गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

फ़र्क़ ये रोटियों में किसने पैदा किया...?

               
तेरी रोटी 
मेरी रोटी से जुदा क्यों है......?
तेरी हमेशा ही तीन कोनों वाली
नर्म मीठी-सी गुदगुदी रोटी
और मेरी  सूखी पापड़ी-सी 
चंदा मामा वाली रोटी...!
मैं सहेजता हूँ 
मेरी रोटी पोटलियों में,
तू  फेंक आता है, 
कचरे की  बाल्टियों  मै,
मेरी रोटी ओढ़े,
भूख और ग़रीबी,
तेरी रोटी में चुपड़ा घी,
फ़र्क़ ये  रोटियों में किसने पैदा किया...?            
तुमने या  मैंने
या ऊपर बैठै 
उस नीली छतरी वाले ने
पर वो .........!!!                             
भूख में फ़र्क़ करना भूल गया,
तुझे भी भूख लगती है.... ।
मुझे भी,
फिर कब हम इंसान बना बैठे...?
रोटियों में फ़र्क़ ..!
 जब तीसरी मंज़िल से रोटी,
 फिकती  है ना,
 न जाने कितने दौड़ पड़ते हैं।
 मेरी तरह.....!
 पिंटो अंकल का टॉमी भी 
दौड़ लगाता है 
कभी मैं आगे,
कभी वो आगे,
 वजह...?
 वो तिकोनी रोटी जिसे तुम
 परांठा  कहते  हो.....!
ऊपर से लहलहा कर नीचें गिरती है
मेरी भूख मे तब्दील होकर,
#अनीता लागुरी ( अनु )
                  
(चित्र साभार: गूगल)

4 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (13-03-2020) को भाईचारा (चर्चा अंक - 3639) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    आँचल पाण्डेय

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह वाह
    रोटी में फ़र्क
    उम्दा और मर्म समेटे रचना।
    नई पोस्ट - कविता २

    जवाब देंहटाएं
  3. हकीकत वया करती मार्मिक सृजन अनु जी

    जवाब देंहटाएं

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