी  आत्मसंतुष्टि  है ।


तुम्हारे  विचारों के प्रबल वेग का 

कोई छोर नहीं ।

और मैं ...... गंतव्य का भटका राही,


तलाश-ए- मंज़िल  की दौड़ में 


गुमनाम बना फिरता हूँ ...


तुम्हारी  कल्पनाऐं 

अंतहीन हैं ।


मैं  दर्द को सीता हूँ ...!


उसकी चुभन से ,


ख़ुद की कहानियां


लिखता हूँ .…!


तुम लेते हो सहारा क़लम  का

मेरी तो आँखें  पनीली होती हैं ,


होगे तुम कवि कहीं के


मैं  बस मैं  हूँ .......!


कल्पनाओं से परे...!


जीता हूँ  संग  बिडम्बनाओं  के

मरता हूँ  संग वर्तमान के...!


एक यथार्थवादी....!

#अनु

रविवार, 12 नवंबर 2017

चाय की चुस्कियां संग जिंदगी के.......

Hot Tea..


ज़िन्दगी  ने फिर से 
बनी बनाई चाय
उड़ेल दी कप में  मेरे ,
चाहे चाय ,
बेस्वाद ही क्यों  न बनी हो।
हर बार की तरह
अपनी परेशानियों  में  लिपटी ,
वो पास आ जाती  है 
और मुझसे  कहती  है 
छोड़े जा रही  हूँ ,
तकिये के नीचे तुम्हारी 
कुछ तकलीफ़ों  की गठ्ठरी,
संभाल लेना हर बार की तरह 
और  लगा प्यार से,
चपत गालों  पे  मेरी...!
छोड़े जाती है  
उन तकलीफ़ों  के साथ
जो रोज़  परत-दर-परत 
मुझमें  प्रहार करती हैं ।
और मेरे टूटकर बिखरने का 
इंतज़ार भी
बिना चीनी की  
बेस्वाद  चाय की तरह.....!!!
#अनु
(  चित्र साभार गुगल)

बुधवार, 8 नवंबर 2017

मुझसे दूर तो कभी नहीं जाओगे ना--------------!!!!!!




आज फिर तुम साथ चले आए

घर की दहलीज़  तक..!
पर वही सवाल फिर से..!
क्यों मुझे दरवाज़े तक छोड़
विलीन हो जाते हो इन अंधेरों में..?
क्यों नहीं लांघते  इन  दहलीज़ों को..?
जानती हूँ  तुम्हें पता है ना
मेरा वो अंधेरों से  डर...!

अब भी याद आता है मुझे

तुम्हारा वह मेरा हाथ थाम लेना..!

जब अचानक रोशनी
गुम हो जाती थी..!
और मैं चिहुंक कर
तुम्हारे सीने से लग जाती थी
और महसूस करती थी 

तुम्हारी बाहों का वह मज़बूत घेरा 

जो मुझसे कहता था 

अनु मैं हूँ  ना...!!!!
और मैं सिमटी सहमी
पूछती तुमसे...!!!
मुझसे दूर कभी नहीं जाओगे ना....???
और तुम मुस्कुरा देते.... 
अपने  वही चिर-परिचित अंदाज़  में
और कहते मुझसे नहीं पगली!
 धत्त...!!!!!!!
मैं भी ना....!!!
 कहाँ खो जाती हूँ 
और अब मैं अंधेरों में
मोमबत्ती तलाशती 

तुम्हारी तस्वीर को

अपलक खड़ी देखती रह रही हूँ..!

धीरे-धीरे तुम्हारी छवि
धूमिल होने लगी है..!
पर तुम्हारी यादें  नहीं..!
जानती हूँ  तुम साथ नहीं हो 

पर जब भी ये घने अंधेरों के साए 
मुझे डराएंगे...!

तुम उस वक़्त मेरे साथ रहोगे...!

मेरी परछाई बनकर......!
 🍁🌺#अनु


बस्ते में इन्हेलर ....!

सांसों  पे  मेरी 
पाबंदियां मत लगाओ ..|
मेरी इन मासूम आखों  में
सवाल  खड़े  मत  करो
क्या ये मेरा भविष्य है?
आँखों में  डर
मुँह  पर  मास्क
बस्ते में  इन्हेलर ....!

ये  सांसें  मेरी हैं .....
इन्हें  ज़हर देकर मत  खरीदो.....
मुझे भी हक़ है
अपने हिस्से की  ज़मीन को  छूने  का
लालच में अपनी... 
मेरी क़ब्रगाह मत खोदो....|
  #अनु

बुधवार, 1 नवंबर 2017

तापस


मेरी डायरियों के पन्नों में,
रिक्तता शेष नहीं अब,
हर शुं तेरी बातों का
सहरा है..!
कहाँ  डालूं इन शब्दों की पाबंदियाँ
हर पन्ने में अक्स तुम्हारा
गहरा है...!
वो टुकड़ा बादल का,
वो नन्हीं-सी धूप सुनहरी,
वो आँगन  गीला-सा,
हर अल्फ़ाज़ यहां पीले हैं।
तलाशती फिर रही हूँ ..
शायद कोई तो रिक्त होगा
वो मेरा नारंग रंग....!
तुम्हें पढ़ने की मेरी अविरल कोशिश..!
और मेरे शब्दों की टूटती लय..!
वो मेरी मौन मुखर मुस्कान..
कैसे समाऊँ  पन्नों में ..?
हर शुं तेरी यादों  का सहरा है.........
तापस..!!!
कहाँ  बिखेरुं इन शब्दों की कृतियाँ.....?
यहाँ  रिक्तता शेष  नहीं  अब.....!
तुम्हारी मृदुला
#अनु