हां तुम्हारे प्यार में डूबा मैं
उस चांद से पूछ बैठता हूँ
क्या तुम्हें नींद नहीं आती
यों टकटकी लगाए,
क्या देखते हो
या रातों को जागने की
आदत हो गई
मेरी तरह..?
या तुम भी कर बैठे प्यार किसी से?
क्या करुं
सर्दी में मुँह से निकलते धुंए को
हवाओं में उड़ाता चला हूँ मैं
जानता हूँ मैं
ये धुआँ नहीं भ्रम है मेरा
पर फिर भी इस दिल को
समझाऊँ कैसे
जो तुम्हारे न होने के अहसास को
पुख़्ता सबूत बनाता है
जो मेरे क़दमों को थाम
आगे बढ़ने से रोक देता है
हाँ सिर्फ़ तुम्हारे प्यार में
बावरा बन.. घूम आता हूँ
गलियों में , चौराहों पर ...
तो कभी यादों की पगडंडियों पर
थामे हाथ तुम्हारा चल पड़ता हूँ
उस अनंत क्षितिज की ओर
उस लाल रक्तिम आभा से युक्त
सूरज को छूने
तो कभी तुम्हारी धड़कनों की
धक-धक को सुन उसकी लय में
ख़ुद को तलाशता
अंजाने ही अर्थविहीन चल पड़ता हूँ
तो कभी छत पर सूखता
तुम्हारा वो नीला-नारंगी दुपट्टा अलबेला
और उससे आती तुम्हारे बदन की वो ख़ुशबू ...!
उसे ढूंढ़ता न जाने कहां चल पड़ता हूँ मैं
हां तुम्हारे प्यार में.!
न जाने क्यों
पाबंदियां की परिभाषा भूल गया हूँ
मौसम के चढ़ने-उतरने का
राग भूल गया हूँ
नभ में उड़ते पंछियों की आज़ादी
भूल गया हूँ मैं
हाँ तुम्हारे प्यार में
सुर्ख़ मख़मली एहसासों की नुमाइश कर चला हूँ
समेट लो अपने बाहों में.....
वरना ....न जाने क्या से क्या चला हूँ मैं...!!!
#अनीता लागुरी (अनु)
उस चांद से पूछ बैठता हूँ
क्या तुम्हें नींद नहीं आती
यों टकटकी लगाए,
क्या देखते हो
या रातों को जागने की
आदत हो गई
मेरी तरह..?
या तुम भी कर बैठे प्यार किसी से?
क्या करुं
सर्दी में मुँह से निकलते धुंए को
हवाओं में उड़ाता चला हूँ मैं
जानता हूँ मैं
ये धुआँ नहीं भ्रम है मेरा
पर फिर भी इस दिल को
समझाऊँ कैसे
जो तुम्हारे न होने के अहसास को
पुख़्ता सबूत बनाता है
जो मेरे क़दमों को थाम
आगे बढ़ने से रोक देता है
हाँ सिर्फ़ तुम्हारे प्यार में
बावरा बन.. घूम आता हूँ
गलियों में , चौराहों पर ...
तो कभी यादों की पगडंडियों पर
थामे हाथ तुम्हारा चल पड़ता हूँ
उस अनंत क्षितिज की ओर
उस लाल रक्तिम आभा से युक्त
सूरज को छूने
तो कभी तुम्हारी धड़कनों की
धक-धक को सुन उसकी लय में
ख़ुद को तलाशता
अंजाने ही अर्थविहीन चल पड़ता हूँ
तो कभी छत पर सूखता
तुम्हारा वो नीला-नारंगी दुपट्टा अलबेला
और उससे आती तुम्हारे बदन की वो ख़ुशबू ...!
उसे ढूंढ़ता न जाने कहां चल पड़ता हूँ मैं
हां तुम्हारे प्यार में.!
न जाने क्यों
पाबंदियां की परिभाषा भूल गया हूँ
मौसम के चढ़ने-उतरने का
राग भूल गया हूँ
नभ में उड़ते पंछियों की आज़ादी
भूल गया हूँ मैं
हाँ तुम्हारे प्यार में
सुर्ख़ मख़मली एहसासों की नुमाइश कर चला हूँ
समेट लो अपने बाहों में.....
वरना ....न जाने क्या से क्या चला हूँ मैं...!!!
#अनीता लागुरी (अनु)
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