Hot Tea..
ज़िन्दगी ने फिर से
बनी बनाई चाय
उड़ेल दी कप में मेरे ,
चाहे चाय ,
बेस्वाद ही क्यों न बनी हो।
हर बार की तरह
अपनी परेशानियों में लिपटी ,
वो पास आ जाती है
और मुझसे कहती है
छोड़े जा रही हूँ ,
तकिये के नीचे तुम्हारी
कुछ तकलीफ़ों की गठ्ठरी,
संभाल लेना हर बार की तरह
और लगा प्यार से,
चपत गालों पे मेरी...!
छोड़े जाती है
उन तकलीफ़ों के साथ
जो रोज़ परत-दर-परत
मुझमें प्रहार करती हैं ।
और मेरे टूटकर बिखरने का
इंतज़ार भी
बिना चीनी की
बेस्वाद चाय की तरह.....!!!
#अनु
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंजी....धन्यवाद।
हटाएंजिन्दगी ने चाय जैसी भी बनाई हो आप की चाय बड़ी स्वादिष्द है। सुंदरं प्रस्फुटन।
जवाब देंहटाएंअनु जी,मज़ा आ गया padhkar. ज़िंदगी की चाय आपनेबहुत प्यार से पिलाई.
जवाब देंहटाएंसादर
सुन्दर!
जवाब देंहटाएंजिन्दगी ऐसे इम्तिहान लेती है ...
जवाब देंहटाएंबेस्वाद चाय न हो तो मीठी चाय का आनद पता नहीं चलता कई बार ... अच्छी रचना ...
वाह! बहुत ही सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंआधुनिक कविता (नई कविता ) के ख़ूबसूरत रंग बिखेरती आपकी यह रचना जीवन के गंभीर सवाल और अर्थ समेटे हुए है। लिखते रहिये। बधाई एवं शुभकामनाऐं।
जवाब देंहटाएं