बुधवार, 14 फ़रवरी 2018

कहानी संग्रह पंखुड़ियाँ (24 लेखक एवं 24 कहानियाँ )

कहानी संग्रह पंखुड़ियाँ (24 लेखक एवं 24 कहानियाँ )



कहानी संग्रह
की सूचना साझा करते हुए बहुत ख़ुशी का अनुभव हो रहा है कि इस संकलन में मेरी कहानी "सरसों के तेल की पूरी की मिठास " सम्मिलित है। 
देशभर के अलग-अलग राज्यों से प्राची डिजिटल पब्लिकेशन की  इस पहल ने लेखकों को एक प्रतिष्ठित मंच प्रदान किया कहानी संग्रह का आयोजन करते हुए। 
पंखुड़ियाँ कहानी संग्रह अब राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय ई-स्टोर्स पर 24 जनवरी 2018 से उपलब्ध है।  

मुझे प्राची डिजिटल पब्लिकेशन की ओर से अपने मित्रों / परिचितों के लिए  डिस्काउंट कूपन दिए गये हैं। इच्छुक पाठक  नीचे लिखे कूपन कोड का इस्तेमाल करते हुए

 100 रुपये का डिस्काउंट लाभ ले सकते हैं-
                                   
Coupon Code - ANUKIDUNIYA 

pankhuriya

इस कहानी संग्रह के बारे में अधिक जानकारी के लिए नीचे दिया गया लिंक क्लिक करें -

मंगलवार, 6 फ़रवरी 2018

सांप्रदायिक उन्माद

Image result for image of roitesअरे मारो उसे....!              आहहह...!!!
पकड़ो..! काट डालो..!!!
...लो बचने न पाये...!
जलाओ उसे .!!
फ़र्क़  क्या पड़ता है?
छोड़ो ! 

कौन......?  
....... जी
रिश्ते गिनने लग गये.....!
तो हो गयी
ख़ून-ख़राबे  की होली..
यह है कड़वा
मगर आज का अकाट्य सत्य
सत्य जो दिखता है
सत्य जो रुलाता है
सत्य जो पूछता है
कहां खड़े हो आज तुम
इतना गुस्सा
इतना स्वार्थ
कि अपनी आत्मतुष्टि के लिए 
हथियार उठाए
अपनी ही गली में
लाल रंग फैलाते हो
और नालियों में 
लहू बहाते हो 
और करते हो
अट्टहास!!
लो ले लिया पूरा बदला
मुझे देश-दुनिया से क्या
मैं जीता हूँ
अपने धर्म  और समाज के नाम पर
ख़ून  बहे तो बहे
लोगों के  घर जले तो क्या
मैं नहीं झुकनेवाला
देश जल रहा है
गलियों में
चौराहों पर
धर्म के नाम पर कत्लेआम
हो रहे हैं
भाई...अब तो डर लगता है
इंसान  होने से
डर लगता है अपनी
ज़ात बताने से
न जाने कौन  कब  कहां
बैठा हो अंधभक्ति के साथ
और काट दे मेरा गला
आज तक क्या पाया 
और खोया क्या-क्या
तुमने ...हमने.....???
# अनीता लागुरी ( अनु )

चित्र साभार : गूगल 

गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

तुम्हारे कहने से चलो मुस्कुरा देती हूँ..!

                                       
मुझे आती नहीं
मुस्कुराहट  तुम्हारी  तरह
न ही आती है                                                आँखों को नीचेकर 
शरमाने की कला
मेरी संवेदनाएं तो यहीं से
झाँकतीं हैं
बस जहां तक देख पाऊँ
उतने ही ख़्वाब बुनती हूँ
देख रही हो...
कटे-फटे हाथों  की मेरी लकीरों को
इनमे धंसी  इस माटी को
ये कहती हैं मुझसे
हमें  तुम पर गर्व  है
तुम भूख को मात देती हो
अपने चेहरे पर 
दौड़ने  वाली मुस्कान से
और तुम कहती हो..?
आप ऐसे देखो तो
तस्वीर अच्छी आएगी
क्या अच्छी... क्या बुरी
...!
बस  तुम्हारे  तस्वीर लेने से
मेरे माथे से बह रही
पसीने की बूँदें 
मेरी क़िस्मत को
नहीं  बदलेगी
पर बिटिया ...!
तुम्हारे कहने से चलो
मुस्कुरा देती हूँ..!
#अनीता लागुरी ( अनु )

मंगलवार, 30 जनवरी 2018

"पंखुड़ियाँ"


        आपको यह ख़ुशख़बरी देते हुए असीम हर्ष से रोमांचित हूँ  कि प्राची डिजिटल पब्लिकेशन की ओर से देशभर के 24 लेखक एवं 24 कहानियां का आयोजन किया गया जिसे "पंखुड़ियाँ" नामक कहानी संग्रह के रूप में 24 जनवरी 2018 को ई-बुक के रूप में पाठकों के लिए ऑनलाइन देश और दुनियाभर के ई बुक स्टोर्स पर उपलब्ध कराया है। 
प्राची डिजिटल पब्लिकेशन का हार्दिक आभार मुझे एक लेखिका के रूप  मान्यता देने के लिए। 
अधिक जानकारी के लिए नीचे दिया  गया लिंक क्लिक करें -

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pankhuriya

शुक्रवार, 19 जनवरी 2018

यह भी है एक बवाल ...... !



जीवन में चढ़ते-घटते 

प्रपंच का बवाल

आज तड़के दर्शन हो गये

फिर से एक बवाल के 

चीख़ती नज़र  आई

रमा बहू सास के तीखे प्रहार से।


कर अनसुनी क़दम ढोकर

बढ़  गया मैं 

सू गली का चौराहा         
                            
किचकिच का शोर 

इकलौता नल

कहें नो मोर..... ,नो मोर...... 

यहां भी थी 

एक जंग की तैयारी

होने वाली थी 

बवाल की मारा-मारी

कौन किसकी सुने

हर नारी थी सब पे भारी। 


बढ़  चला फिर आगे मैं 

जा बैठा  कोने वाली बैंच पर

ले ही रहा था राहत की सांस

उफ़!

यहां भी हो गया  प्रेमी जोड़ों में 

बवाल...!

सोलहवां सावन 

प्यार में डूबा मन

प्रेमी न समझे तो  

दिल के टूटने का 

बड़ा बवाल ....!


बवाल कहां नहीं है

बस में सीट न मिले तो बवाल

पति पसंद की साड़ी न दिलाए

तो बवाल

बच्चों की न सुनो तो बवाल

पूरी सोसायटी ही बवाल है। 


कुछ होते हैं 

हाई-प्रोफाइल बवाल

राजनीति की खुली गलियों में

जूतम-पैज़ार  का  बवाल

होंठों को सिलते

तानाशाह के रुतबे का बवाल

जो अक्सर कर देते हैं

रियाया को हलाल 

कुछ मेरे मन में भी 

व्याप्त हैं  बवाल 

इंसान हूँ 

बात इंसानियत की करता हूँ 

गर बना रहना चाहूँ  इंसान 

तो करूँ  बवाल ?


पर वास्तविकता क्या है

इस बवाल की

ये सारा जीवन-तंत्र ही बवाल है

खो गयी  शान्ति मन की

दौड़ रहा हर इंसान यहां 

युवा दौड़ लगाए नौकरी की

ग़रीब जुगाड़  करे ज़रुरतों की

वास्तव में  ये सबसे बड़ा  है सवाल

सही मायने में 

यह  भी  है  एक  बवाल ...... !
#अनीता लागुरी ( अनु )
 Google image.

शनिवार, 13 जनवरी 2018

जब जला आती हूँ अलाव कहीं...



ये मन

धूं-धूं जलता है 

जब ये मन

तन से रिसते 

ज़ख़्मों के तरल

ओढ़ के गमों के

अनगिनत घाव 

जब जला आती हूँ 

अलाव कहीं

धीमी-धीमी आंच पर

सुलगता है ये मन

उन सपनों की मानिंद

जो आँखें यों  ही

देखती हैं  मेरी

अनगिनत रतजगी

रातों को

ये धूं-धूं  जलता 

ये मेरा मन

पिघलता है 

मोमबत्ती-सा

और यों  ही

गर्म हो उठता है

उस अलाव-सा
,
जिसे छोड़ आई 

थी कहीं..

उस अकेले चांद संग...!



# अनीता लागुरी (अनु)

मंगलवार, 9 जनवरी 2018

यह मेरी हार है....

            (जीवन पथ पर बढ़ते रहने की सीख देता एक भाई..)




रुक जाओ
मत भागो
मैं नहीं थोपूँगा 
अपनी पराजय तुम पर
यह  मेरी हार है।

मेरे सपनों की 
दम तोड़ती
अट्टालिकाओं के 
ज़मी-दोज़ होने की हार है।

गर कठघरे में खड़ा होगा कोई
तो वो मैं होऊँगा
सादियों से जलता रहा हूँ  मैं
आज भी जलते सूरज का 
तीक्ष्ण प्रहार मैं ही झेलूँगा। 

मेरे भाई... 
कुछ पल ठहर जाओ
सहने को.....  मरने को..... 
कोई एक ही मरेगा
और वो मैं होऊँगा।

इन बची हुई स्मृतियों से
ढक देना ख़ुद  को
और‌ जब 
अंत होगा ज़मीं का
दौड़कर  चढ़ जाना
पश्चिम की ओर
और वापस आकर 
माँ की गोद में 
सर रख कर
सांसों को धीमा करना..!

इन स्मृतियों को वहीं कहीं
कूड़ेदान में डालकर चल देना
बस चलते ही जाना
ये मेरी पराजय 
मैं नहीं थोपूंगा  तुम पर
ये मेरे लिखे शब्दों की हार है
वर्षों से है शापित जीवन  मेरा
आज दफ़न भी हो जाए  तो क्या  ग़म है......?
#अनीता लागुरी (अनु)